भेड़िया राजकुमार | Bhediya Rajkumar | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories

भेड़िया राजकुमार | Bhediya Rajkumar | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories

कहानियां हमारी जीवन में एक दर्पण का कार्य करती है। यह हमेशा किसी पाठक के लिए आनंदित माहौल पैदा करने के साथ-साथ, उसे कुछ नया भी सिखाती हैं। अगर आप Hindi Stories, Moral Stories या Bedtime Stories पढ़ने के शौकीन हैं तो आज मैं आपके साथ एक नई कहानी साझा करने जा रहा हूं। इस कहानी का नाम है - भेड़िया राजकुमार। यह एक Moral Story है, तो कहानी में हमारे साथ अंत तक जुड़े रहें।

भेड़िया राजकुमार | Bhediya Rajkumar | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories

Bhediya Rajkumar | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories



 भेड़िया राजकुमार 


जूनागढ़ नामक राज्य में राजा भैरव सिंह का राज्य है। महारानी तारा भी एक योद्धा हैं। वह भी राज्य के लिए अपना पूरा योगदान देती हैं।

हर रोज की तरह आज भी राजा ने जन सुनवाई के लिए दरबार लगाया। सब लोग दरबार में उपस्थित हो गए। महारानी तारा भी आठ साल के नन्हे राजकुमार के साथ दरबार में उपस्थित हुई। 

राजा," सभी लोग अपनी अपनी समस्याएं रख सकते हैं। "

मंत्री," सभी एक-एक करके अपनी परेशानी बताइए। "

तभी गांव के कुछ लोग एक साथ खड़े हुए और उनमें से एक व्यक्ति रतन बोला। 

रतन," महाराज, हम सभी की अलग-अलग समस्याएं नहीं है बल्कि सभी की दो ही समस्याएं हैं। "

मंत्री," देखो हमारे पास इतना समय नहीं है। पहेलियां मत बुझाओ और जल्दी से अपनी बात रखो। "

रतन," क्षमा कीजिए परंतु हमारे पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है और आधा पेट भूखा सोकर भी हमें भेड़िए का डर है। भेड़िया रोजाना किसी न किसी को मारता जा रहा है। "

मंत्री," हमने उस भेड़िये को पकड़ने के लिए अपने सैनिक लगाए हुए हैं। थोड़ा सब्र कीजिए। "

राजा," रोजाना एक व्यक्ति की जान जा रही है और तुम सब्र करने के लिए बोल रहे हो। "

मंत्री," नहीं महाराज, वह भेड़िया बहुत शातिर है और मुझे लगता है कि वह कोई जादुई भेड़िया है क्योंकि गोली लगने के बाद भी वह जीवित है। "

राजा," ऐसा कैसे हो सकता है ? "

मंत्री," महाराज, मैं बिल्कुल सत्य बोल रहा हूं। सभी नगरवासी इस बात के गवाह हैं। भेड़िये के घायल हो जाने के बाद भी वह अभी तक जिंदा है। "

राजा," तुम्हें जितने भी सिपाहियों की जरूरत हो, ले सकते हो लेकिन 2 दिन के अंदर मुझे वह भेड़िया चाहिए। मैं सभी के भोजन की व्यवस्था जल्दी ही कर दूंगा। "

सभी लोग एक उम्मीद के साथ वहां से लौट जाते हैं। महाराजा भैरव सिंह अपनी राजगद्दी पर चुपचाप बैठ गये। तभी महारानी तारा भी वहां आईं। 

महारानी," मैं भी राज्य की स्थिति से बहुत दुखी हूं लेकिन हमें इसका कोई ना कोई रास्ता तो निकालना ही होगा। "

राजा," यूं ही सोचते रहने से कुछ नहीं होगा और जनता भूख से तड़प तड़प कर मर जाएगी। "

महारानी," हम इसके लिए क्या कर सकते हैं ? "

राजा," जब से पड़ोसी राज्य के राजा ने हम पर हमला किया है तब से सब खत्म होता जा रहा है। 

उसने सब कुछ लूट लिया। हमारे पास इतना धन नहीं है कि हम पूरे नगर के लिए अनाज खरीद सके। "

महारानी," मैं गुरुदेव के पास मंदिर जा रही हूं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि गुरुदेव कोई ना कोई रास्ता जरूर निकालेंगे। "

महारानी तारा, राजकुमार वैभव के साथ अपने महल के अंदर बने हुए मंदिर में गई। दोनों ने गुरुदेव को प्रणाम किया। 

महारानी," गुरुदेव, मैं बहुत चिंतित हूं। "

गुरुदेव," जानता हूं। तुम्हारी इस चिंता का हल भी तुम्हारे पास है। "

महारानी," लेकिन कैसे गुरुदेव ? "

गुरुदेव," कुछ वर्ष पहले की घटना याद करो। तुम्हारे हाथ में यह अंगूठी कैसी है और कहां से मिली ? "

कुछ वर्ष पहले हुई घटना को याद करके...
महारानी," गुरुदेव, मुझे याद आ गया। मुझे सब कुछ याद आ गया लेकिन क्या सच में ऐसा है ? इतने वर्षों पहले का श्राप मुझे अब तक परेशान कर रहा है ? "

गुरुदेव," मैं जानता हूं, सब कुछ तुमसे अनजाने में हुआ लेकिन श्राप का असर तो पड़ता है। बाकी ईश्वर के अलावा कोई भी श्राप को दूर नहीं कर सकता। "

महारानी," गुरुदेव, मेरी यह अंगूठी पूरे राज्य को बर्बाद कर सकती है लेकिन मैं इसे अपने हाथ से कैसे उतार सकती हूं ? "

गुरुदेव," महारानी, तुमको इस अंगूठी को हाथ से उतारना ही होगा। "

महारानी," इस अंगूठी में किसी की जान है। ये जानते हुए भी मैं यह खून कैसे कर सकती हूं ? "

गुरुदेव," महारानी, आपने स्वयं इस राज्य की भलाई के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है। आपने ना जाने कितनी बार तलवार उठाई है ? "

महारानी," तलवार उठाना और अंगूठी उतारने में काफी अंतर है। "

गुरुदेव," एक तरफ पूरा राज्य और एक तरफ एक व्यक्ति... अब आपकी इच्छा है। आप यहां किसको बचाना चाहती हो ? "

महारानी तारा की आंखों में आंसू आ गए। महारानी ने वैभव का हाथ पकड़ा और अपने कक्ष की ओर जाने लगी। 

राजकुमार," मां, आप रोजाना भूल जाती हो कि इस समय हम कहां जाते हैं ? "

महारानी," ओ ! हां... मुझे याद ही नहीं रहा। ठीक है, चलते हैं। "

 महारानी ने दो सिपाहियों से कहा।

महारानी," भंडार गृह में जितना भी सामान उपस्थित है वह सारा रख लीजिए और औषधि भी रख लीजिए। "

महारानी तारा आखिरी अनाज के बचे हुए दाने लेकर जनता के बीच पहुंच गई और सभी को थोड़ा-थोड़ा दे दिया। 

नन्हे राजकुमार वैभव ने भी बीमारों को औषधि दी और कुछ लोगों के घावों पर राजकुमार ने अपने नन्हें हाथों से मरहम भी लगाया। यह देखकर सबकी आंखें भर आई।

जनता," महारानी जी, जैसा भी समय हो लेकिन इस समय भी आप हमारे साथ हो। खुद के लिए भी कुछ ना बचाकर आप हमारे लिए ले आई हो। "


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महारानी," ईश्वर जल्दी ही सब कुछ ठीक कर देंगे। बहुत जल्दी राज्य से अकाल खत्म हो जाएगा। "

जनता," ऐसी बातें तो केवल उम्मीद दिला सकती है। बाकी हम सबको आप पर पूरा भरोसा है। आप सभी का पेट जरूर भरेंगी। "

महारानी," मुझे आज रात तक का समय दीजिए। मैं वादा करती हूं कि कल से कोई नहीं मरेगा। "

महारानी राजकुमार को लेकर वापस महल चली गईं और राजा के पास जाकर फूट-फूट कर रोने लगी।

महाराज," हमारे पास कोई रास्ता नहीं है। अब तुमको यह अंगूठी उतारनी ही होगी। "

महारानी," हां मैं कल यह अंगूठी उतार दूंगी। "

महाराज और महारानी दोनों राज महल की छत पर खामोश खड़े हुए थे। दोनों की आंखें नम थी। तभी उन्हें किसी की चीखने की आवाज सुनाई दी। 

सभी नगरवासी इधर उधर भाग रहे थे; क्योंकि भेड़िये ने फिर से हमला कर दिया था। चारों तरफ चीख-पुकार मची हुई थी। "

महाराज," आज मैं स्वयं इस भेड़िये से लड़ने जा रहा हूं। "

महारानी," नहीं रुकिए महाराज, आप वहां मत जाइए। "

महाराज," तुम देख नहीं रही हो, ये सब मुसीबत में हैं। "

महारानी," लेकिन आप को कुछ हो गया तो ? "

महाराज," अपने शब्द दोबारा मत दोहराना; क्योंकि योद्धा न डरते हैं और न हारते हैं। गिरते हैं तो फिर से उठते हैं। "

तभी शोर आना बंद हो गया।

महाराज," इतने सैनिकों के होते हुए भी भेड़िया फिर से भाग निकला। लेकिन कल मैं खुद जाऊंगा। "

इसके बाद महाराज और महारानी दोनों अपने कक्ष में जाकर सो गए। अगले दिन महारानी ने पूरे राज्य को बुलवाया। साधु महाराज भी उपस्थित हुए। 

महारानी," मैंने आप सभी से कल वादा किया था कि आप भूखे नहीं रहेंगे और आज मैं अपना वादा पूरा कर रही हूं। शायद मुझे यह सब पहले ही कर देना चाहिए था। "

सभी बहुत खुश हुए। 

महारानी," लेकिन मैं उससे पहले आप सभी को कुछ बताना चाहती हूं। मेरे पास एक जादुई अंगूठी है। 

अगर मैं इस अंगूठी को जादुई गुफा के दरवाजे पर लगे हुए ताले से छुआ दूंगी तो गुफा का दरवाजा खुल जाएगा और वहां बहुत सारा धन और अनाज मिल जाएगा। 

इससे राज्य का अकाल भी खुद समाप्त हो जाएगा। पूरा राज्य खुशहाल हो जाएगा और वह भेड़िया भी फिर कभी नहीं आएगा। "

सभी लोग खुशी से झूमने लगे।

जनता," महारानी जी, हम लोग इतने दिनों से भूख से मर रहे थे। आपने पहले यह क्यों नहीं किया ? खैर छोड़िए... अभी भी ज्यादा समय नहीं बीता है। "

महारानी," उस दिन से मैं एक मां बनकर सोच रही थी लेकिन आज सबके चेहरे दिख रहे हैं, सब की भूख दिख रही है, भेड़िये का क्रोध दिख रहा है। 

मुझे रोते बिलखते और मरते बच्चे दिख रहे हैं। आज मैं उन सभी मांओं के बारे में सोचकर कह रही हूं। "

जनता," हम समझे नहीं। "

महारानी," राजकुमार वैभव की जान इस अंगूठी में है। राजकुमार वैभव ही भेड़िया हैं लेकिन इसमें राजकुमार का कोई दोष नहीं। सारा दोष मेरा है।

राजकुमार वैभव तो जानते भी नहीं कि वे भेड़िया हैं। मुझे वर्षों पहले एक श्राप मिला था। "

सभी हैरान हो गए। 

महारानी," आप लोग मेरे उस श्राप की वजह से परेशानी झेल रहे हैं। "

जनता," महारानी, राजकुमार राजा साहब और आपकी तरह ही दयालु हैं। आप यह अंगूठी मत उतारिए। हमें अपनी मौत स्वीकार है लेकिन राजकुमार को कुछ नहीं होना चाहिए। "

पूरी प्रजा की आंखें नम थी। सभी ने आपस में सहमति जताई और अंगूठी उतारने के लिए मना किया। 

रतन (नगर वासी)," राजकुमार ने नन्ही सी उम्र में हमारे लिए बहुत कुछ किया है। और इसमें राजकुमार का कोई दोष भी नहीं है। "

महारानी," नहीं। "

राजकुमार," मां, आपने मुझसे इतना बड़ा रहस्य क्यों छुपाकर रखा ? आप अंगूठी उतार दीजिए क्योंकि मैं सभी के लिए अपने प्राण देने को तैयार हूं। भेड़िया बनकर अनजाने में मैं ना जाने कितनी जाने ले चुका हूं ? " 

वैभव खुद महारानी के हाथ से अंगूठी उतारने लगा। सभी लोग रोने लगे। वैभव ने जैसे ही अंगूठी उतारी, वह जमीन पर गिर पड़ा। सभी की आंखें नम हो गई। 

महारानी (रोते हुए)," कैसी अभागी मां हूं मैं ? जो अपने ही बच्चे की जान ले ली मैंने। "

सभी मौन अवस्था में चुप खड़े थे लेकिन गुरुदेव के चेहरे पर मुस्कान नजर आ रही थी। 

महारानी," गुरुदेव, आपकी मुस्कान प्रजा के दृष्टिकोण जैसी नहीं है। राजघराने के इस वंश के अंत होने पर आप खुश हैं ? "

गुरुदेव," क्षमा महारानी जी, आप स्वयं देख लीजिए। सब प्रभु इच्छा है। "

तभी बहुत तेज बारिश और तूफान आया। सभी लोग बारिश में भीगने लगे। बारिश की बूंदों से वैभव भी जीवित हो गया जिसके बाद सब हैरान हो गए और खुशी में सब ईश्वर का धन्यवाद करने लगे। 

महारानी," वैभव, मेरे पुत्र, तुम ठीक हो ? तुम बिल्कुल ठीक हो। "

महारानी," हे ईश्वर ! तेरा बहुत-बहुत धन्यवाद। "

गुरुदेव," तुम्हारी सत्य निष्ठा, दयालुता और ईमानदारी से ईश्वर बहुत प्रसन्न हैं। तुम्हारा श्राप भी खत्म हो गया है। "

महारानी जादुई गुफा तक गई और उसे जादुई खजाना भी मिल गया जिससे सभी के भोजन, औषधि और बाकी जरूरत की चीजें की पूर्ति हो गई। 

बारिश के आने से अकाल और सूखा भी खत्म हो गया और फसल पहले से अच्छी होने लगी। 

कुछ ही दिनों में सब कुछ अच्छा हो गया।

महारानी," वैभव, अब तुम साधारण हो ? "


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राजकुमार," हां मां, और जन सेवा ही मेरा एकमात्र धर्म है। अब से मैं भी यही करूंगा। "

महारानी (हंसते हुए)," वह तो तुम बचपन से ही करते हो। और जिस राजकुमार ने अपनी प्रजा की खुशी में अपनी खुशी ढूंढ ली, वह अपने आप ही महानता की तरफ अग्रसर हो जाता है।

राजा भैरव सिंह अच्छे से राज्य चलाने लगे। महारानी तारा भी श्राप मुक्त हो चुकी थी और बहुत खुश थी। 

इसके बाद पूरा परिवार राजकुमार के साथ खुशी-खुशी रहने लगा।


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