धोखेबाज मंत्री | Dhokhebaaz Mantri | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories

धोखेबाज मंत्री | Dhokhebaaz Mantri | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories


कहानियां हमारी जीवन में एक दर्पण का कार्य करती है। यह हमेशा किसी पाठक के लिए आनंदित माहौल पैदा करने के साथ-साथ, उसे कुछ नया भी सिखाती हैं। अगर आप Hindi Stories, Moral Stories या Bedtime Stories पढ़ने के शौकीन हैं तो आज मैं आपके साथ एक नई कहानी साझा करने जा रहा हूं। इस कहानी का नाम है - धोखेबाज मंत्री। यह एक Moral Story है, तो कहानी में हमारे साथ अंत तक जुड़े रहें।

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Dhokhebaaz Mantri | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories



 धोखेबाज मंत्री 

चंदनगढ़ राज्य में एक बहुत बड़ा महल था जिसका राजा विक्रमादित्य बहुत ही बुद्धिमान और चालाक था। लेकिन कई दिनों से उसके राज्य में अजीबो गरीब घटनाएं घट रही थी। 

मंत्री," महाराज, एक अशुभ समाचार है। "

राजा," बोलो मंत्री, क्या समाचार है ? राज्य में सब ठीक तो है ना ? "

मंत्री," नहीं महाराज, राज्य की सबसे लंबी नदी के ऊपर जो पुल आपने बनवाया था ना, वह टूट गया है जिसकी वजह से राज्य के नागरिकों को नदी के उस पार जाने में काफी समस्या हो रही है महाराज...। "

राजा," लेकिन महामंत्री, उस पुल का कार्यभार तो हमने तुम्हें ही सौंपा था ना ? फिर तुमसे इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई ? 

वो पुल इतना शीघ्र ही कैसे टूट गया ? महामंत्री, हम इसके लिए तुम्हें कठोर दंड देंगे। "

मंत्री," नहीं नहीं महाराज, इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। मैंने तो पुल बनवाने का कार्य पूरी ईमानदारी से किया था महाराज। इसमें उस सोमू किसान की गलती है महाराज। "

राजा," वह कैसे भला ? उस सोमू किसान ने क्या किया है ? महामंत्री, बताओ हमें। "

मंत्री," महाराज, जब सोमू किसान अपने बैलों के साथ उस पुल से गुजर रहा था तो उसी समय ही वो पुल टूट गया महाराज। तो इसका दोषी तो सोमू किसान ही हुआ ना महाराज ? "

राजा," महामंत्री, सोमू किसान को दरबार में बुलाया जाए। "

मंत्री," जी महाराज... जैसी आपकी आज्ञा। "

थोड़ी ही देर बाद सोमू किसान दरबार में आता है। 

राजा," सोमू किसान, क्या यह सच है कि राज्य में सबसे लंबी नदी पर बनाया गया पुल तुम्हारी ही वजह से टूट गया है ? क्या तुम इसके दोषी हो ? बताओ हमें। "

सोमू किसान," नहीं-नहीं महाराज, मैं पुल टूटने का दोषी नहीं हूं। महाराज, बल्कि पुल टूटने से तो मेरी बैल नदी में गिर गई और उसकी मौत हो गई। 

महाराज, मैं गरीब किसान हूं। मेरे पास तो एक ही बैल था, वह भी पुल टूटने की वजह से मर गया। महाराज, अब मैं क्या करूंगा ? "

मंत्री," चुप हो जाओ सोमू किसान। तुम्हारे कहने का क्या मतलब है - महाराज के बनाए हुए पुल से तुम्हारे बैल की मौत हो गई ? 

देखिए महाराज... यह सोमू अपनी गलती मानने की बजाय उल्टा आपके बनाए हुए पुल को ही दोष दे रहा है। महाराज, ये सोमू ही दोषी है। इसे सजा दीजिए महाराज। "

राजा," सोमू किसान, तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुम राजा पर ही दोष लगा रहे हो। "

राजा," सैनिकों... इस सोमू को बंदी बना लिया जाए और कारावास में डाल दिया जाए। "

सोमू," महाराज, मुझे माफ कर दीजिए। मेरे कहने का यह मतलब बिल्कुल भी नहीं था। मैं निर्दोष हूं महाराज। 

ऐसा मत कीजिए महाराज। अगर मैं कारावास में रहूंगा तो मेरे बीवी बच्चे भूखे मर जाएंगे महाराज। "

इसके बाद दो राजा के सैनिक सोमू को कारावास में डाल देते हैं।

अगली सुबह राजा के दरबार में राज्य के कुछ लोग आते हैं। 

आदमी," महाराज, महाराज... हमारी मदद कीजिए महाराज। राज्य में बहुत बड़ा संकट आ चुका है महाराज। "

राजा," क्या हुआ मेरे राज्य के वासियों ? आखिर कौन सा संकट आ पड़ा है राज्य पर ? "

आदमी," महाराज, हम सभी राज्य के किसान हैं। महाराज, कल रात जंगल की ओर से एक विचित्र सा दिखने वाला जानवर हमारे खेत खलियान में घुस गया और हमारी सारी फसलें खराब कर दी। अब आप ही कुछ करिए महाराज। "

राजा," क्या कहा... विचित्र जानवर ? तुम में से किसी ने उस विचित्र जानवर को देखा है ? "

आदमी," जी महाराज, हमने कल रात उस विचित्र जानवर को देखा था। लेकिन हम सिर्फ उसकी एक ही झलक देख पाए जो देखने में काफी खूंखार थी। उसके पैरों के निशान थोड़े-थोड़े इंसानों जैसे थे महाराज। "


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राजा," यह कैसा विचित्र जानवर हमारे राज्य में आ गया है जिसके पैर इंसानों जैसे हैं ? "

राजा," सेनापति..."

सेनापति," जी महाराज, बोलिए क्या करना है ? "

राजा," तुम आज रात जंगल में जाओ और उस विचित्र जानवर का पता लगाओ। "

सेनापति," जी महाराज, जैसी आपकी आज्ञा। मैं आज रात ही जंगल में जाऊंगा और उस विचित्र जानवर को बंदी बनाकर आपके समक्ष ले आऊंगा। " 

जंगल में...
सेनापति देखता है कि एक जंगल में काफी दूर तक सिर्फ पैरों के निशान ही होते हैं जो थोड़े थोड़े इंसानों के पैरों की तरह ही होते हैं। 

लेकिन काफी दूर तक भी कोई उस जंगल में नजर नहीं आता। सेनापति वहीं जंगल में उस जानवर के आने का इंतजार करने लगता है। 

सेनापति," अरे ! बहुत थकान हो गई। लेकिन वह विचित्र जानवर कहीं नहीं दिखा। कुछ देर आराम किया जाए। "

सेनापति को नींद आ जाती है और वह सो जाता है। सुबह एक सैनिक राजा के दरबार में आता है। 

सैनिक," महाराज, एक अशुभ समाचार है। सेनापति की उस विचित्र जानवर ने हत्या कर दी है। "

दरबार में सभी यह बात सुनकर हैरान रह जाते हैं। 

राजा," क्या कहा..? उस विचित्र जानवर ने हमारी सेनापति को मार डाला ? यह तो राज्य के लिए बहुत ही दुख की बात है। 

अब हम उस विचित्र जानवर को जिंदा नहीं छोड़ेंगे। हम स्वयं ही जंगल जाएंगे और उस विचित्र जानवर को मार डालेंगे। "

मंत्री," महाराज, आप क्यों कष्ट करते हैं ? आप मत जाइए। ऐसे तुच्छ जानवर के लिए आप स्वयं जाएंगे। "

राजा," महामंत्री, उसने हमारे सेनापति को मार डाला है। अब इससे पहले वह हमारे राज्य में किसी और को मारे, हम उसे ही खत्म कर देंगे। "

मंत्री," ठीक है महाराज। लेकिन आपकी सुरक्षा के लिए हम अत्यधिक सैनिकों का प्रबंध करा देते हैं महाराज। "

राजा," नहीं महामंत्री, हम अकेले ही जंगल जाएंगे। सैनिकों की कोई आवश्यकता नहीं है। हम अकेले ही उस विचित्र जानवर का सामना करेंगे। "

मंत्री," जी महाराज, जैसी आपकी आज्ञा। "

इसके बाद रात होती है और राजा अकेले ही मसाल लेकर जंगल में जाते हैं। 

राजा," आज देखता हूं विचित्र जानवर हमसे कैसे बचता है ? "

राजा उस विचित्र जानवर का जंगल में आने का इंतजार करने लगते हैं। राजा थोड़ी दूर जंगल में चलते हैं तो देखते हैं कि उस विचित्र जानवर के पैरों के निशान दिख रहे हैं। 

राजा," लगता है यह उसी विचित्र जानवर के पैरों के निशान हैं। "

राजा उन पैरों के निशानों का पीछा करने लगता है। एक जगह जाकर वे पैरों के निशान खत्म हो जाते हैं। 

तभी एक पेड़ के पास एक अजीब सा दिखने वाला चेहरे का मुखौटा दिखता है जो किसी जानवर का था और वही उस मुखोटे के पास एक अंगूठी मिली। राजा उन दोनों को देखकर सब समझ गया। 

राजा," अच्छा... तो वह दुष्ट ही विचित्र जानवर है। हम उसे नहीं छोड़ेंगे। "

राजा सुरक्षित अपने महल वापस जाते हैं।

सुबह होती है...
राजा सभी मंत्री मंडल और राज्य के नागरिकों के साथ दरबार में बैठे हैं। 

राजा," मेरे दरबार वासियों... राज्य में घोषणा कर दी जाए कि हमने उस विचित्र जानवर को मार गिराया है। अब वह किसी और को नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा। "

इतना सुनते ही राज्य में सभी राजा की जय जयकार करने लगते हैं। 

मंत्री," महाराज, लेकिन यह तो संभव ही नहीं है। महाराज, आप उस विचित्र जानवर को कैसे मार सकते हैं ? "

राजा," क्यों संभव नहीं है महामंत्री ? "

मंत्री," क्योंकि आपने जिस विचित्र जानवर को मारा है, वह तो जंगल में कहीं था ही नहीं। तो आपने उसे कैसे मारा महाराज ? आप झूठ बोल रहे हैं। "

महामंत्री की यह बात सुनकर दरबार में सभी लोग चौक जाते हैं।

राजा," हम जानते हैं वह विचित्र जानवर अब भी जिंदा है और वो भी इसी महल में हम सबके बीच मौजूद है। "

मंत्री (डरते हुए)," क्या कहा महाराज ? वो अभी हमारे बीच में है ? यह आप क्या बोल रहे हैं महाराज ? "

राजा," हां, वो विचित्र जानवर कोई और नहीं बल्कि यह दुष्ट महामंत्री ही है। "

राजा की यह बात सुनकर सब हैरान रह जाते हैं। 

मंत्री," मुझे माफ कर दीजिए महाराज। मुझसे गलती हो गई। महाराज मुझे माफ कर दीजिए। 

यह सब मैंने अपने लालच में आकर किया, गलती को छुपाने के लिए किया महाराज। "

राजा," दुष्ट, तुमने यह सब क्यों किया ? तुमने ही हमारे सेनापति की हत्या की। बताओ हमें आखिर तुमने यह सब क्यों किया ? "

मंत्री," महाराज, राज्य की नदी के ऊपर का पुल टूटने का दोषी मैं ही हूं, वह किसान नहीं। अपनी गलती को छुपाने के लिए मैंने कई गलतियां कर डाली। 

महाराज, दरअसल आपने जितना धन मुझे उस पुल को बनवाने के लिए दिया था, मैंने लालच में आकर उसका आधा ही पुल बनवाने में खर्च किया और बाकी का धन अपने पास रख लिया। 

मुझे यकीन था कि आप इसका पता लगा ही लेंगे। इसलिए मैंने ध्यान भटकाने के लिए यह सब ढोंग किया और एक विचित्र जानवर बन गया। 

मैंने एक बेहद खूंखार मुखौटा पहनकर राज्य के जंगल और खेत खलियान में घुसने लगा। उस रात जब सेनापति को आपने जंगल में भेजा तो उनके पीछे पीछे मैं भी गया था और छुपकर देखने लगा। 

सेनापति की जंगल में आंख लग गई तो मैंने सोचा यह सही मौका है। अब राज्य में मुखौटा पहनकर घूमा जाए। जैसे ही मैं जंगल से बाहर आने लगा, उन्होंने पीछे से मुझे देख लिया। 

उन्होंने मुझे मारने के लिए तलवार उठाई। तब हमारे बीच थोड़ी देर के लिए झड़प हुई और अपने बचाव में मैंने अपनी तलवार से उनकी गर्दन अलग कर दी। मुझसे गलती हो गई महाराज। मुझे माफ कर दीजिए। "

राजा," पापी, तुमने हमारे साथ धोखा किया। अपने एक झूठ को छुपाने के लिए तुमने हमसे कितने झूठ बोले और हमारे सेनापति की हत्या भी तुम्हारे ही कारण हुई। हम उसके लिए तुम्हें कठोर दंड देंगे। "

मंत्री," माफी महाराज माफी.... माफी दे दीजिए। "

राजा," सैनिको, सोमू किसान को कारावास से रिहा किया जाए। "

दरबारी," लेकिन महाराज आपको कैसे ज्ञात हुआ कि विचित्र जानवर यह महामंत्री ही है ? "


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राजा," उस रात जब हम जंगल में गए तो उस रात हम जंगल में विश्राम करने लगे। लेकिन उस रात वह हमारे सामने नहीं आया और थोड़ी दूर चलने पर हमें एक पेड़ के पास जानवर का मुखौटा मिला और वही एक अंगूठी भी मिली जो सेनापति से की गई झड़प में महामंत्री के हाथ से गिर गई होगी। 

यह अंगूठी वही थी जो हमने इस महामंत्री को उपहार में दी थी और हम समझ गए कि वह जानवर और कोई नहीं बल्कि यह दुष्ट महामंत्री ही है। "

यह सुनकर राजा की सब जयकार करने लगे। इस तरह से राजा विक्रमादित्य की समझदारी से कपटी मंत्री को उसके किए की सजा मिली। राज्य में फिर से राजा ने न्याय के लिए नई मिसाल कायम कर दी।


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