आलसी पत्नी | Aalsi Patni | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories

आलसी पत्नी | Aalsi Patni | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories


कहानियां हमारी जीवन में एक दर्पण का कार्य करती है। यह हमेशा किसी पाठक के लिए आनंदित माहौल पैदा करने के साथ-साथ, उसे कुछ नया भी सिखाती हैं। अगर आप Hindi Stories, Moral Stories या Bedtime Stories पढ़ने के शौकीन हैं तो आज मैं आपके साथ एक नई कहानी साझा करने जा रहा हूं। इस कहानी का नाम है - आलसी पत्नी। यह एक Pati Patni Ki Kahani है, तो कहानी में हमारे साथ अंत तक जुड़े रहें।

आलसी पत्नी | Aalsi Patni | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories

Aalsi Patni| Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories


 आलसी पत्नी 


दयालपुर नाम के एक छोटे से गांव में जुगनू नाम का एक गरीब किसान रहा करता था। जुगनू बहुत ही सीधा था। 

वो खेती करके ही अपना गुज़ारा चलाता था। लेकिन जुगनू की पत्नी, बबली एक नंबर की कामचोर थी। 

वो दिन भर किसी काम को हाथ नहीं लगाती थीं बल्कि दिनभर सिर्फ ठूस ठूसकर खाया करती थीं। 

जुगनू बेचारा उसकी इस आदत से काफी परेशान रहा करता था। एक दिन जुगनू खेत से थका हारा अपने घर आता है।

जुगनू," अरे ओ भाग्यवान ! बहुत तेज भूख लगी है। कुछ खाने को बनाया है ? जल्दी ले आओ... पेट में चूहे आतंक मचा रहे हैं। "

बबली," अरे अरे जी ! वो आज तो मेरे सिर में बहुत दर्द था जी, इसलिए कुछ बना ही नहीं पायी। "

तभी बबली की सास आती है। 

सास," अरी ओ बबली ! तेरे तो रोज़ ही सिर में दर्द रहता है। दिन भर कोई काम करती है भला तू ? 

बस जब देखो अपनी पेट पूजा करती रहती है। भगवान जाने कब तुझे थोड़ी सदबुद्धि आएगी ? हैं कामचोर कहीं की...। "

बबली," अरे माँ जी ! ऐसा ना बोलिए ना... मैं कामचोर तो बिल्कुल नहीं हूं, थोड़ा खाने की शौकीन हूँ पर। ज़िंदगी में खाने की सिवाय रखा ही क्या है भला ? "

सास," हे भगवान ! कैसी बहू दी है मुझे ? अच्छा ये बता... सुबह जब भगवान जी को चढ़ाने को लड्डू बनाने को दिए थे वो बनाए या नहीं ? "

बबली," जी माँ जी, लड्डू तो मैंने बना लिए लेकिन वो...। "

सास," ये वो वो... क्या कर रही है ? कहां है लड्डू ? "

बबली," मां... मांजी, लड्डू तो बड़े स्वाद बने थे ।लेकिन इतने स्वाद लड्डू देखकर मुझसे तो रहा ही नहीं गया और मैंने सारे लड्डू खा लिए। "

बबली फिर हंसने लगती है। 

सास," हे भगवान ! ये तुने क्या किया ? सारे के सारे लड्डू खा गयी तू ? हे भगवान ! क्या करूँ मैं इस भुक्कड़ बहू का ? "

जुगनू," अरे ! चुप करो तुम दोनों, मेरे दिमाग का दही बना दिया। "

अगली सुबह बबली आराम से अपने कमरे में खर्राटे मारकर सो रही होती है। तभी उसकी सास कमरे में आती है। 

सास," ना जाने कब तक सोती रहेंगी तू ? बहू उठ जा, अरे ! कहती हूँ उठ जा। "

अपनी सास के कई बार उठाने पर भी बबली उठती नहीं। 

सास," लगता है ये ऐसे नहीं उठेगी, हाँ। अभी कुछ करती हूँ। "

तभी वो एक लोटे में पानी लेकर आती हैं और बबली के ऊपर डाल देती है। पानी डालते ही बबली एकदम उठ जाती है। 

बबली," ये क्या किया आपने मां जी ? इतना अच्छा सपना देख रही थी। आय हाय कितनी सारी रबड़ी...। "

सास," बस बस बस बबली... तुझे तो सपने में भी खाने के अलावा कुछ नहीं सूझता। कभी कोई काम भी कर लिया कर। जा जाकर बाजार से टमाटर लेकर आ। 

तुझे कोई होश नहीं है, जुगनू अभी खेत से थका हारा आता ही होगा। मैं उसके लिए उसकी मनपसंद टमाटर की सब्जी बना देती हूँ। "

बबली," क्या कहा मां जी... टमाटर की सब्जी ? अरे वाह मां जी ! टमाटर की सब्जी तो मुझे बहुत पसंद है, हाँ। 

माँ जी, मुझे भी टमाटर की सब्जी दीजियेगा। मैं अभी जाती हूँ बाजार, हाँ। "

सास," हाँ ठीक है, लेकिन ज़रा जल्दी आना। ये ले पैसे। "

इसके बाद बबली की सास उसे कुछ पैसे देती है। बबली पैसे लेकर वहाँ से बाजार जाती है। बबली बाजार पहुंचती ही है कि तभी रास्ते में उसे एक जलेबी वाला दिखता है जो गर्मागर्म जलेबी बना रहा था। 

बबली," अरे वाह ! कितनी अच्छी जलेबी की खुशबू आ रही है ? आय हाय ! मुझसे तो बिल्कुल भी नहीं रुका जा रहा।

कितनी अच्छी खुशबू है ? अरे ओ जलेबी वाले भैया ! ज़रा एक प्लेट जलेबी तो देना, खुशबू बड़ी अच्छी आ रही है। "

जलेबी वाला," अरे ! हां हां क्यों नहीं..? अभी देता हूँ। ये चंदू की बनाई जलेबी हैं, जो एक बार खाएगा वो बार बार आएगा, हाँ। "

इसके बात वो बबली को जलेबी देता है। बबली जल्दी जल्दी जलेबी खाने लगती है।

बबली," अरे वाह वाह वाह... कितनी स्वादिष्ट जलेबी हैं ? भई, बड़े मज़े की जलेबी हैं। अरे भाई ! एक प्लेट और लगा दो। "

देखते ही देखते बबली जलेबी वाले की सारी जलेबियां खाने लगती है।

जलेबी वाला," अरे ! बस भी कर दे मोटी, अब क्या मेरी सारी की सारी जलेबी खा जाएगी ? इस मोती को देखकर तो ऐसा लगता है मानो सदियों से भूखी हो। "

बबली," अरे भई ! वाह वाह वाह... बड़े ही मज़े थीं तुम्हारी सारी जलेबियाँ। वाह वाह वाह... बहुत ही स्वादिष्ट थी, हाँ मज़ा आ गया। "

जलेबी वाला," हाँ, ठीक है लेकिन तुमने तो मेरी सारी जलेबी खा डाली। अब सारी जलेबी के ₹100 होते है, हाँ ? "

बबली," हैं, क्या क्या भैया ₹100 ? लेकिन मेरे पास तो केवल कुछ ही रुपये है। भाई, मैं तुम्हें ₹100 कहाँ से दू ? "

जलेबी वाला," देखो बहन, तुम ठूस ठूसकर सारी जलेबी खा गयी। अब मैं कुछ नहीं जानता, मुझे मेरे पूरे रुपये चाहिए, हाँ। "

बबली," भैया, अभी पूरे पैसे तो हैं नहीं मेरे पास, अभी तो मेरे पास जो पैसे है वो रखो। बाकी के पैसे तुम मेरे घर आकर ले जाना। यहीं गांव का सबसे नुक्कड़वाला घर है मेरा। "

जलेबी वाला थोड़ा सोचने के बाद...
जलेबी वाला," अच्छा अच्छा ठीक है, अभी तुम मुझे ये पैसे दे दो बाकी के पैसे मैं तुम्हारे घर आकर ले जाऊंगा, हाँ। "

जिसके बाद बबली अपने घर जाती है।
सास," अरे ! कहाँ रह गयी थी तू ? एक काम बोला था तुझे, उसमें भी इतनी देर लगा दी तूने। कहां है टमाटर, ला दे मुझे ? "

बबली," अरे माँ जी ! वो टमाटर तो मैं लाई ही नहीं। "

सास," अरे ! तो क्या करने भेजा था तुझे ? हे भगवान ! कैसी बहू दी है तूने मुझे हाय..? "

बबली," अच्छा अच्छा मां जी, मैं बहुत थक गयी हूँ अपने कमरे में जाकर आराम करती हूँ। "

जिसके बाद बबली वहाँ से चली जाती है। थोड़ी देर बाद जलेबी वाला बबली के घर आता है।

जलेबी वाला," अरे ! क्या कोई है इस घर में ? "

तभी अंदर से बबली की सास आती है। 

सास," अरे ! कौन हो भाई, क्यों चिल्ला रहे हो ? "

जलेबी वाला," माँ जी, मैं चंदू जलेबी वाला हूँ। आपकी बहू सुबह मेरी दुकान पर आई थी और मेरी सारी जलेबी खा गयी। मेरी जलेबी के पूरे पैसे भी नहीं दिए, वही लेने आया हूं। "

सास," हे भगवान ! बबली... ये बबली बहू भी ना अपनी आदत से बाज नहीं आएगी। "

तभी वो बबली को आवाज देती है। 

सास," अरे बबली ! बाहर आ जल्दी। "

तभी बबली बाहर आती है। 

सास," क्यों री बबली... ये मैं क्या सुन रही हूँ ? तू इस जलेबी वाले की सारी जलेबियाँ खा गयी ? " 

बबली," जी जी माझी, आज सुबह जब आपने टमाटर लेने भेजा था ना मुझे, तो रास्ते में जलेबी वाला दिख गया। 

इसकी गरमागरम जलेबी की खुशबू आते देख मुझसे रुका ही नहीं गया और मैंने जलेबी खा ली। अब मां जी मैं खाने की तो शौकीन हूँ, आप तो जानती है, हाँ। "


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तभी वहाँ पर जुगनू आता।

जुगनू," क्या बात है चंदू भाई ? तुम यहाँ कैसे, सब ठीक तो है ना ? "

सास," अरे ! इससे क्या पूछता है बेटा ? मैं बताती हूँ। ये जो तेरी भुक्कड़ पत्नी हैं ना जिसे दिन रात खाने के अलावा कुछ दिखता ही नहीं, इस जलेबी वाले की सारी जलेबियाँ खा गयी। अब उन्हीं के पैसे लेने आया है ये। "

जुगनू," अरे बबली ! कितनी बार कहा है, अपनी जुबान पर थोड़ा काबू रखा करो ? अच्छा चंदू... तुम बताओ, कितने पैसे हुए तुम्हारे ? "

जलेबी वाला," कुछ ज्यादा तो नहीं, बस ₹100 बनते हैं, वही दे दीजिये भैया। "

जुगनू," क्या कहा ₹100..? इतनी तो मेरी एक दिन की आमदनी भी नहीं है, भाई। "

जलेबी वाला," देखो जुगनू भाई, अब वो सब मैं नहीं जानता। मेरी जलेबी के इतने ही पैसे बनते है, हाँ। "

जुगनू," अच्छा, अच्छा ठीक है भाई देता हूं। "

तभी वो अपने कुरते की जेब से उसे ₹100 देता है। जिसके बाद वो जलेबी वाला वहाँ से चुपचाप चला जाता है।

जुगनू," अरे रे बबली ! ये क्या करती हो तुम ? अब मैं इतने पैसे कहाँ से लाऊं भला ? "

बबली," मुझे माफ़ कर दीजिए जी, अब मैं क्या करूँ ? आप तो जानते ही है ना, मैं खाने की कितनी शौकीन हूँ ? "

सास," हां हां, ये तो हम सब जानते हैं। देख बेटा, इस बबली के ऊपर तो किसी की बातों का असर होने से रहा। तू हाथ मुँह धो ले, मैं तेरे लिए खाना लेकर आती हूँ। "

बबली," अरे ! हां हां मां जी, मुझे भी बहुत ज़ोर की भूख लगी है। मैं भी आपके साथ अंदर रसोई में चलती हूँ। "

जिसके बाद जुगनू की माँ और बबली वहाँ से चली जाती हैं। 

जुगनू," बबली के दिन प्रतिदिन ज्यादा खाने की आदत तो बढ़ती ही जा रही है। हे भगवान ! कुछ तो अकल दो बबली को। अब मुझे ही कुछ करना होगा। "

तभी थोड़ी देर बाद जुगनू गांव के एक बाबा के पास जाता है जो इन सभी बीमारियों का इलाज अपनी बनाई जड़ी बूटी से किया करते थे।

जुगनू," बाबा, मेरी सहायता कीजिए। मैं बड़ी उम्मीद लेकर आपके पास आया हूँ। "

बाबा," क्या बात है बच्चे, बताओ हमें ? मैं तेरी जरूर मदद करूँगा। "

तभी जुगनू बाबा को सारी बात बताता है। बाबा ने जुगनू के कान में फुसफुसाकर कुछ कहा। 

उसके बाद...
ये दोनों पुड़िया ले जाओ और जैसे बताया है ठीक वैसे ही इस्तेमाल में लाना, तुम्हारी समस्या का यही हल है। "

जुगनू," ठीक है बाबा, आप मुझे यह जड़ी बूटी दे दीजिये। "

इसके बाद बाबा उसे वो जड़ी बूटी दे देता है। उधर, बबली के घर उसकी पड़ोसन रीना आती है। 

बबली," क्या कहा रीना भाभी, सरपंची के यहां दावत ? आय हाय ! क्या सच बोल रही हो ? मैं तो जरूर जाउंगी, हाँ। 

वहाँ तो बहुत अच्छा अच्छा खाने को मिलेगा ना ? अरे ! वाह वाह... मेरे तो मुंह में अभी से पानी आ गया, हां। "

रीना," अरे ! हां हां बबली, आज सरपंचनी ने पूरे गांव को दावत में बुलाया है। मजेदार भोजन खाने को मिलेगा। तुम भी चलना। "

तभी दोनों सरपंच जी के यहां जाती हैं जहाँ पूरा गांव पहले से ही मौजूद था। सभी गांव वाले बबली को देखते ही हंसने लगते है।

आदमी," अरे ! देखो देखो, आ गई जुगनू की पेटो पत्नी। अब देखना सारा भोजन कैसे चट कर जाती है ? "

सरपंच," आप सभी गांव वालों का मेरी दावत में स्वागत है, भाई । आज मेरी दावत के साथ साथ यहाँ एक प्रतियोगिता भी होगी।

जो भी मेरा भोजन अंत तक खायेगा, उसे इनाम में 10,000 रुपयों का इनाम दिया जाएगा। समझे..? "

ये बात सुनकर पूरे गांव वाले हैरान हो जाते हैं। 

बबली," अरे ! वाह वाह वाह... ये तो बहुत ही अच्छी बात है। अब तो मैं सारा खाना खा जाउंगी। "

तभी गांव के दो युवक जो काफी मोटे होते हैं सरपंच से कहते हैं।

पहला युवक," सरपंच जी, हम भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेंगे और आप देखना सरपंच जी, ये प्रतियोगिता हम दोनों ही जीतेंगे। "

तभी गांव के कुछ लोग और आ जाते हैं, इस प्रतियोगिता में भाग लेने। देखते ही देखते प्रतियोगिता शुरू की जाती है। तरह तरह के पकवान सभी लोगों के सामने रख दिए जाते हैं। 

बबली," अरे ! वाह वाह... कितने सारे पकवान है ? आज तो बहुत मज़ा आने वाला है, हाँ। "

तभी देखते ही देखते बाकी सब गांव वाले भोजन खाना शुरू करते हैं। थोड़ी देर बाद गांव के काफी लोग खाना खा खाकर उठ जाते हैं। लेकिन गांव के वो दो मोंटू और बबली
वहीं बैठे खाना खाते रहते हैं।

पहला युवक," आ हा हा... बड़े मज़े का भोजन है, भाई। वाह वाह वाह वाह... सरपंच जी, मौज करा दी आपने तो। वाह वाह वाह वाह... अच्छा अच्छा, बस अब मेरा तो हो गया भाई, बस हो गया। "

और थोड़ी देर बाद ही दूसरा मोटू भी उठ जाता है। लेकिन बबली वहाँ से उठने का नाम ही नहीं ले रही थी। बस खाये जा रही थी, खाये जा रही थी। 

सरपंच का पूरा भोजन अब खत्म होने वाला था। ये देखकर सरपंच बहुत दुखी हो जाता है।

सरपंच (मन में)," अरे रे ! ये मोटी तो खाये ही जा रही है। ऐसे तो ये मेरे घर में थोड़ा भी भोजन नहीं छोड़ेगी। हे भगवान ! अब क्या करूँ मैं ? "

तभी वहाँ पर जुगनू आता है और अपनी आँखों से सारा हाल देखता है।

जुगनू," अरे रे बबली ! अब बस भी कर दो, आखिर कितना खाओगी ? "

बबली," खाने भी दीजिए ना, खाना बहुत स्वादिष्ट है। मेरा तो मन नहीं भर रहा, जी। "

जुगनू (मन में)," लगता है, बबली को बाबा की दी जड़ी बूटी खिलानी ही होगी। "

तभी जुगनू सरपंच की रसोई में जाता है और देखता है वहाँ बहुत सारे पेड़े रखे हुए हैं। वो उन्हीं में वही जड़ी बूटी मिला देता है और उन पेड़ों को लेकर बबली के पास जाता है।

जुगनू," ये देखो बबली, ये पेड़े भी खाओ। खाओ खाओ बबली, पेड़े बहुत स्वाद भरे हैं। "

बबली," ये आपने अच्छा किया जी, बहुत अच्छा किया। पेड़े तो मुझे बहुत पसंद है, हाँ। "

तभी बबली वो पेड़े खाने लगती है। थोड़ी ही देर बाद बबली की भूख शांत हो जाती है।

बबली," बस, मेरा पेट भर गया जी। अब मुझसे और नहीं खाया जाएगा। "

बबली के ऐसे बोल सुनकर...
जुगनू," अच्छा भाग्यवान, क्या तुम सच बोल रही हो ?

जुगनू (मन में)," लगता है बाबा की जड़ी बूटी ने बबली पर अपना असर दिखा दिया है। "

बबली की ऐसी बातें सुनकर सभी गांव वाले भी खुश हो जाते हैं।

सरपंच," अरे जुगनू ! तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद। अगर तुम ये पेड़े लेकर नहीं आते तो तुम्हारी पत्नी तो मेरे घर का सारा राशन ही खा जाती, भाई। 

आज तो तुमने बचा लिया भाई। बाकी... आज ये प्रतियोगिता तुम्हारी पत्नी ने जीती है तो इनाम भी तुम को ही मिलेगा, भाई। "

तभी सरपंच जुगनू को बबली द्वारा जीती गई प्रतियोगिता के पैसे देता है। जिससे बबली और जुगनू दोनों बहुत खुश हो जाते हैं। 

बबली," देखा आपने जी... मेरे ज्यादा खाने की वजह से ये इनाम में इतने सारे पैसे जीते मैंने। देखा ना आपने, हूँ ना मैं कितनी अनमोल ? "

जुगनू," हां बबली, सो तो है। अनमोल तो तुम हो। "

बबली," लेकिन पहला पेड़ा खाते ही मेरा पेट भर गया और अब बहुत तेज दर्द हो रहा है। आय आई, मर गई।

जुगनू," इतना ठूस ठूसकर खाओगी तो दर्द नहीं तो क्या आराम मिलेगा ? चलो घर चलो, ठीक हो जाओगी। "

बबली," अरे ! बहुत तेज दर्द हो रहा है मेरे पेट में। अरे ! मेरा प्यारा पेट... क्या करूँ मैं ? अब कैसे खाऊंगी खाना ? जलेबी, समोसे... "

जुगनू," कैसी पेटू पत्नी पल्ले पड़ी है ? दर्द के मारे जान जा रही है लेकिन अभी भी खाना ही सूझ रहा है। "

बबली," मुझे बचा लीजिए। अब से आगे मैं ध्यान से खाना खाऊंगी, सच में। अरे ! मुझे बचा लीजिए। हाय मेरा पेट ! "

जुगनू बाबा की दी हुई एक और जड़ी बूटी की पुड़िया बबली को खिलाता है। जिससे बबली थोड़ी ही देर में सही हो जाती है।

बबली," आपने जो पुड़िया खिलाई, उससे मेरा दर्द तो मानो गायब ही हो गया। धन्य हो बाबा जी ! अब तो मैं तरीके से ही खाना खाऊंगी। "


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जुगनू," वो तो एक साधारण पुड़िया ही है। सारा कमाल तो तुम्हारी इच्छा शक्ति का है बबली। तुम्हें ज्यादा ना खाने की इच्छा से ही यह संभव हुआ है। "

सास," ले जुगनू... गरमा गरम पकोड़े बनाए हैं, खा ले। "

बबली," अरे मां जी ! क्या सच में पकौड़े बनाए हैं ? अरे वाह ! अ अ अ... आप लोग ही खाओ मां जी, मेरा तो मन नहीं है। "

यह सुनकर सब लोग जोर-जोर से हंसने लगते हैं।


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