जादुई पतीला | Jadui Patila | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories

जादुई पतीला | Jadui Patila | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories

कहानियां हमारी जीवन में एक दर्पण का कार्य करती है। यह हमेशा किसी पाठक के लिए आनंदित माहौल पैदा करने के साथ-साथ, उसे कुछ नया भी सिखाती हैं। अगर आप Hindi Stories, Moral Stories या Bedtime Stories पढ़ने के शौकीन हैं तो आज मैं आपके साथ एक नई कहानी साझा करने जा रहा हूं। इस कहानी का नाम है - जादुई पतीला। यह एक Moral Story है, तो कहानी में हमारे साथ अंत तक जुड़े रहें।

जादुई पतीला | Jadui Patila | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories

Jadui Patila | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories



 जादुई पतीला 


दयालपुर नाम का एक गांव था जहां बाबूलाल नाम गरीब किसान रहता था। उस किसान के पास एक छोटा सा खेत था। उसी खेत में खेती करके जो भी अनाज होता, उसी से बाबूलाल खुश था। 

उसकी बीवी, निर्मला घर में एक गाय की देखभाल में लगी रहती और उसके दूध से भी कुछ खर्चे निकल जाया करते थे। कई बार फसल अच्छी नहीं होती थी। 

बाबूलाल," आज खेत में जाना जरूरी है। खेत भी सूखता जा रहा है। कुछ समझ नहीं आता, निर्मला। "

निर्मला," खेत में दिन रात मेहनत करते हो लेकिन फिर भी फसल अच्छी नहीं होती। भगवान ना जाने कब तक हमारी परीक्षा लेंगे ? "

बाबूलाल," शुक्र है, हमारे पास यह गाय है नहीं तो हमारे घर में कुछ भी खाने को नहीं होता। "

निर्मला," देखो जी... हम इस गाय के दूध के व्यापार को बढ़ा लेते हैं जिससे कुछ तो पैसे आएंगे घर चलाने को। "

बाबूलाल," बोल दो तुम सही रही हो लेकिन खेत को भी तो नहीं छोड़ सकते। कभी ना कभी तो बारिश होगी जिससे खेतों में नमी आ जाएगी और फसल अच्छी होगी। "

निर्मला," क्या करें ? कुछ समझ नहीं आती। मैं इस गरीबी से तंग आ गई। मां जी की दवाइयों का खर्चा भी बड़ी मुश्किल से निकल पाता है। "

बाबूलाल," तुम चिंता मत करो निर्मला। भगवान के यहां देर है अंधेर नहीं। खेत में कुछ काम बाकी बचा है, मैं उसे निपटाकर आता हूं। तुम मां और बच्चों का ध्यान रखना,अच्छा...। "

निर्मला," जी, ठीक है। "

बाबूलाल घर से निकल कर सीधा खेतों की तरफ जा रहा था। उसे रास्ते में महान पंडित मिले। 

वह बाबूलाल को देखते ही गाने लगे - आज शुभ दिन आया है, तेरे समय ने तुझे बुलाया है। जिस घड़ी का तुझे इंतजार था, वह तेरे निकट चला आया है। 

बाबूलाल को थोड़ा अजीब लगा। 

बाबूलाल," यह क्या बोल रहे हैं पंडित जी ? "

बाबूलाल (मन में)," मगर गांव में सब लोग जानते हैं कि ये एक महान पंडित हैं। इनका कहा कभी खाली नहीं जाता। "

बाबूलाल," प्रणाम पंडित जी ! आज कहां को चल दिए और क्या बोलते जा रहे हो ? वैसे तो रोज चुपचाप चले जाते हो, आज गाना गा रहे हो। "

पंडित बाबूलाल को ही घूरे जा रहा था और वही गीत गाए जा रहा था - आज शुभ दिन आया है, तेरे समय ने तुझे बुलाया है। जिस घड़ी का तुझे इंतजार था, वह तेरे निकट चला आया है।

बाबूलाल," अच्छा पंडित जी, अब मैं चलता हूं। खेतों में बहुत काम है, बुवाई नहीं की तो फसल अच्छी नहीं होगी। "

उसके बाद बाबूलाल खेत में पहुंच गया और खेत खोदने लगा। आधा खेत खोद दिया, पूरा खेत खोदते हुए उसका फावड़ा किसी कठोर चीज से टकरा गया। 

बाबूलाल," यह क्या चीज है जिससे यह आवाज आई है ? पूरा खोदकर देखना पड़ेगा। "

बाबूलाल तेजी से खोदने लगा और वहां खोदने के बाद उसे एक पतीला मिला। 

बाबूलाल," यह क्या..? पतीले को भी कोई जमीन में गढ़ता है ? कल तक तो यहां कुछ नहीं था। खैर छोड़ो... अब मेरे खेत में मिला है तो मेरा हुआ। चलो घर ले जाता हूं इसे। "

बाबूलाल पूरा खेत जोतकर पतीला लेकर अपने घर चल दिया और अपनी पत्नी से बोला। 

बाबूलाल," देखो, क्या मिला है मुझे खेत में आज ? लगता है कोई कल रात को ही गाढ़कर गया था। "

निर्मला," बताओ तो... यह भी कोई खेतों में गाढ़ते हैं। चलो अच्छा है किसी काम तो आएगा। कितना अच्छा होता कि कहानियों की तरह सोने से भरा हुआ घड़ा मिलता आपको ? हा हा हा...। "

बाबूलाल," अच्छा, अब सपनों को छोड़कर इस पतीले को साफ कर लेना, दूध निकालने के काम ही आ जाएगा। तुम्हें अब कोई दूसरा बर्तन नहीं खरीदना पड़ेगा। "

निर्मला," ठीक है, सफाई बाद में अभी मां जी को खाना देना है। "
बाबूलाल ने पतीले को नीचे रखा और अपने घर के काम में लग गया। 

रोज के सारे काम सामान्य तरीके से चल रहे थे। सब सो गए। अगले दिन उठे और अपने काम में लग गए। 

निर्मला दूध निकालने के लिए गाय के पास गई। 

बाबूलाल," सुनो निर्मला... दूध के लिए जो पतीला था, तुम दूध उसमें ही रखो। बहुत बड़ा पतीला है वो। "

निर्मला," अंदर रखा है वो, तनिक लेकर आइए तो। "

बाबूलाल ने पतीला लाकर निर्मला को दिया और निर्मला ने सारा दूध निकालकर उस पतीली में डाला। 

जैसे ही निर्मला पतीले को उठाने लगी, गाय ने उसे तेजी से लात मार दी और निर्मला वहीं गिर गई। 

निर्मला (चिल्लाते हुए)," हाय ! ये क्या हो गया ? कोई है ? पप्पू के पापा... कहां गए ? "

बाबूलाल दौड़ता हुआ आया और निर्मला से पूछने लगा। 

बाबूलाल," क्या हुआ ? तुम्हें चोट कैसे लग गई और तुम गिरी कैसे ? "

निर्मला," देखो ना, आज इस गाय ने मुझे लात मार दी। मैंने पहले ही कहा था, तुम निकला निकाला करो दूध। यह मुझे पसंद नहीं करती है। "

बाबूलाल," ठीक है। आराम से उठना। "


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बाबूलाल ने निर्मला को उठाया और आराम से खटिया पर बैठा दिया। इसके बाद बाबूलाल ने पतीले को उठाकर एक तरफ रख दिया। 

निर्मला," अरे ! सुनो... दूध के पतीले को सही जगह रख दो नहीं तो मेरी सारी मेहनत बेकार हो जाएगी। "

बाबूलाल ने सुना नहीं और गाय के पास काम करनेलगा। वह गाना गाकर गाय को सुनाने लगा; क्योंकि उसकी गाय उसका गाना बहुत अच्छे से सुनती थी।

बाबूलाल (गाना गाते हुए)," दयालपुर का वासी हूं... बाबूलाल है नाम। सीधी साधी बोली मारी... सीधा सा है काम। 

दयालपुर का वासी हूं... बाबूलाल है नाम। सीधी साधी बोली मारी... सीधा सा है काम। "

निर्मला," ये तुम्हारा गाना सुन सुनकर ही बिगड़ी है। मुझे तो यह बिल्कुल पसंद नहीं करती। "

बाबूलाल कुछ सुन ही नहीं रहा था। तभी पतीले को बच्चों ने खेलते हुए गिरा दिया और सारा दूध गिरने लगा।

निर्मला," अरे ! देखो तो बच्चों ने यह क्या कर दिया ? देखो जरा... तुम तो रुको, तुम दोनों को अभी बताती हूं मैं। "

बाबूलाल," अरे ! क्या किया तुम दोनों ने यह, दूध का पतीला गिरा दिया। रुको, बताता हूं तुमको। तुम्हारा तो रोज का हो गया है। "

निर्मला," अरे ! उसे छोड़ो, यह देखो क्या हो रहा है ? "

दोनों पतीले की तरफ ध्यान से देखते हैं। उसमें से दूध खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। पूरे घर आंगन में और गाय के नीचे तक, बस दूध ही दूध फैलता जा रहा था। "

निर्मला," सुनो जी... यह क्या हो रहा है ? इतना दूध कहां से आ रहा है ? "

बाबूलाल," मैं भी यही देख रहा हूं। यह सब क्या अजीब सा देखने को मिल रहा है ? यह किसी जादू से कम नहीं है, निर्मला। "

बाबूलाल ने पूरा हाथ उस पतीले में डालकर देखा लेकिन अंदर ऐसा कुछ नहीं था जिससे कि दूध के आने का पता चल सके। 

बाबूलाल," अंदर तो ऐसा कुछ नहीं है। फिर यह दूध कहां से आ रहा है ? "

निर्मला खुशी से फूली नहीं समा रही थी; क्योंकि उसे समझ आ गया था कि यह कोई मामूली पतीला नहीं, जादुई है।  

निर्मला," सुनो... हम तो अमीर हो गए आज ही इसको पाकर। "

बाबूलाल," अरे ! पागल हो गई है क्या ? पहले जो दिख रहा है उसको संभालने दे फिर अपनी बात बताना। "

बाबूलाल ने धीरे-धीरे घर के सारे बर्तन भर दिए मगर फिर भी दूध खत्म नहीं हुआ। फिर उसने गुस्से में पतीले को उल्टा पटक दिया तो दूध बहना बंद हो गया। तब उसे जाकर राहत की सांस मिली। 

बाबूलाल," निर्मला, यह तो सच में जादुई पतीला है। देखो... सारे बर्तन भर गए। अब इतने सारे दूध का हम क्या करेंगे ? "

निर्मला," क्या करेंगे मतलब..? हम इसे पूरे गांव में बेचेंगे और गांव के बाहर भी। "

बाबूलाल," तुम्हारा दिमाग खराब है क्या ? इतना दूध अचानक से हम कहां बेच पाएंगे ? "

निर्मला," अरे ! अब हम मालामाल हो जाएंगे। दूध के सारे सामान बनाएंगे। दही, पनीर, खोया सब कुछ। अब हर घर में हमारे दूध से बने ही सामान होंगे। "

बाबूलाल और निर्मला की सूझबूझ से यही हुआ। दोनों उस पतीले के दूध से दही, मक्खन, घी और खोया जैसा सामान तैयार करने लगे और नगर नगर जाकर बेचना शुरू कर दिया। 

एक दिन...
निर्मला," अगर दोनों जाएंगे तो सामान बनाना मुश्किल हो जाएगा। हमें अपने साथ किसी को जोड़ना ही पड़ेगा। "

बाबूलाल," ठीक है, मगर भरोसेमंद आदमी का मिलना मुश्किल है। "

निर्मला," मैं किसी को बुलाती हूं। मगर बहुत सावधान रहना पड़ेगा। कहीं उसके सामने पतीले का राज़ न खुल जाए। "

इसके बाद गांव के कुछ लोगों को भी उसने अपने साथ रख लिया और अपना व्यापार बढ़ा लिया। देखते ही देखते उनके पास अपना खुद का घर और नौकर चाकर भी हो गए। 

वहीं दूसरी तरफ बाबूलाल का बड़ा भाई भी रहता था जो पहले से ही अमीर था। अपने भाई को बढ़ता हुआ देख उसे जलन होने लगी।

रामलाल," देखो तो... कहां इनको रोटी तक नहीं मिलती थी, आज यह मेरे से ऊपर उठ रहा है। "

चेतन," सही कहा जीजा जी, गरीब भिखारी लगता था लेकिन अब तो ठाठ बाट देखो, आपके सामने है सब कुछ। "

रामलाल," पता करो फिर... इस बात का इंतजार है। आखिर यह ऐसा क्या कर रहा है ? "

चेतन," आप चिंता मत कीजिए। मैं इसका पता लगा लूंगा आखिर माजरा क्या है ? "

रामलाल," लगाना ही पड़ेगा, तुमको फोकट का नहीं पालता हूं मैं। तुम मेरी बीवी के भाई ना होते तो रास्ते में कोई भिखारी ही होते। "

चेतन ऐसा सुनकर घर से बाहर आ गया और अपने दोस्तों के साथ बात करने लगा।

चेतन," यार, यह जीजा भी ना... जब देखो तब कुछ ना कुछ बोलता ही रहता है। पहले तो इसका कुछ करना पड़ेगा। "

चेतन का दोस्त," देखो, एक काम करते हैं, तेरे जीजा को ही गायब करवा देते हैं। "

चेतन," नहीं यार, दीदी को पता चला तो हर एक पेड़ पर बंदर बनकर घूमने को बोलेगी। "

चेतन का दोस्त," तो एक काम करते हैं यार, प्रधान जी का कुत्ता छोड़ देते हैं। सुना है बहुत भागता है वो... थककर कुछ दिन अपने आप बिस्तर पकड़ लेंगे। "

चेतन," नहीं यार, वो भी सही नहीं है। अगर गलती से काट लिया तो रोज रोज उठते बैठते मुझे काटेंगे जीजा जी कुत्ता बनकर। यह भी सही नहीं है। "

चेतन," अभी तो जीजा जी ने बाबूलाल के घर क्या चल रहा है, उसका पता लगाने को कहा है लेकिन कैसे..?"

चेतन का दोस्त," अरे ! मैं बताता हूं। गांव में 2 चोर आए हैं। दोनों चोरी करने में खूब माहिर। उनको बाबूलाल के घर भेज देते हैं कि पता करो माजरा क्या है ? और लगे हाथ चोरी भी कर लाओ। "

चेतन," हां, यह सही है। तुम उनको बाबूलाल के घर भेजो और सब कुछ समझा देना कि चोरी का माल सरदार (रामलाल) के घर चाहिए। "

चेतन का दोस्त," हां, ठीक है। "

दोनों चोर छिपते हुए बाबूलाल के घर जा पहुंचे और खिड़की से झांककर देखते हैं।

उस समय बाबूलाल और निर्मला पतीले से दूध बढ़ा रहे थे। यह सब देखते ही चोर बोला। 

पहला चोर," उड़ी बाबा... यह देखो, कोई जादू चल रहा है क्या ? यह दूध कहां से आ रहा है ? "

दूसरा चोर," अरे मूरवक ! यही है जादुई पतीला। इसी की वजह से बाबूलाल सेठ बन गइला है। इसी पे अपुन को हाथ साफ करना है आज। समझा..? "

दोनों रात में बाबूलाल के घर गए और दीवार से कूदकर अंदर आए। 

पहला चोर," उड़ी बाबा... तुम इंतजार करो। जब यह इस कमरे से बाहर जाएगा तब अपना हाथ साफ करेंगे। "

दूसरा चोर," हां, ठीक है भीड़ू। "

दोनों चोर कुछ देर इंतजार करने लगे। उसके बाद बाबूलाल और निर्मला वहां से बाहर निकले।

पहला चोर," उड़ी बाबा... यही सही समय है। उठा ले पतीले को और सरदार के घर चलते हैं। खुश होकर सरदार इनाम देगा। "

दूसरा चोर," मैं तो कहता हूं इस पतीले को लेकर कल्टी मार लेते हैं भाई। मालामाल हो जाएंगे, हां। "

पहला चोर," उड़ी बाबा... सरदार की मार भूल गया क्या ? नहीं नहीं, मैं तो जाकर उसी को पतीला दूंगा, हां। "

दोनों उस पतीले को लेकर वहां से चलने लगे और सीधे जाकर सरदार के घर जा पहुंचे। 

सरदार और चेतन दोनों उन्हें देखते रहे और सोचने लगे। 

सरदार," वाह ! साले साहब, कमाल कर दिया। तो इस पतीले की वजह से बाबूलाल सेठ बन गया ? लेकिन इसका इस्तेमाल कैसे करना है ? कुछ गड़बड़ तो नहीं होगी ? "

चेतन," अरे जीजाजी ! डालो कुछ भी इसमें, बस बहुत सारा हो जाएगा। "

सरदार," जो भी डालूं... मैं अपनी चिलम डाल दूं क्या इसमें ? "

चेतन," अरे ! नहीं जीजा जी, इतनी चिलमों का क्या करोगे तुम ? कुछ ऐसा डालो जिससे बहुत सारा धन मिले। "

दोनों ने काफी देर तक यही सोचा। 

सरदार," ऐसा क्या है जिसे डालकर वह चार गुनी हो जाए ? कोई कीमती चीज डाल दी और वह वापस नहीं आई तो। " भाई साहब, मैं ऐसा जोखिम नहीं लेता हूं। "

फिर उसमें से दूसरे वाले चोर को कुछ विचार आया।

दूसरा चोर," अरे भीड़ू ! तुम्हें तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है। मैं इसमें अपनी चुराई हुई अंगूठी ही डालकर देखता हूं। "

पहला चोर," उड़ी बाबा... रुको तो, ऐसा नहीं कर सकते। हमको कुछ पता नहीं इसके बारे में। कुछ गड़बड़ नहीं करना है कुछ नहीं। समझा तुम..? "

मगर दूसरे चोर ने बोलते बोलते अपनी अंगूठी पतीले में डाल दी। 

पहला चोर," कभी मेरी बात नहीं सुनते हो। हमेशा गड़बड़ करते हो। अरे ! कभी तो सुन लिया करो। "

दूसरा चोर,," अरे ! तुम चिल्लाना छोड़ो। यह देखो पतीले में क्या हो रहा है ? "

सरदार," यह क्या..? इतनी सारी अंगूठियां कहां से आ रही है ? "

पहला चोर," उड़ी बाबा... यह क्या हो गया ? इतनी सारी अंगूठी ? "

सब लोग उस पतीले का जादू देख हैरान रह गए; क्योंकि उस पतीली का जादू एक बार चलने पर बंद ही नहीं होता था। 

दूसरा चोर घबराता हुआ बोला।

दूसरा चोर," यार, सच बताऊं तो यह सोने की अंगूठी नहीं है। मुझे कहीं रास्ते पर पड़ी हुई मिली थी। मैंने तो बस ऐसे ही डाल दिया। "


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सरदार," अरे ! मैं इस कमरे में फस गया हूं। इन अंगूठियों को बंद करो। मुझे बचाओ। इस पतीले के जादू को रोको, बचाओ। "

देखते ही देखते अंगूठी पूरे घर में भर गई। दोनों चोर और सरदार अंगूठियों के नीचे दब गए और निकल नहीं पाए। मगर चेतन यह जादू देखते ही घर से निकल गया था। 

अपने लालच के चलते ही इनके साथ ऐसा हुआ। इस पतीले ने उनको अच्छा सबक सिखा दिया।


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