दुष्ट सेठ | Dusht Seth | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories

दुष्ट सेठ | Dusht Seth | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories


कहानियां हमारी जीवन में एक दर्पण का कार्य करती है। यह हमेशा किसी पाठक के लिए आनंदित माहौल पैदा करने के साथ-साथ, उसे कुछ नया भी सिखाती हैं। अगर आप Hindi Stories, Moral Stories या Bedtime Stories पढ़ने के शौकीन हैं तो आज मैं आपके साथ एक नई कहानी साझा करने जा रहा हूं। इस कहानी का नाम है - दुष्ट सेठ। यह एक Moral Story है, तो कहानी में हमारे साथ अंत तक जुड़े रहें।

दुष्ट सेठ | Dusht Seth | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories

Dusht Seth | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories


 दुष्ट सेठ 


एक बार की बात है। बलियापुर गांव में गायत्री नाम की एक लड़की रहा करती थी। बचपन में माँ-बाबा के गुजर जाने के बाद से ही वो अपना और अपने भाई दोनों का ख्याल रखती थी।

गायत्री जितना भी कमाती थी वो सारा का सारा घर के किराये, गोलू की फीस, राशन में लग जाया करता और बचे खुचे पैसों से वो पूरा महीना घर चलाती।

गायत्री का एक सपना था कि वो अपने लिए एक घर खरीदे। एक दिन सुबह गायत्री का मकान मालिक, धनीराम उनके घर पहुंचा।

धनीराम," घर पर कोई है ? गायत्री... गायत्री। "

गायत्री कमरे से बाहर आती है।

धनीराम," अरे गायत्री ! तू आ गईं..? बता मेरा किराया कब देगी ? तुम तो आओगी नहीं कभी खुद से किराया देने, तो मैंने सोचा मैं ही आ जाऊ, हाँ। "

गायत्री," इस बार तनख्वाह थोड़ी देर से आएगी इसलिए नहीं दे पायी। "

धनीराम," ये तो तुम्हारा रोज़ का है। कभी भाई बीमार, कभी पगार नहीं आयी। तुम्हारा तो हर बार का है। "

गायत्री," नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। मैं आपको किराया दे दूंगी, जैसे ही तन्खा आ जाएगी। "

धनीराम," अरे ! छोड़ो तुम्हारा जब मन होता है तब किराया देती हो। कभी टाइम से भी किराया दे दिया करो। "

गायत्री," ये सब मैं जानबूझकर नहीं करती, बस मजबूरी की वजह से करना पड़ता है। "

धनीराम," अरे यार ! अरे... तुम तो दुखी हो गयी। अच्छा सुनो... मैं क्या कहता हूँ, तुम ऐसा करो, मुझसे शादी कर लो। फिर तुम्हें किराया भी नहीं देना पड़ेगा। "

ये सब सुनकर गोलू भागकर बगल वाली दादी को बुला लाता है। दादी भागते हुए गायत्री के घर आती है। 

दादी," क्या... तेरा दिमाग तो ठीक है ना ? इस उम्र में तू कैसी बातें कर रहा है ? अरे ! शर्म कर, तेरी बेटी जैसी है। इसने बोल दिया ना... जैसे ही पैसे आयेंगे वो दे देगी। अब तू जा, मुझे उससे कुछ काम है। "

धनीराम," अरे ! ऐसे कैसे ? "

दादी," मैंने कहा ना... तू जा अब। तेरे पास कोई काम है कि नहीं जो तू यहाँ आ जाता है ? जा यहाँ से...। "

धनीराम," इस बार जा रहा हूँ। अगर अब से किराया टाइम पर नहीं दिया तो घर से निकाल दूंगा। समझी..? "

दादी," तू इस पागल की बातों को दिल से मत लगा। ये बुड्ढा तो पागल है। क्या तुझे देर नहीं हो रही है ? तुझे भी तो काम पर जाना है ? "

गायत्री," दादी, आज अगर आप नहीं होती है तो पता नहीं मुझे क्या क्या सुनना पड़ता ? अच्छा हुआ आप टाइम पर आ गई, ठीक है दादी अब मैं चलती हूँ। "

इसके बाद गायत्री गोपाल की फैक्टरी में पहुँच गई। 

गोपाल," आओ गायत्री, मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था। आज हमें शहर से बहुत बड़ा ऑर्डर मिला है। 

और हाँ गायत्री... कढ़ाई का काम तुम ही करोगी। अगर ये ऑर्डर पूरा हो गया तो मैं तुम सबको बोनस दूंगा। सब मन लगाकर काम करना। "

सब अपने अपने काम में लग गए। कई दिनों तक काम करने के बाद ऑर्डर पूरा हो गया।

गायत्री," सुनो रेशमा, मैं घर जा रही हूँ। तुम्हारा काम हो गया है, तो तुम भी चलो। "

रेशमा," नहीं, अभी थोड़ा काम बाकी है। तुम जाओ, मैं मालती के साथ आ जाउंगी। "

गायत्री," ठीक है। "

इसके बाद गायत्री घर चली गयी। उसके जाते ही मालती बोलती है।

मालती," ये गायत्री ना, जब देखो अपने मन की करती है। पहले तो सुबह देर से आती है और शाम को जल्दी चली जाती है। "

रेशमा," छोड़ ना, तू भी कुछ भी बोलती है। सुबह उसके घर में कुछ हो गया था और अभी उसका काम खत्म हो गया। वैसे भी जाने का समय तो हो चूका है। "

मालती," तू तो जब देखो उसकी तारीफ करती है। "

रेशमा," अरे छोड़ ना... बहुत काम करना बाकी है, अभी जल्दी जल्दी अपना काम कर। "

अगले दिन सारा ऑर्डर पैक करके शहर भेज दिया जाता है। दो दिन बाद सब अपना काम कर रहे थे, तभी शहर से उस कंपनी का मैनेजर वहाँ पहुंचता है।

मैनेजर," गोपाल, कहाँ हो तुम ? "

गोपाल," अरे ! आप यहाँ... कैसे आना हुआ ? "

मैनेजर," बस करो ये सब... तुम्हें मैंने कितना जरूरी ऑर्डर दिया था और तुमने क्या किया है ? कम से कम ऑर्डर भेजने से पहले कपड़ों को देख तो लेते। "

गोपाल," अब क्या हुआ सर ? "

मैनेजर," ये देखो... कहीं से कपड़े खिंचे है, कहीं पर धागे उलझे हैं। मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी है। मुझे हमारे सारे पैसे चाहिए बस। "

गोपाल," ऐसा मत कहिए, हमे एक और मौका दे दीजिये। "

मैनेजर," कुछ नहीं सुनना मुझे। मुझे बस मेरा पैसा चाहिए बस। "

गोपाल बहुत दुखी हो जाता है, वो अंदर जाकर पैसे लाता है और मैनेजर को उसके सारे पैसे दे देता है।

मालती," देख लिया आपने... इसकी तारीफ करते नहीं थकते थे और उसने क्या किया ? एक काम दिया था, वो भी ढंग से नहीं किया। 

मैं तो कहती हूँ इसको यहाँ से निकाल दो। आज इसकी वजह से पहली बार आपको किसी से इतना सब कुछ चुनना पड़ा। "

गायत्री," ये कैसी बातें कर रही हो ? तुम्हें क्या लगता है मैं ऐसे काम करके भेजूंगी ? मैंने कभी भी ऐसा काम नहीं किया। समझी तुम..? "

मालती," पहले तो काम खराब करती हो फिर झूठ बोलती हो।

गायत्री," तुम ये सब क्यों बोल रही हो ? "

गोपाल," तुम चली जाओ। तुम्हारे जीतने भी पैसे है, वो मैं दे दूंगा। आज से पहले किसी ने भी मुझे मेरे काम के लिए इतना बेइज्जत नहीं किया। आज मुझे पहली बार यह सब सुनना पड़ा। तुम चली जाओ बस। "

यह सब सुनने के बाद गायत्री दुखी मन से वहाँ से चली गई।गायत्री गांव के तालाब के पास जाकर बैठकर रोने लगी। शाम होते ही गायत्री अपने घर वापस लौट गयी। 

दादी," क्या हुआ गायत्री..? तुम इतनी दुखी क्या हुआ ? क्या हुआ बच्चे ? "

गायत्री," दादी, जो ऑर्डर हमारी फैक्टरी में आया था, उसे किसी ने खराब कर दिया। सब कह रहे हैं कि वो सब मैंने किया। आप तो जानती है ना दादी, मैं ऐसा गलत काम कभी नहीं कर सकती ? "

दादी," हाँ, मैं जानती हूँ। तू चिंता मत कर, सब ठीक हो जाएगा। "

गायत्री," आज अगर माँ और बाबा जिंदा होते तो मुझे ये सब नहीं सहना पड़ता। "

दादी," ऐसे मन उदास नहीं करते बेटा, कभी कभी समय बदलने में वक्त लगता है। जानती हो सबसे ज्यादा जरूरी क्या है ? 

ये समझना कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा। इसलिए आराम से घर जाओ। देखना... तुम्हें जल्दी कोई काम मिल जाएगा। "

गायत्री," दादी, मुझे खुद की चिंता नहीं है। मुझे गोलू के लिए डर लग रहा है। बिना नौकरी के मैं उसकी देखभाल कैसे करूँगी ? "

दादी," तू चिंता मत कर बेटा, सब ठीक हो जाएगा। "

इस इसके बाद गायत्री घर चली गई। उसने देखा कि उसका भाई घर पर इंतजार कर रहा था।

गोलू," दीदी, आप आ गयी ? "

गायत्री," तुम बाहर क्या कर रहे हो ? अंदर चलो। "

गोलू," क्या हुआ दीदी..? आप उदास हो। "

अरे ! नहीं बाबा... मैं बस थक गयी हूँ। चलो तुम पढ़ाई करो, मैं रात का खाना बनाती हूँ। "

रात का खाना खाने के बाद गोलू सो गया। लेकिन गायत्री नहीं सो पायी। वो पूरी रात रोती रही और माँ को याद करके रोते रोते उसकी आंख लग गयी।

सपने में उसे रौशनी आती हुई दिखी। 

गायत्री," ये कैसे रौशनी है ? "

मां," मैं हूँ गायत्री। रो मत बेटा... आज के बाद तू कभी दुखी नहीं रहेगी। कल जब तू उठेगी तो तुझे तेरी जिंदगी का सबसे बड़ा तोहफा मिलेगा। "

गायत्री," आप आज तक क्यों नहीं आईं मुझसे मिलने ? आपको क्या आज से पहले मेरी याद नहीं आई ? बोलिए...। "

मां," कभी कभी बहुत सी चीजें हमारे हाथ में नहीं होती। भूल जाओ वो सब, कल से तुम्हारी जिंदगी बदलने वाली है। 

कल का इंतजार करो। बस जाओ अपना ध्यान रखो, कल से तुम्हारी ज़िंदगी आसान हो जाएगी। "

अगले दिन जब गायत्री उठती है तो सामने एक डिब्बा देखती है। वो उस डिब्बे को खोलती और देखती है, उसमें एक सुई है।

गायत्री," मां ने तो कहा था कि वो कुछ ऐसा देंगी जिससे मेरी किस्मत बदल जाएगी। पर ये तो सुई है, इससे कैसे मेरी किस्मत बदलेगी ? ये सब मेरे साथ ही क्यों हो रहा है भगवान ? "

सुई," क्या तब से बक बक कर रही हो ? सुबह सुबह उठा दिया। अभी तो मेरा सपना पूरा भी नहीं हुआ था। "

गायत्री," तुम बोल सकती हो ? "

सुई," अपनी तरह समझा है क्या ? जब देखो रोती रहती हो। "

गायत्री," मैं हर टाइम नहीं रोती। समझी..? "

सुई," हाँ हाँ, छोड़ो भी। "


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गोलू," दीदी, ये तो बड़ा मजेदार है। "

सुई," तुम्हें पता है, तुम्हारी माँ तुम्हारे लिए बहुत परेशान होती है ? इसलिए उन्होंने मुझे भेजा है तुम्हारे लिए। आज के बाद रोना मत वरना मुझे बहुत डांट पड़ेगी। 

चलो अब बहुत काम करना है। सबसे पहले आज हम दुकान से कुछ कपड़े खरीदेंगे, उन पर कढ़ाई करके कल बाजार में बेच देंगे। "

गायत्री," मेरे पास तो पैसे ही नहीं है। मैं कपड़े कैसे खरीदूंगी ? "

सुई," कोई बात नहीं, वो सब मैं देख लूंगी। तुम्हें बस उन कपड़ों में कढ़ाई करके तैयार करना होगा और कल हम बाजार में उन्हें बेचने जाएंगे। "

गायत्री," पर इतनी जल्दी मैं सारे कपड़े कैसे तैयार करूँगी ? "

सुई," उसके लिए मैं हूँ ना। तुम बस मन में सोचना, बाकी काम मैं कर दूंगी। "

तब तक वहाँ पर मकान मालिक पहुँच गया। 

धनीराम," अरे ओ गायत्री ! किराया कब तक दोगी ? बोलते बोलते थक गया हूँ मैं। "

गोलू," ये फिर आ गया। हर बार दीदी को परेशान करता रहता है। "

सुई," अच्छा ये बात है, आज के बाद नहीं करेगा। "

गोलू," कैसे..? " 

सुई," तुम बस देखते जाओ। "

इसके बाद सुई उसे परेशान करने लगी। उसे इधर उधर बहुत ज्यादा चुभने लगी। 

धनीराम," अरे अरे ! ये क्या..? अरे ! रोको कोई इसे। अरे अरे भगवान ! आई, ये क्या हो रहा है ? ये कहाँ फंस गया मैं ? "

इसके बाद धनीराम परेशान होकर वहाँ से चला गया। सब हंसने लगे। 

गोलू," आज तो बड़ा मज़ा आया, कैसे नाच रहा था वो ? तुम तो बड़े कमाल की हो। "

सुई," बोला था ना, मैं कुछ भी कर सकती हूँ। "

गायत्री," चलो हमें बहुत सारा काम करना है। कल सुबह हमें बाजार भी तो जाना है। "

सुई," तुम्हें जादू देखना है गोलू ? "

गोलू," हाँ, मुझे देखना है। "

सुई," तुम सब अपनी आँखें बंद करो। "

जैसे ही उन सब ने अपनी आंखें बंद की, जादुई सुई ने अपने जादू से वहाँ कुछ कपड़े मेज पर रख दिए और कढ़ाई के लिए जितना भी सामान चाहिए था, वो भी रख दिया। घर पर पैसे ना होने की वजह से घर में खाने के लिए ज्यादा कुछ नहीं बचा था।

गोलू," दीदी, भूख लगी है। "

गायत्री जैसे ही किचन में गई, उसे पता चला।ख

गायत्री," खाना तो बहुत कम है। इतने में कुछ नहीं हो पायेगा किसी का। "

अब जैसे ही जादुई सुई किचन में जाकर देखने लगी कि खाने के लिए कुछ भी नहीं है तो वो अपने जादू से सारा राशन भर देती है और बहुत सारा खाना जमीन पर लगा देती है।

गोलू," इतना सारा खाना, आज तो बहुत मज़ा आएगा। "

सुई," जल्दी जल्दी खा लो, उसके बाद हमें काम भी करना है। "

सब के सब भरपेट खाना खाते है। खाना खाने के बाद सब के सब काम करने के लिए मेज़ के सामने खड़े हो जाते हैं। 

इसके बाद गायत्री अपने मन में जो जो डिजाइन सोचती है, जादुई सुई वैसी ही डिजाइन कपड़ों पर बनाने लगती है। रात तक सारे कपड़े तैयार हो जाते हैं।

अगली सुबह गायत्री बाज़ार जाती है और एक अच्छी सी जगह देखकर वहाँ पर अपना सामान लगा देती है। 

गायत्री," आइये आइये... यहाँ देखिये, कितने अच्छे अच्छे कपड़े हैं ? ऐसी कारीगरी आपने कभी नहीं देखी होगी। देखना... बिल्कुल मुफ्त है। जो भी आएगा, खुद को निराश नहीं पायेगा। एक बार जरूर आएं। "

दो औरतें आपस में बातें करते हुए... 
पहली औरत," चलें क्या..? एक बार देखते है ना कैसे कपड़े है, देखने में क्या दिक्कत है ? अब चलो ना। "

दोनों की दोनों गायत्री के सामने आ जाती है। 

गायत्री," आइये ना... ये देखिये। "

पहली औरत," अरे ! ये तो कितना सुंदर है ? तू देख ना। "

दूसरी औरत," अरे ! हाँ... ये तो बहुत सुन्दर है। ऐसा करो, मुझे एक जोड़ी दे दो। "

धीरे धीरे वहाँ के सारे कपड़े बिक गए। काम खत्म होने के बाद गायत्री अपने घर लौट गयी।

गोलू," कैसा गया आज का दिन ? "

गायत्री," आज तो कमाल हो गया। इतने सारे लोग थे कि सामान काम पड़ गया। पता है... उन्हें हमारा काम बहुत पसंद आया ? 

वो बस मांगते ही जा रहे थे। हमें बस आगे भी ऐसे ही मेहनत करनी होगी। "

गायत्री दिन रात मेहनत करने लगी। कुछ महीनों में गायत्री ने अपने लिए एक दुकान खरीद ली और उस दुकान से जितनी भी कमाई होती, उससे गायत्री ने घर खरीद लिया। तीनों वहां खुशी से रहने लग गए।

एक दिन गायत्री की दुकान पर एक औरत आई। 

औरत," आपका नाम गायत्री है क्या ? मैं आपका काम देख सकती हूं ? "

गायत्री," हाँ जी, बिलकुल। "

गायत्री इस औरत को अपने कुछ काम के नमूने दिखाती है।

औरत," ये सब तुमने कहाँ से सीखा ? "

गायत्री," मैंने ये सब खुद से ही सीखा है। "

औरत," वाह ! तुमने तो बड़ी कम उम्र में पक्का काम सीख लिया है। "

गायत्री," हाँ जी। " 

औरत," हमें 130 सेट चाहिए। क्या आप हमें एक हफ्ते में ये ऑर्डर पूरा करके दे सकती है ?

गायत्री," ठीक है। " 

औरत," हमारा बिज़नेस बहुत टाइम से अच्छा नहीं चल रहा है। अगर आप हमारी मदद करेंगे तो हमें लगता है शायद हमारे बिज़नेस को मदद मिलेगी। मैं एक हफ्ते बाद आती हूँ। आपके पास कल सारा मैटेरियल पहुँच जायेगा। "

गायत्री," ठीक है। "

सभी ने मिलकर एक हफ्ते में ऑर्डर कंप्लीट कर दिया।

औरत," नमस्ते ! ऑर्डर पूरा हो गया क्या ? "

गायत्री," हाँ जी, पूरा हो गया। बस हम आपका इंतजार कर रहे थे। "

औरत," सारा सामन ठीक से पैक कर दिया है ना ? "

गायत्री," हाँ जी। " 

औरत," ये लीजिये आपकी पेमेंट। "

इसके बाद वो औरत सामान लेकर चली जाती है। 

जो मैनेजर पहले गोपाल की दुकान पर आया था, वो मैनेजर इसी औरत की कंपनी में काम करता है। 

औरत," ये लो, इस बार हम जीतने भी लहंगे डिजाइन करेंगे, इन्हीं कपड़ों से करेंगे। "

मैनेजर," मैडम, आप ये कपड़े कहाँ से लायी हैं ? इनमें तो कितना बढ़िया काम हुआ है ? "

मैडम," मेरी मौसी की बेटी ने इनसे कपड़े खरीदे। जब मैंने उसके कपड़े देखे तो मैंने पूछा कि तुमने ये कहां से खरीदे ? 

तो उसने मुझे उनका पता बताया। फिर मैंने वहाँ जाकर उनको हमारे लिए 130 सेट पूरे करने का ऑर्डर दिया। "

मैनेजर," मैडम, आप क्या हमें उनसे मिलवा सकती है ?
आगे से जितना भी काम होगा, खुद जाके कंप्लीट कर दूंगा। "

मैडम," ठीक है, मैं कुछ दिनों बाद दूसरा ऑर्डर देने के लिए उनके पास जाउंगी, तब तुम हमारे साथ चलना। "

कुछ दिनों बाद मैडम और वो मैनेजर दोनों के दोनों गायत्री से मिलने उसकी दुकान पर जाते हैं। 

दोनों कार से उतरते हैं। इसके बाद वो औरत गायत्री की दुकान में काम करने वाले एक आदमी से कहती हैं।

मैडम," गायत्री को बुलाना। "

गायत्री बहार आती है। 

मैडम," इनसे मिलिए, ये हैं गायत्री। वो ऑर्डर इन्होंने ही पूरा किया था। "

मैनेजर," तुम..? तुमने ये ऑर्डर पूरा किया है ? "

मैडम," तुम क्या इन्हें जानते हो ? "

मैनेजर," हाँ मैडम, उस दिन जो हमारी कंपनी का बहुत बड़ा लॉस हुआ था, इन्हीं की वजह से हुआ था। 

इन्होंने कपड़े इतने बेकार भेजे कि उस दिन का पूरा इवेंट इनकी वजह से खराब हो गया था। "

मैडम," ये तुम कैसी बातें कर रहे हो ? इन्होंने इतना अच्छा काम किया है। भला एक कारीगर अपना काम खराब करके अपना नाम क्यों खराब करेगा ? "

मैनेजर," वही मैं भी सोच रहा हूँ। तो उस दिन ये काम किसने किया ? "

गायत्री," मैंने सारा काम सही किया था, लेकिन पता नहीं क्या हुआ कि जब आप उस पार्सल को ले कर गए, सारे कपड़े खराब निकले ? 

मैंने तो सारा खुद एक एक कपड़ा देखकर पैक किया था। उस वजह से मेरी नौकरी भी हाथ से चली गयी। "

मैनेजर," मुझे माफ़ कर दो। हमें उस दिन इतना बड़ा लॉस हुआ कि गुस्से में मैंने तुम्हें बहुत भला बुरा कह दिया। उस दिन मैंने गोपाल को भी बहुत कुछ सुना दिया था। 

मुझे उससे माफी मांगनी चाहिए। मैं आज ही उनसे माफी मांगने जाऊंगा। तुम भी चलो। सबको यह बताना जरूरी है कि उस दिन गलती तुम्हारी नहीं थी। "

मैडम," हां गायत्री, तुम्हे जाना चाहिए। जिसने ये गलत काम किया है, उसे ये सजा मिलनी चाहिए। "

गायत्री, मैडम और वो मैनेजर तीनों के तीनों गोपाल के कारखाने में जाते हैं।

गोपाल," आप सब यहां..? "

मैनेजर," मुझे माफ़ कर दो, गोपाल। मुझे आज पता चला कि उस दिन गलती गायत्री की नहीं थी। किसी ने जानबूझकर वो कपड़े खराब किये थे। 

लेकिन वो कौन था ? वो सब मुझे नहीं पता लेकिन तुम्हारे लोगों में से ही कोई है। "

गोपाल," उस दिन आखिर में कौन गया था ? "

मालती," गायत्री के जाने के बाद मैं और रेशमा ही बचे थे। उसके बाद आपने मुझे मार्केट भेज दिया था। उस दिन तो मुझे लगता है... रेशमा ने ही ताला लगाया था। इससे ज्यादा मुझे नहीं पता। "

गोपाल," अगली सुबह सबसे पहले कौन आया ? "

कर्मचारी," रेशमा ने शाम को ताला लगाया था, इसलिए मैंने जल्दी आकर सुबह ताला खोल दिया। सारा सामान पैक था इसीलिए मैंने सामान को गाड़ी में रखकर सेट कर दिया। 

उसके बाद आप आए और आपने कहा कि गाड़ी को शहर भिजवा दो तो मैंने शहर भिजवा दिया। "

गायत्री," लेकिन मैंने तो कपड़ों की पैकिंग ही नहीं की थी तो सुबह कपड़े पाक किसने किये ? "

कर्मचारी," मुझे नहीं पता... जब मैं आया था तब तो सारे कपड़े पैक थे। "

मालती," मैं भी चली गयी थी इसलिए मैंने तो नहीं किये। "

गोपाल," रेशमा, ये कपड़े क्या तुमने पैक किये थे ? "

रेशमा," नहीं नहीं, मैंने नहीं किए। "

इसके बाद जादुई सुई रेशमा को परेशान करने लगी। 

रेशमा," मुझे बचाओ। कोई... कोई इसे हटाओ। ये बार बार मुझे क्यों चुभ रहीं हैं ? क्या हो रहा है ? कोई रोको इसे... मैं बताती हूँ, बताती हूँ। "

गोपाल," सच बताओ, अगर तुमने सच नहीं कहा तो मैं तुम्हें पुलिस के हवाले कर दूंगा। फिर बाकी पुलिस ही देखेगी, उन्हें क्या करना है ? "

रेशमा," नहीं नहीं, आप पुलिस को मत बुलाईये। मैं बताती हूँ। वो सब मैंने किया था। "

गोपाल," लेकिन तुमने वो सब क्यों किया ? "

रेशमा," इस गायत्री की वजह से... जब देखो तब सब इसकी तारीफ करते रहते हैं। यहाँ तक की मेरी दादी भी। 

उनके लिए तो उनकी असली पोती ये है, मैं नहीं। जब देखो परेशान करके रखा हुआ था। इस सुई मैं धागा डालें तो वो और हम चाहे जितना मर्जी काम कर लें, कोई हमारी तरफ देखता नहीं था। 

इसलिए मैंने उस दिन गायत्री और मालती के जाने के बाद इसके कपड़े खराब कर दिए और पैकिंग करके रख दिए। "

गायत्री," तुम्हें शर्म नहीं आई रेशमा ? तुम्हें पता है... मेरे पास केवल एक यही नौकरी थी जिससे मैं अपना घर चला रही थी। 

नौकरी जाने के बाद मैं और मेरा भाई सड़क पर आ गए थे। क्या करते हम, एक बार भी नहीं सोचा तुमने..? तुम इतनी मतलबी कैसे हो गयी ? "

मैनेजर," मैं तो कहता हूँ इसे पुलिस के हवाले कर देते हैं, धोखाधड़ी के आरोप में। "

गायत्री," नहीं, जाने दो इसे। अगर इसे जेल में भिजवा दिया तो दादी अकेली रह जाएंगी। इस उम्र में इतनी परेशानी वो नहीं झेल पाएंगी। 

उनके काफी कर्ज है मुझ पर। उनके लिए इतना तो मैं कर ही सकती हूँ। हाँ...और ये गंदी सोच अपने दिमाग से निकाल देना रेशमा। 

आज तो बच गई, अगर अगली बार नहीं बची तो जिंदगीभर खुद को कोसती रहोगी। "


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मैनेजर," मैं चलता हूँ गायत्री। और हाँ... आगे से हमारे सारे ऑर्डर को तुम ही संभालोगी। तुम्हारा काम हम सब को बहुत पसंद आया। 

हम चाहते हैं कि तुम हमारे साथ पार्टनर बनकर रहो और कपड़ों में कढ़ाई का काम तुम्हीं देखो। मुझे माफ़ कर दो, गायत्री। 

काश ! अगर सब मैंने समय पर पता कर लिया होता तो तुम्हें इतना सब कुछ नहीं सहना पड़ता। "

गायत्री," कोई बात नहीं... अगर उस दिन वो सब नहीं होता तो मैं आज जिंदगी में इतनी खुश ना होती। भगवान ने इन सबसे मुझे एक मौका दिया ताकि मैं खुद के लिए कुछ अच्छा कर सकूँ। "

उसके बाद सभी अपने घर लौट जाते हैं। गायत्री और भी मेहनत करती है और धीरे धीरे सभी अपना जीवन खुशी से बिताने लगते हैं।


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