लालची समोसेवाला | Lalchi Samosewala | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories

लालची समोसेवाला | Lalchi Samosewala | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories


कहानियां हमारी जीवन में एक दर्पण का कार्य करती है। यह हमेशा किसी पाठक के लिए आनंदित माहौल पैदा करने के साथ-साथ, उसे कुछ नया भी सिखाती हैं। अगर आप Hindi Stories, Moral Stories या Bedtime Stories पढ़ने के शौकीन हैं तो आज मैं आपके साथ एक नई कहानी साझा करने जा रहा हूं। इस कहानी का नाम है - लालची समोसेवाला। यह एक Moral Story है, तो कहानी में हमारे साथ अंत तक जुड़े रहें।

लालची समोसेवाला | Lalchi Samosewala | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories

Lalchi Samosewala| Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories


 लालची समोसेवाला 


दुर्गापुर गांव में भोला नाम का एक गरीब किसान रहा करता था। उसकी एक बूढ़ी माँ थी। भोला बड़ी मुश्किल से अपना और अपनी माँ का गुजर बसर किया करता था।

1 दिन भोला जंगल से कुछ लकड़ियां लेकर अपने घर जाता है।
तभी उसकी बूढ़ी माँ आंगन में चूल्हे पर रोटियां बना रही होती है।

भोला," अरे माँ ! बहुत जोरों की भूख लगी है, जल्दी रोटी दे दो। जंगल में लकड़ी भी अब तो नाम की रह गई है। 

मुझे तो आगे की चिंता हो रही है। अगर आगे जंगल में लकड़ी नहीं मिली तो तुम रोटियां कैसे बनाओगी ? "

मां," अरे मेरे बच्चे ! तू चिंता मत कर। ले... पहले तो रोटी खा ले, दिन भर इतनी मेहनत करता हैं। तू देखना मेरे बच्चे, कोई ना कोई रास्ता निकल आएगा। "

जिसके बाद भोला खाना खाने लगता है। अगली सुबह भोला फिर से गांव के जंगल में लकड़ियां लेने निकलता है।

तभी उसे रास्ते में गांव का सेठ, तिजोरी लाल मिलता है। तिजोरी लाल देखने में हट्टा कट्टा आदमी था जो अपने धन की पोटली अपने साथ लेकर चलता था। तिजोरी लाल की एक आदत थी, वो हमेशा छींकता रहता था।

सेठ," आ छीं... अरे भाई ! एक तो मेरा ये जुकाम कभी ठीक नहीं होता। आ छीं... भोला, सुबह सुबह कहाँ सैर सपाटे पर निकल आये, भैया ? "

भोला," अरे सेठ जी ! जंगल में बस लकड़ियां लेने जा रहा था। अब आप तो जानते ही है, मुझ गरीब के घर तो चूल्हा ही जलता है। आपको कभी जरूरत पड़े तो बताइयेगा। "

सेठ," हाँ हाँ, भोला। आ छीं... तुम अगर जंगल जा ही रहे हो तो मेरे भाई के लिए भी ला देना कुछ लकड़ियां। 

अब सर्दियां भी तो बढ़ गई है, आग जलाने के काम आएंगी। आ छीं... क्या पता मेरा जुकाम भी ठीक हो जाये ? "

भोला," जी सेठ जी, मैं लकड़ियां आपके घर ले आऊंगा। आप बिल्कुल चिंता मत कीजिये। "

भोला जंगल जाता है और कुछ लकड़ियां लेकर सेठ तिजोरी लाल के घर आता है।

सेठ (भोला को देखते ही)," अरे ! आओ भोला...आ छीं... आओ आओ। आखिर ले ही आये तुम लकड़ियां। "

भोला," जी सेठ जी, ये लीजिये। इतनी लकड़ियां इस सर्दी में जलाने के लिए काफी है। "

सेट," अरे ! आ छीं... बहुत अच्छा किया तुमने बोला। भई वाह ! आ छीं... "

भोला," सेठ जी, मेरी माली हालत तो आप जानते ही हैं। अब तो घर में भी अन्न का एक दाना नहीं बचा। मुझे अपनी चिंता नहीं है, लेकिन मेरी बूढ़ी माँ... मैं उसे कैसे भूखा रखूँ ? 

आप मुझे कुछ पैसे उधार दे दीजिये ताकि मैं थोड़ा खाने का सामान ले सकूँ। मैं आपके पैसे जल्दी ही लौटा दूंगा। "

सेठ," अरे भोला ! मैं जानता हूँ, तुम एक ईमानदार आदमी हो। लेकिन भाई, तुम्हारी माली हालत भी अब किसी से छुपी है भला ? पैसे तो मैं तुम्हें दे दूंगा, लेकिन भैया ब्याज सहित वापस भी लूँगा, हाँ। आ छीं... "

भोला," ठीक हैं, सेठ जी... जैसी आपकी इच्छा। अभी तो मुझे पैसों की बहुत जरूरत है, आप मुझे पैसे दे दीजिये। "

जिसके बाद भोला को कुछ पैसे देता है। भोला वो पैसे लेकर अपने घर आता है।

मां," अरे क्या हुआ बेटा ? कहाँ रह गया था ? कब से तेरी राह देख रही थी मैं ? "

भोला अपनी माँ को सारी बात बताता है।

भोला," अब तुम ही बताओ मा, मैं क्या करता ? घर में तो कुछ भी खाने को नहीं था। इसलिए मैंने सेठ तिजोरी लाल से कुछ पैसे उधार ले लिए। अब इन पैसों से मैं तुम्हारे लिए कुछ खाने को ले आऊंगा। "

मां," अरे बेटा ! तेरे पिताजी ज़िंदा होते तो हमें ये दिन नहीं देखना पड़ता। तेरे पिताजी इसी गांव में समोसे बनाकर बेचा करते थे। 

पूरे गांव में उन जैसे समोसे कोई नहीं बना सकता था। उनके बनाये समोसे इतने स्वादिष्ट होते थे कि ये सभी गांव वाले उंगलियां चाटते रह जाते थे, हाँ। "

भोला," क्या सच में माँ..? पिताजी ऐसे स्वादिष्ट समोसे बनाया करते थे ? "

मां," बेटा, तू एक काम क्यों नहीं करता ? सेठ तिजोरी लाल ने जो तुझे पैसे दिए है तू इन्हीं से समोसे बनाने का सामान ले आ और समोसे बनाकर बेचने का काम शुरू कर दे। 

ऐसे तेरे पास कुछ पैसे भी आ जाएंगे। जिसके बाद तू सेठ तिजोरी लाल के पैसे भी लौटा देना। "

भोला," ये तो तुमने बिलकुल सही कहा मां। मैं ऐसा ही करूँगा।
तुम देखना, मैं बहुत मेहनत और लगन से समोसे बनाऊंगा।
फिर पिताजी की तरह मेरा भी इस गांव में खूब नाम होगा। "

भोला की माँ भोला की बात पर अपना सिर 'हां' में हिलाती है। तभी भोला तिजोरी लाल के दिए पैसे से समोसे बनाने का सामान ले आता है और समोसे बनाने लगता है। 

उसकी बूढ़ी माँ भी भोला की समोसे बनाने में मदद करती है। थोड़ी देर बाद सारे समोसे बनकर तैयार हो जाते हैं।

भोला," देखो माँ, कितने सारे समोसे बन गए हैं ? अच्छा... अब मैं इन्हें लेकर गांव के बाजार में चलता हूँ। "

मां," अच्छा ठीक है, बेटा। "

जिसके बाद भोला समोसे लेकर गांव के बाजार में जाता है और वहीं बाजार में अपने समोसे लेकर खड़ा हो जाता है और ज़ोर ज़ोर से आवाज लगाने लगता है।

ठेले वाला," अरे भाई ! ये कौन मेरे ठेले के सामने चिल्ला रहा है भैया ? अच्छा... ये तो भोला है। इसकी इतनी हिम्मत, मेरे ही समोसे के ठेले के सामने अपने बेस्वाद समोसे लेकर आ गया। 

ये तुने अच्छा नहीं किया, बोला। मैं तुझे यहाँ अपने सामने टिकने नहीं दूंगा, बता देता हूँ हाँ। "

भोला (आवाज लगाते हुए)," मेरे प्यारे गाँव वालो, गरमा गरम समोसे खाओगे तो इधर आओ भोला के पास। अरे ! आओ आओ। "

गांव के दो आदमी भोला के पास आते हैं।

पहला आदमी," अरे ओ भोला ! क्या तू भी अब समोसा बेचेगा ऐं ? तुझे आता भी है समोसा बनाने। तू जाकर जंगल में लकड़ियां ही चुन, ये समोसे बनाना तेरे बस की बात नहीं है, भैया। हा हा हा...। "

दूसरा आदमी," अरे! ठीक है। अरे भाई ! अब इस भोला के समोसे खाकर तो देखे ज़रा, आखिर कैसे बनाए हैं भैया ? अरे ! लाओ भैया, खिलाओ तो सही अपने ज़रा हैं हैं समोसे। "

भोला," अरे ! हाँ भाई, अभी खिलाता हूँ। तनिक खाकर बताइए, कैसे लगे भोला के समोसे ? "

भोला उन दोनों को अपने ही बनाए समोसे देता है।

पहला आदमी," अरे भोला ! ये क्या गुड़ गोबर बना दिया है ? कुछ डाला भी है अपने समोसे में या नहीं ? 

ना नमक लगता है, ना मिर्ची। छि छि छि... सारा मुंह का स्वाद ही बिगाड़ दिया, भैया। "

दूसरा आदमी," अरे भाई ! ऐसे बेस्वाद और खराब समोसे तो हमने कभी नहीं खाये, भैया। क्यों बोला भाई..? समोसे आते नहीं बनाने तो काहे बनाते हो ? बताओ..? "


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तभी सामने के ठेले से आवाज आती है जो सामने समोसे बेचने वाले कालू की थी।

कालू," अरे भाई ! यहां आओ, मेरे ठेले पर। अरे कहां आप भी इस भोला के टुच्चे से समोसे खाने लगे ? यहाँ आओ, मेरे भाइयो । 

मैंने बनाए हैं मज़ेदार, एक नंबर के स्वादिष्ट गर्मागर्म समोसे। आओ भैया, आओ खाओ, खाओ भैया, आ जाओ। "

तभी दोनों आदमी सामने वाले की दुकान पर चले जाते हैं। भोला ये देखकर बहुत दुखी होता है और अपने घर आ जाता है।

मां," अरे ! आ गया तो बेटा। क्या हुआ..? तेरे बनाए समोसे गांव वालों को पसंद आए या नहीं ? "

भोला," नहीं मां, गांव वाले बोलते हैं - मेरे समोसे में कोई मज़ा ही नहीं है। सेठ जी ने जितने भी पैसे उधार दिए थे, उनका मैं जितना समोसे बनाने का सामान आ सकता था, ले आया हूँ। 

अब और बाकी की सामग्री में कहाँ से लाऊं जिससे समोसे स्वादिष्ट हो जाये ? "

मां," अरे ! तू चिंता मत कर मेरे बच्चे, तेरी ईमानदारी और मेहनत को देखते हुए भगवान तुझे जरूर कोई अच्छा रास्ता दिखाएंगे। "

अगली सुबह सेठ तिजोरी लाल अपने कुछ लठैत नौकरों को लेकर भोला के घर आता है।

सेठ," अरे भोला ! कहाँ हो ? बाहर आओ। मेरे पैसे लेकर बैठ गया है। आ छीं...। "

तभी भोला और उसकी माँ बाहर आते हैं।

भोला," माफ़ कर दीजिए सेठ जी, आपसे जो पैसे मैंने उधार लिए थे, उनसे मैंने समोसे बनाकर बेचने का काम शुरू किया है लेकिन मेरे बनाये समोसे किसी ने अभी तक नहीं खरीदे हैं। मालिक, जैसे ही मेरे पास कुछ पैसे आयेंगे, मैं आपके पैसे लौटा दूंगा। "

सेठ," आ छीं... देख भोला, वो सब मैं नहीं जानता हूँ हाँ। तेरे बनाये समोसे का क्या भरोसा कोई खरीदेगा भी या नहीं ? 

मुझे मेरे पैसे ब्याज के साथ चाहिए, हाँ। आ छीं... नहीं तो अपना घर दे दे मुझे। जब तेरे पास पैसे होंगे, आकर छुड़ा लेना अपना घर। समझा..? आ छीं...।"

भोला," नहीं नहीं सेठ जी, ऐसा मत कीजिए। मुझ गरीब के पास यही तो एक सहारा है। मैं बूढ़ी माँ को लेकर कहा जाऊंगा ? नहीं नहीं सेठजी, ऐसा मत कीजिये। "

सेठ भोला की एक बात भी नहीं सुनता। अपने साथ लाए नौकरों से भोला के घर का सारा सामान बाहर आंगन में फिंकवा देता है और वहाँ से चला जाता है।

भोला और उसकी माँ वहीं घर के आंगन में उदास बैठे रो रहे थे। थोड़ी देर बाद भोला फिर से अपने वही बनाये समोसे लेकर बाजार में जाता है और वहाँ चुपचाप उदास मन से किसी के उसके बनाए समोसे खरीदने का इंतजार करने लगता है। 

तभी एक बूढ़ा आदमी भोला के सामने वाले समोसे के ठेले पर जाता है।

बूढ़ा," बेटा, कई दिन से भूखा हूं। अभी एक लंबी यात्रा से लौटा हूँ। मुझे कुछ खाने को दे दो। भगवान की तुम पर बड़ी कृपा होगी, बेटा। "

कालू," अरे ओ बुड्ढे ! क्यों खाम खा मेरा टाइम खोटी कर रहा है ? देख नहीं रहा है, कितनी भीड़ हो रही है ? जा यहाँ से, बाद में आना। चल जा यहाँ से... पता नहीं कहाँ कहाँ से आ जाते हैं ? "

बूढ़ा आदमी कालू की ऐसी बातें सुनकर बहुत दुखी मन से वहाँ से भोला के पास आता है।

बूढ़ा," बेटा तुम ही कुछ खाने को दे दो, जोरों की भूख लगी है। मेरे पास पैसे तो नहीं है, कुछ खाने को दे सको तो दे दो बेटा। "

भोला," अरे ! हाँ हाँ... क्यों नहीं बाबा जी, मुझे आपसे कोई पैसे नहीं चाहिए। रुकिए, मैं आपको अपने बनाए समोसे खिलाता हूं। 

कोई मेरे बनाये समोसे तो लेता नहीं है; क्योंकि यह स्वादिष्ट जो नहीं है। इसलिए आप इन्हें खाकर अपनी भूख मिटा लीजिए। "

जिसके बाद भोला उस बूढ़े आदमी को समोसे देता है। 

समोसे खाने के बाद...
बूढ़ा आदमी,"अरे वाह ! वाह बेटा... तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद, समोसे खाकर मेरी आत्मा तृप्त हो गयी। वाह वाह ! बड़ा स्वाद था तेरे बनाए समोसे में। "

भोला," क्या सच में..? आप सच बोल रहे है ? क्या मेरे बनाए समोसे इतने स्वादिष्ट है, बाबा ? "

बूढ़ा," अरे ! हाँ हाँ बेटा... अगर तुझे मेरी बातों का यकीन नहीं आता तो खुद ही चखकर देख ले। "

तभी भोला अपना बनाया एक समोसा उठाता है और खाने लगता है। 

समोसा खाने के बाद...
भोला," अरे ! हाँ बाबा जी, ये तो सच में बहुत स्वादिष्ट है। लेकिन बाबा, मैंने तो इनमे ऐसा कुछ भी नहीं मिलाया था जिससे ये इतने स्वादिष्ट और मजेदार हो जाये। ये कैसे हुआ बाबा ? "

बूढ़ा," बेटा, ये सब तुम्हारे ही सच्चे हृदय की वजह से हुआ है। तुमने इतनी मुश्किल में रहकर भी मेरी मदद की। तेरे बनाए समोसे की वजह से मेरी भूख शांत हुई। 

मेरे लिए इस संसार में सबसे स्वादिष्ट समोसे है, बेटा। इस गांव में तेरे बनाए समोसे सबको स्वादिष्ट और मजेदार लगे, इसके लिए मैं तुम्हें एक जादुई जड़ी बूटी देता हूँ। 

तुम जब भी समोसे बनाओगे तो इस जादुई जड़ी बूटी को अपने समोसों में मिला देना। जिसके बाद सभी गांव वालों को बस तुम्हारे ही बनाए समोसे पसंद आएँगे। 

लेकिन बेटा, ध्यान रखना जब भी यह जड़ी बूटी किसी लालची आदमी के हाथ में जाएगी तो इसका उल्टा असर हो जायेगा। ये जड़ी बूटी कभी भी उसका भला नहीं करेगी, बेटा। "

इसके बाद वो बूढ़ा आदमी वहाँ से गायब हो जाता है।

भोला (मन में)," आपका बहुत बहुत धन्यवाद बाबा, मैं आपकी ये बात ध्यान रखूँगा। "

तभी भोला अपने घर जाता है और अपनी बूढ़ी माँ को सारी बात बताता है। दोनों आंगन में ही चूल्हे पर फिर से समोसे बनाने लगते हैं।
भोला फिर से समोसे लेकर गांव के बाजार में जाता है और बाबा की दी हुई जड़ी बूटी समोसों में मिलाता है। जड़ी बूटी मिलाते ही भोला के सारे बनाये समोसे में से बहुत ही अच्छी खुशबू आने लगती है। 

तभी गांव के कुछ लोग भोला के पास आते हैं।

आदमी," अरे ओ भाई ओ ! जरा अपने समोसे तो खिलाओ। खुशबू तो बड़ी अच्छी आ रही है, चलो तुम खिलाओ, खिलाओ। हमसे तो रुका नहीं जा रहा है, भैया। जल्दी भाई जल्दी हैं...। "

भोला," हाँ भाइयो, क्यों नहीं..? ये लीजिये, अभी देता हूँ मेरे बनाये समोसे। "

भोला उन सब को समोसे देता है। सभी समोसे खाने लगते हैं।

आदमी," अरे भाई ! क्या डाला है इनमें ? अरे वाह ! बड़े ही स्वाद भरे हैं भैया तेरे बनाये समोसे, वाह वाह भैया, मज़ा आ गया। "

दूसरा आदमी," अरे ! सच में भोला भाई... ऐसे समोसे तो हमने कभी भी नहीं खाए, भैया। अरे भाई ! मौज कर दी, मौज। 

अरे भैया ! ज़रा 10 समोसे मेरे घर के लिए भी बांध देना, भैया। बहुत ही बढ़िया, बहुत ही मजेदार भैया, मज़ा आ गया। भई वाह वाह...। "

थोड़ी ही देर में भोला के समोसों की खुशबू पूरे बाजार में फैल जाती है और देखते ही देखते भोला की दुकान पर भीड़ लग जाती है।

भोला के सारे समोसे बिक जाते हैं। अब भोला रोज़ समोसे बनाता और वहीं बाबा की जड़ी बूटी डालता। 

जिसके बाद भोला के समोसे पूरे गांव में सभी लोग बड़े चाव से खाते। देखते ही देखते भोला अपनी बड़ी दुकान कर लेता है।

भोला," सेठ जी, ये रहे आपके पैसे जो मैंने उधार लिए थे। अब आप मेरे घर को मुझे सौंप दें। "

सेठ," भोला, क्या बात है भाई, बहुत कमाई हो रही है आजकल हैं..? इतनी जल्दी पैसे का इंतजाम कर लिया। मुझे क्या..? 

चलो मुझे मेरा पैसा चाहिए था। आ छीं... लाओ लाओ। आ छीं... एक तो मेरी नाक नहीं रुकतीं। "

अब भोला और उसकी माँ आराम से अपना जीवन बिता रहे थे। बोला रोज़ अपनी दुकान पर खूब समोसे बनाता और बाबा की जड़ी मिलाता। पूरा दिन भोला की दुकान पर खूब भीड़ रहती। 

ये सब देखकर कालू की जान जल रही थी। अब उसके बनाए समोसे कोई भी गांव वाला नहीं खाता था। कोई भी उसके ठेले पर नहीं आता। 

सब भोला की दुकान पर जाते। 

एक दिन...
अब तो मेरे ठेले पर कोई भी गांव वाला समोसे खाने नहीं आता। सब इस भोला के ही पास जाते हैं। नहीं नहीं, अब बस बहुत हुआ, इस भोला को तो सबक सीखाना ही पड़ेगा। 

आखिर ये अपने समोसे में ऐसा क्या मिलता है जिससे इसकी बिक्री इतनी ज्यादा बढ़ गई है ? इसका पता लगाना होगा। "

अगले दिन जब भोला अपनी दुकान में समोसे बनाकर उनमें बाबा की जड़ी बूटी मिला रहा था तो ये सब कालू छुपकर देख लेता है।

कालू," अच्छा... तो ये राज़ है, इस भोले के इतने स्वादिष्ट समोसों का। अब मैं भी देखता हूँ तेरे समोसे कौन खायेगा ? तुझे तो मैं अच्छा सबक सिखाऊंगा, भोला। "

तभी कालू रात में भोला की दुकान में जाता है और वो जादुई जड़ी बूटी चुरा लेता है। अगली सुबह भोला अपनी दुकान पर आता है लेकिन उसे अपनी जड़ी बूटी कहीं नहीं दिखती।

भोला," अरे ! ना जाने मेरी जड़ी बूटी कहाँ चली गयी ? ना जाने मिल क्यों नहीं रही है ? "

कालू," अरे ! आज तो मेरे मज़े ही आ जाएंगे। अपने बनाए समोसों मैं उस भोला की ये जड़ी बूटी मिलाऊंगा, फिर देखता हूँ कौन जाता है उस भोला की दुकान पर ? "

आदमी," लाओ भाई कालू, आज सामने भोला की दुकान पर अभी तक समोसे तो बने नहीं। भैया, भूख बहुत तेज लगी है तो भाई अपने बनाए समोसे खिला दो। "

कालू," अरे ! हाँ, क्यों नहीं भाई..? आज ऐसे समोसे खिलाऊंगा कि स्वाद कभी बोलना पाओगे, हाँ। "

तभी कालू अपने बनाए समोसों में वही जड़ी बूटी मिलता है।

कालू (मन में)," अरे वाह कालू ! आज तो तेरी चांदी ही कट जाएगी, हां। इस जड़ी बूटी के कमाल से सभी लोग आज तेरे ही पास आएँगे समोसे खाने। 

कितने सारे पैसे आयेंगे आज तो ? अरे वाह वाह वाह ! ये सोचकर ही मुझे तो इतनी खुशी हो रही है। अरे भैया ! मज़ा ही आ जायेगा हाँ। "

कालू जैसे ही उन आदमियों को समोसे देने लगता है, सारे समोसे काले पड़ जाते हैं और उनमें से बहुत ही गंदी बदबू आने लगती है।

आदमी," अरे ! छि छि...कालू, अरे अरे ! कैसे समोसे बनाये हैं, भैया ? एकदम काले है और ये देखो, कितनी बदबू आ रही है इनसे ? 

सूंघो... अरे भैया ! छि छि...। तुमने अच्छा नहीं किया भैया हमारे साथ, बता रहे है हाँ। अब कभी नहीं आयेंगे दुकान में तुम्हारे, हाँ...बता रहे हैं। "

कालू," अरे भाई ! मेरी तो खुद कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि भाई, ये सब हो क्या रहा है ? मेरे को कुछ समझ नहीं आ रहा, भैया। "

तभी देखते ही देखते कालू के ठेले में आग लगने लगती है और कुछ ही देर में उसका पूरा ठेला जलकर राख हो जाता है।

कालू," अरे अरे अरे ! ये क्या हो गया ? मेरा तो सारा ठेला ही जलकर राख हो गया। लगता है, ये सब उसी जड़ी बूटी ने किया है। 

हाय हाय हाय ! ये मैंने क्या कर दिया ? मुझे वो जड़ी बूटी भोला की दुकान से चुरानी ही नहीं चाहिए थी।

ये सब मेरी वजह से हुआ है। मैंने लालच में आकर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली, भैया। "


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भोला कालू की ये सब बाते वही खड़ा सुन रहा होता है। अच्छा... तो वो जादुई जड़ी बूटी इस कालू ने चुराई थी। 

लेकिन ये कालू ये नहीं जानता था कि जब भी कोई उस जादुई जड़ी बूटी का उपयोग अपने लालच के लिए करेगा, तो वो जड़ी बूटी अपना उल्टा असर करेगी और उस इंसान को अच्छा सबक सिखाएगी। 

बेचारा कालू लालच ना करता तो ये सब नहीं होता।
लालच ने तो इसके लुटिया ही डूबो दी। "


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