बुढ़िया का खजाना | Budhiya Ka Khajana | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories

बुढ़िया का खजाना | Budhiya Ka Khajana | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories


कहानियां हमारी जीवन में एक दर्पण का कार्य करती है। यह हमेशा किसी पाठक के लिए आनंदित माहौल पैदा करने के साथ-साथ, उसे कुछ नया भी सिखाती हैं। अगर आप Hindi Stories, Moral Stories या Bedtime Stories पढ़ने के शौकीन हैं तो आज मैं आपके साथ एक नई कहानी साझा करने जा रहा हूं। इस कहानी का नाम है - बुढ़िया का खजाना। यह एक Moral Story है, तो कहानी में हमारे साथ अंत तक जुड़े रहें।

बुढ़िया का खजाना | Budhiya Ka Khajana | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories

Budhiya Ka Khajana | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories



 बुढ़िया का खजाना 


बलियापुर गांव में बसंत नाम का एक गरीब किसान रहता था। उसके पास एक छोटी सी जमीन थी जिस पर वह खेती कर अपना गुजर-बसर किया करता था। 

बसंत का एक पड़ोसी था रंगीला जो हमेशा बसंत से ईर्ष्या करता था। लेकिन बसंत उसे अपने भाई की तरह मानता था।

एक दिन...
रंगीला," क्यों बसंत.. क्या इस बार अपने खेतों में सरसों की फसल करोगे या नहीं ? "

बसंत," क्या रंगीला भाई..? आपको तो अच्छे से पता है ना पिछले साल सरसों की फसल हमारे खेतों में अच्छी नहीं हुई। "

रंगीला," मेरी बात मानो बसंत, यह खेती तुम्हारे बस की नहीं। तुम मंडी में पल्लेदारी करना शुरू कर दो। हा हा हा..."

यह सुनकर बेचारा बसंत उदास होकर अपने काम में लग जाता है। एक दिन बसंत अपने खेत की तरफ जा ही रहा होता है।

बसंत," अरे ! आज तो बहुत गर्मी है भाई। प्यास भी बहुत तेज लगी है भाई। अरे ! वो रहा पानी। "

बसंत उस मटकी में से पानी निकलता है और पीने लगता है। तभी उसे एक आवाज आती है जो एक बूढ़ी अम्मा की होती है।

अम्मा," अरे ! कोई है यहां ? कोई मुझे पानी पिला दो। कोई मुझे पानी पिला दो। "

बसंत," अरे ! ये किसकी आवाज आ रही है ? "

तभी बसंत थोड़ी दूरी पर चलता है और देखता है कि एक झोपड़ी है जिसके अंदर बूढ़ी अम्मा है; जो चारपाई पर लेटी लेटी चिल्ला रही है। बसंत तुरंत उसके पास जाता है।

बसंत," क्या हुआ ? तुम ठीक तो हो ? बोलो अम्मा... मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं ? "

अम्मा," बेटा, मैं कई दिनों से प्यासी हूं। मुझे पानी पिला दो। "

बसंत," अच्छा अम्मा, मैं अभी तुम्हारे लिए पानी लेकर आता हूं। "

इसके बाद बसंत मटके के पास जाता है और उस अम्मा के लिए पानी लेकर आता है। 

बसंत," यह लो पानी पी लो। "

बूढ़ी अम्मा पानी पीती है।

अम्मा," तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद ! मैं पूरी तरह बूढ़ी हो चुकी हूं। अब मुझसे उठा नहीं जाता और कई दिनों से प्यासी भी थी। तुमने मुझे पानी पिलाया है। न जाने कब में इस संसार को त्याग दूं बेटा ? "

बसंत," लेकिन क्या अम्मा तुम्हारा इस दुनिया में कोई नहीं है ? "

अम्मा," नहीं बेटा, मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है। लेकिन बेटा; क्योंकि तूने मुझे पानी पिलाया है। तो मैं तुझे एक राज की बात बताती हूं। 

बेटा, तुम्हारे हाथों पानी पी लिया अब शायद मैं स्वर्ग प्रस्थान कर जाऊं। जाने से पहले तुम्हें एक राज़ बताती हूं। 

मेरे घर के सामने जो नीम का पेड़ है उसके नीचे बहुत पुराना चमत्कारी पिटारा छुपा हुआ है जो मैं तुम्हें भेंट देना चाहती हूं। 

उसका कभी दुरुपयोग मत करना और कोई अगर उसका दुरुपयोग करे तो उसे वहीं छुपा देना। "

बसंत," क्या चमत्कारी पिटारा..? अच्छा ठीक है... मैं कभी उस चमत्कारी पिटारे का अपनी जरूरत से अधिक इस्तेमाल नहीं करूंगा और ना ही किसी को करने दूंगा। और अम्मा अभी तो आप लंबा जिओगे। "

अम्मा," ठीक है बेटा, अब तुम जाओ और जाकर उस पिटारे को जमीन से निकाल लो। "

बसंत वहां से उस नीम के पेड़ के पास जाता है और उसके पास वाली जमीन को खोदने लगता है। तभी उसे मिट्टी में एक लकड़ी का पिटारा दिखता है। 

बसंत," अरे रे ! यह वही लकड़ी का चमत्कारी पिटारा है। अम्मा की कही हुई बात सच हो रही है। " 

वह पिटारा लेता है और अपने घर जाता है। 

बसंत की पत्नी," जी, आ गए आप ? कब से मैं आपकी राह देख रही हूं ? और यह क्या ले रखा है जी आपने हाथ में ? किसका लकड़ी का पिटारा उठा लाए आप ? "

बसंत," अरे भाग्यवान ! यह एक चमत्कारी पिटारा है। हम जो भी चीज इसमें डालेंगे, वह दुगनी हो जाएगी। "

बसंत की पत्नी," यह क्या कह रहे हैं जी ? क्या सच में ऐसा हो सकता है ? जी आप यही रुकिए, मैं अभी आती हूं। "

थोड़ी देर बाद उसकी पत्नी हाथ में एक मूंगफली का दाना लेकर आती है और लकड़ी के पिटारे में वो मूंगफली का दाना डाल देती है। 

तभी उस पिटारे में बहुत सारी मूंगफली आ जाती है। दोनों ही यह देखकर हैरान रह जाते हैं।

बसंत," देखा तुमने भाग्यवान ? यह सच में एक चमत्कारी लकड़ी का पिटारा है। हम जो भी इसमें चीज डालेंगे वह दुगनी हो जाती है। "

बसंत की पत्नी," हां जी, आप बिल्कुल सच कह रहे हैं। यह सच में चमत्कारी लकड़ी का पिटारा है। " 

अब बसंत को जो भी चाहिए होता, उसे वह लकड़ी के पिटारे में डालता और वही उसके सामने बहुत अधिक मात्रा में आ जाता। बसंत अब बहुत खुश था। 

वह अब अपनी जिंदगी खुशहाली से बिता रहा था। लेकिन बसंत कभी भी उस पिटारे का गलत उपयोग नहीं करता। 

एक दिन बसंत उस पिटारे के साथ अपने खेत पर जाता है जहां वह खेती करता था। 

बसंत," अरे रे ! मेरी गेहूं की फसल होने में तो अभी काफी समय है लेकिन घर पर तो गेंहू का एक भी दाना नहीं है। ऐसे में मैं आगे क्या करूंगा ? "

थोड़ी देर सोचने के बाद...
बसंत," क्यों ना मैं इस पिटारे में गेहूं के कुछ दाने डाल हूं ? इसके बाद मेरे सामने गेहूं के ढेर लग जाएंगे और तब तक मैं उन्हीं से काम चला लूंगा। 

अरे ! लेकिन मेरी गेहूं की फसल तो बिल्कुल हुई ही नहीं है फिर गेहूं के दाने कहां से लाऊं ? "


ये भी पढ़ें :-


Budhiya Ka Khajana | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories


बसंत थोड़ा दूर चलता है। पास ही उसका रंगीला नाम का एक पड़ोसी था जो अपने खेतों में काम कर रहा था।

बसंत," रंगीला भाई, जरा गेहूं के दाने चाहिए थे तुमसे। "

रंगीला," अरे भाई ! गेहूं के थोड़े दानों का भला तुम क्या करोगे ? खैर... यह लो गेहूं के दाने। "

रंगीला उसे अपनी फसल में से कुछ गेहूं के दाने निकाल कर दे देता है। 

बसंत रंगीला से वो गेहूं के दाने लेकर वहां से चल देता है। लेकिन रंगीला को यह बात कुछ हजम नहीं होती और वह बसंत के पीछे पीछे जाने लगता है। 

एक जगह छुपकर रंगीला बसंत को देखने लगता है। तभी बसंत अपने उसी लकड़ी के पिटारे में गेहूं के दाने डालता है। 

देखते ही देखते उन गेंहू के दानों से काफी गेहूं हो जाते हैं। यह देखकर रंगीला हैरान रह जाता है। 

रंगीला," अरे ! यह क्या..? इस बसंत के बच्चे ने तो मुट्ठी भर गेहूं के दानों से इतने गेहूं कैसे बना लिए ? इसके बाद वह आदमी वहां से अपने घर जाता है और अपनी पत्नी को बसंत की सारी बात बताता है।

रंगीला की पत्नी," यह क्या कह रहे हैं आप ? क्या सच में बसंत के पास कोई चमत्कारी लकड़ी का पिटारा है ? 

आप एक काम करिए जी, वह लकड़ी का पिटारा ले आइए वहां उससे फिर हम उसमें पैसे डालेंगे जिसके बाद हमारे पास बहुत सारे हो जाएंगे। ऐसे ही हम बहुत अमीर हो जाएंगे। "

रंगीला," अरे भाग्यवान ! मैं कैसे उस बसंत से वो चमत्कारी लकड़ी का पिटारा ला सकता हूं ? वह पिटारा बसंत मुझे कभी नहीं देगा। "

रंगीला की पत्नी," मैं कुछ नहीं जानती, कुछ भी करिए लेकिन वह चमत्कारी पिटारा ले आइए। जरा सोचिए ना... हम उस पिटारे की मदद से कितना कुछ पा सकते हैं ? "

रंगीला," हां हां भाग्यवंत, ठीक है। करता हूं कुछ..."

रात को सभी गांव वाले सो रहे थे। रंगीला चुपचाप अपने घर से निकला और बसंत के घर गया जहां वह देखता है कि बसंत और उसकी पत्नी सो रहे थे।

रंगीला," पता नहीं इस बसंत के बच्चे ने वह चमत्कारी लकड़ी का पिटारा कहां छुपा रखा होगा ? "

इसके बाद रंगीला इधर उधर नजर डालने लगा और देखते ही देखते एक छोटी सी मेज पर उसे वह चमत्कारी लकड़ी का पिटारा रखा हुआ दिख गया।

रंगीला," अरे ! वो रहा चमत्कारी लकड़ी का पिटारा। "

रंगीला लकड़ी का चमत्कारी चुरा लेता है और उसे अपने घर ले आता है। तभी उसकी पत्नी रंगीला को देर रात घर लौटते देख लेती है। 

रंगीला की पत्नी," इतनी रात कहां गए थे जी और यह क्या है हाथ में ? कहीं यह वही चमत्कारी लकड़ी का पिटारा तो नहीं है ? "

रंगीला," हां हां भाग्यवान, यह देखो मैं चमत्कारी लकड़ी का पिटारा ले आया हूं। "

रंगीला उसमें एक ₹10 का नोट डालता है। जैसे ही वह नोट उसमें डालता है देखते ही देखते पिटारे में बहुत सारे नोट हो जाते हैं। 

रंगीला की पत्नी," देखिए जी हमारे पास कितने सारे रुपए हो गए थोड़ी ही देर में ? अब तो हम इस गांव में सबसे अमीर हो जाएंगे। 

हाय ! अब कोई भी इस गांव में हमसे ऊंची आवाज में बात नहीं कर पाएगा और अब आपको पूरा दिन गधों की तरह खेत में मेहनत की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। 

अब तो मैं इन पैसों से बहुत सारे गहने लूंगी। हाय रे ! अब हमारे पास कितने पैसे होंगे ? हाय हाय हाय... अब तो हमें अमीर होने से कोई नहीं रोक सकता। "

रंगीला," वह सब तो ठीक है भाग्यवान, लेकिन तुम अब इस चमत्कारी पिटारे को छुपा दो। अगर किसी ने देख लिया तो शामत आ जाएगी हां। "

रंगीला की पत्नी," ठीक है जी, अभी छुपा देती हूं इसे।

सुबह होती है...
बसंत की पत्नी," अरे ! सुनिए जी... न जाने वह चमत्कारी लकड़ी का पिटारा कहां गया ? यही तो रखा था। "

यह सुनकर बसंत उसके पास आता है। 

बसंत," क्या हुआ भाग्यवान ? आखिर कहां गया वह पिटारा ? तुमने तो यही रखा था ना ? "

बसंत की पत्नी," हां जी, मैंने तो यही रखा था लेकिन अब यहां नहीं है जी। "

बसंत," हे भगवान ! न जाने कहां होगा वो चमत्कारी पिटारा ? कौन चोरी कर ले गया होगा ? बस जो भी ले गया है वो उस चमत्कारी पिटारे का दुरुपयोग ना करें। "

दोनों बहुत दुखी हो जाते हैं। उधर रंगीला और उसकी पत्नी रोज अब उस पिटारे में एक नोट डालते जिसके बाद बहुत सारे नोट हो जाते और वो उन्हें एक बोरी में रख लेते। 

रंगीला की पत्नी," जब तक हमारे पास बहुत सारे पैसे इस चमत्कारी पिटारे से इकट्ठा नहीं होते तब तक हम किसी को भी यह पता नहीं लगने देंगे कि यह पिटारा हमारे पास है। हम इससे पहले बहुत सारे नोट जोड़ लेते हैं। "

देखते ही देखते वह पैसों से बोरी भरना शुरू कर देते हैं। 

रंगीला की पत्नी," चलिए जी, अब हम इस बोरी को अंदर कमरे में छुपा देते हैं। "

रंगीला," हां हां भाग्यवान, तुम सही कह रही हो। चलो इसे अंदर कमरे में छुपा देते हैं। "

इसके बाद दोनों पैसों से भरी बोरी को एक कमरे में छुपा देते हैं। अगले दिन बसंत अपने खेत में जा रहा होता है। तभी उसे रास्ते में रंगीला मिलता है। 

रंगीला," और भाई बसंत, कहां जा रहे हो ? अरे ! बड़े उदास नजर आ रहे हो। सब ठीक है ना ? "

बसंत," हां, सब ठीक है। तुम बताओ तुम्हारी फसल कैसी हुई ? "

रंगीला," फसल... कैसी फसल भाई ? अब मुझे फसल बोने की कोई जरूरत नहीं है। समझे भाई..? "

बसंत," क्यों जरूरत नहीं है भाई ? "

रंगीला (मन में)," अरे ! यह क्या बोल दिया मैंने ? कहीं इस बसंत को मुझ पर संदेह ना हो जाए ? "

रंगीला," अरे ! नहीं नहीं, मैं तो ऐसे ही मजाक में बोल रहा था। जरूरत क्यों नहीं होगी भाई ? बिल्कुल होगी। वही तो इकलौता सहारा है हमारा। 

आखिर एक-एक पैसा तो फसल की बुवाई से ही आता है अपने पास। है ना..? अच्छा बसंत अब मैं चलता हूं है। "

इसके बाद रंगीला वहां से चला जाता है। लेकिन बसंत को उसकी बात हजम नहीं होती। 

बसंत," आखिर इस रंगीला ने ऐसा क्यों बोला कि उसे अब फसल की कोई जरूरत नहीं है ? कहीं इसी ने तो वह चमत्कारी पिटारा नहीं चुराया ? 

हे भगवान ! अगर इसी ने वह पिटारा चुराया होगा तो जरूर यह उसका गलत इस्तेमाल करेगा। अब मैं क्या करूं ? मुझे वह पिटारा जमीन से निकालना ही नहीं चाहिए था। "

बसंत बहुत सोच में पड़ जाता है। तभी बसंत रंगीला के घर जाता है। रंगीला बसंत को देखकर थोड़ा चौक जाता है।

रंगीला," अरे रे ! बसंत भाई... कैसे आना हुआ तुम्हारा ? सब ठीक तो है ना ? "

बसंत," अरे ! हां हां भाई, सब ठीक है। मैं यहां से गुजर रहा था तो सोचा कि तुमसे ही मिलता चलूं भाई। "

रंगीला," अच्छा मुझसे मिलने आए हो। अच्छा कोई बात नहीं भैया, आओ... आओ बैठो। "

बसंत वही एक चारपाई पर बैठ जाता है। 

बसंत," अरे भाई ! जरा एक गिलास पानी तो पिलाना। "

रंगीला," भाई, क्यों नहीं ? अभी लाता हूं। "

रंगीला जैसे ही अंदर जाता है। बसंत इधर उधर देखता है। उसे एक बंद कमरा दिखता है। 

बसंत उस कमरे के पास जाता है और उसकी खिड़की से झांक कर देखता है। अंदर उसे चमत्कारी पिटारा दिखता है। यह देखकर बसंत चौक जाता है। 

बसंत," इसका मतलब इस रंगीला ने ही मेरे घर से लकड़ी का चमत्कारी पिटारा चुराया है। तभी यह रंगीला बोल रहा था कि अब इसे खेती करने की कोई जरूरत नहीं है। 

हे भगवान ! यह जरूर चमत्कारी पिटारी का गलत उपयोग करेगा। मुझे यह चमत्कारी पिटारा यहां से लेकर जाना होगा और वापस इसे नीम के पेड़ के नीचे दफनाना होगा। "

बसंत वहां से चला जाता है और रात को वापस रंगीला के घर जाकर वह पिटारा चुरा लेता है। 

बसंत," बूढ़ी अम्मा ने कहा था कि इस चमत्कारी पिटारे का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए इसलिए अब मैं वापस इसे वहीं दफना दूंगा। "

बसंत उसी जगह जाकर फिर से मिट्टी के अंदर उस चमत्कारी पिटारे को छुपा देता है। 

सुबह होती है... 
रंगीला देखता है कि जिस कमरे में उसने पिटारा रखा था वहां पर नहीं था। 

रंगीला," अरे रे ! कहां गया वह पिटारा ? आखिर कहां गया वह पिटारा ? यही तो रखा था। कहां चला गया ? "

 रंगीला की पत्नी," क्या हुआ जी ? क्यों चला रहे हो ? "

रंगीला," अरे भाग्यवान ! वह पिटारा नहीं मिल रहा है। लगता है कोई इसे यहां से लेकर गया है। "

रंगीला की पत्नी," क्या बोल रहे हो ? हे भगवान ! अब हम पैसे इकट्ठा नहीं कर पाएंगे। अब तो पिटारा चला गया जी। हाय हाय हाय... "

रंगीला," चुप हो जाओ भाग्यवान। जितने पैसे हमने बोरी में इकट्ठा किए हैं चलो उन्हें ही बाहर निकालते हैं। अब और पैसे तो आने से रहे। "

दोनों एक बंद कमरे की तरफ जाते हैं। जैसे ही कमरे का दरवाजा खोलते हैं, देखते हैं कि बहुत सारे चूहे नोटों की बोरी के आसपास मंडरा रहे थे। 

रंगीला की पत्नी," अरे ! रे रे... ये चूहे कहां से आ गए ? "


ये भी पढ़ें :-


Budhiya Ka Khajana | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories


रंगीला नोटों की बोरी खोलता है तो दोनों हैरान रह जाते हैं। उन नोटों को चूहे कुतर चुके थे।

रंगीला की पत्नी," अरे ! यह क्या हो गया जी ? हमारे सारे पैसे तो ये चूहे कुतर गए। यह कैसे हो गया जी ?

हाय हाय हाय... हम तो बर्बाद हो गए जी। हमारे ज्यादा पैसे पाने के लालच ने बर्बाद कर दिया हमें। "

इसके बाद दोनों सिसक सिसककर रोने लगते हैं।


ये खूबसूरत और मजेदार कहानी आपको कैसी लगी, Comment में हमें जरूर बताएं। आपका Feedback हमारे लिए अति महत्वपूर्ण है।