जिन्न का बदला | Jinn Ka Badla | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories

जिन्न का बदला | Jinn Ka Badla | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories


कहानियां हमारी जीवन में एक दर्पण का कार्य करती है। यह हमेशा किसी पाठक के लिए आनंदित माहौल पैदा करने के साथ-साथ, उसे कुछ नया भी सिखाती हैं। अगर आप Hindi Stories, Moral Stories या Bedtime Stories पढ़ने के शौकीन हैं तो आज मैं आपके साथ एक नई कहानी साझा करने जा रहा हूं। इस कहानी का नाम है - जिन्न का बदला। यह एक Magical Story है, तो कहानी में हमारे साथ अंत तक जुड़े रहें।

जिन्न का बदला | Jinn Ka Badla | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories

Jinn Ka Badla | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories


 जिन्न का बदला 


यह बात सन 1907 के दशक की वजह है। जब दूर चंदनपुर नाम का एक गांव था जो रुस्तमपुर रियासत के अंतर्गत आता था। 

रुस्तमपुर के राजा मानिकचंद का जो महल था वह इसी चंदनपुर गांव में बना हुआ था जो बेहद आलीशान था। 

राजा का महल 'चंदनपुर की कोठी' के नाम से पूरे क्षेत्र में विख्यात था। राजा मानिकचंद दरबार में आए किसी दीन दुखियों की मदद नहीं करता था। 

वह केवल अपने सुख पर ध्यान देता था ना कि प्रजा के दुख पर। एक दिन एक भिखारी राजा के राज दरबार में आता है।

भिखारी," महाराज, मैं बहुत बुरी स्थिति में हूं। कृपया मेरी मदद कीजिए।

राजा," अरे ! इसे अंदर किसने आने दिया। निकालो इसे यहां से। मैं इन लोगों की मदद करने के लिए यहां नहीं बैठा हूं। "

 वह भिखारी रोता हुआ वहां से चला जाता है। 

राजा," मंत्री जी, ऐसे लोगों को अंदर घुसने ही मत दीजिए। "

इसी तरह जो भी मदद मांगने आता उसे राजा मानिकचंद बेइज्जत करके निकाल देता। एक रात राजा मानिकचंद महल के पास टहल रहा था कि तभी किसी की आवाज आती है। 

अघोरी," मदद करो... मेरी मदद करो। कृपया मेरी मदद करो। "

राजा," यह किसकी आवाज आ रही है ? "

राजा मानिकचंद देखता है कि महल के पास ही एक अघोरी बुरी स्थिति में है और मदद के लिए पुकार रहा है।

राजा," क्या हुआ है तुम्हें ? "

अघोरी," मैं बहुत ही बुरी स्थिति में हूं। मेरी तबीयत बहुत खराब है। कृपया मेरी मदद करो। "

राजा," हट... मैं किसी की मदद नहीं करता। तुम लोगों का नाटक में खूब समझता हूं। चलो चलो निकलो यहां से। "

अघोरी," मैं सच कह रहा हूं। कृपया मेरी मदद करो। "

राजा," मुझे कुछ नहीं सुनना, तुम निकलो यहां से। "

अघोरी,"तुम बहुत बुरे इंसान हो। देखना एक दिन इसके बदले में तुम्हें क्या-क्या झेलना पड़ेगा ? " 

राजा मानिकचंद अघोरी की बात नहीं सुनता और वहां से चला जाता है। अगले दिन पता चलता है कि उस अघोरी ने महल के बाहर ही अपने प्राण त्याग दिए। 

राजा," मंत्री जी, जल्द से जल्द इसकी लाश को ठिकाने लगवा दो। "

मंत्री," जी महाराज, अभी लगवाता हूं। "

कई महीने बीत जाते हैं। फिर एक दिन कुछ लोग मानिकचंद से मिलने आते हैं और किसी गंभीर मुद्दे पर बात करते हैं। 

अगले दिन...
राजा," मंत्री जी, कल कुछ लोग आए थे। कह रहे थे कि हमारे राज्य पर कुछ संकट आने वाला है। "

मंत्री," हां महाराज, सुनने में तो ऐसा आ रहा है कि ये राजपाट ज्यादा दिन तक नहीं रह पाएगा। "

राजा," शुभ शुभ बोलिए मंत्री जी, शुभ शुभ बोलिए। "

जैसी खबर आ रही थी, वैसा ही होता है। बढ़ते कालक्रम कौर बदलते दौर के साथ एक दिन वक्त की मार राजा मानिकचंद की रियासत पर पड़ी। 

सरकार ने सारी रियासतों का विलय भारत सरकार के अधीन कर दिया था। सभी राजाओं की रियासतें उनसे छीनी जाने लगीं। मानिकचंद भी उनमें से एक थे।

राजा मानिकचंद अब अपनी रियासत के लोगों में सिर्फ मानिकचंद हो गए थे। रुतबा बरकरार रखने के लिए रियासत में कब्जा की गई जमीनें बेचे जाने लगी और जमीन बेच कर आए पैसों से शान और शौकत बरकरार रखने की कोशिश की जाने लगी। 

धीरे-धीरे सभी जमीन जायदाद खत्म हो गई और मानिकचंद फकीर हो गए। इसी के साथ मानिकचंद का सारा घमंड कांच की तरह टूट कर चूर-चूर हो गया। 

अब मानिकचंद को एक आम इंसान के दुखों के बारे में पता चल रहा था। एक दिन अचानक मानिकचंद की पत्नी ने कहा।

पत्नी," आप तो ठहरे राजा साहब, आपके लिए तो मेहनत मजदूरी बनी ही नहीं। घर का खर्च चलाने के लिए लग रहा है कि मुझे ही काम करने के लिए घर की दहलीज लांघने की जरूरत होगी। "

राजा," राज परिवार के घर की बहुओं को लाज परदे में ही रखा जाता है। "

राजा मानिकचंद को अपनी पत्नी की यह बात इतनी बुरी लगी कि उन्हें खुद से आत्मग्लानि होने लगी। 

राजा (मन में)," यह सब मेरी ही करनी का फल है। मैंने आज तक इतने गलत काम किए, उसकी सजा है ये। 

सबको दुख दिया और अपना राजधर्म छोड़कर भोग विलास मैं लुप्त रहा, यह उसी की सजा है। "

गांव के बाहरी तरफ एक खंडहर हो चुका एक मंदिर था। वहां पर पूजा पाठ नहीं होती थी और ना ही उधर कोई आता-जाता था। 

मानिकचंद उस मंदिर में जाकर बैठ गया। सारी बातें सोच सोच कर मानिकचंद अपना आपा खो देता है और मंदिर की चौखट पर अपना सिर पटक पटक कर अपनी जान देने की कोशिश करने लग जाता है। 

सिर पटक पटक कर होने वाला दर्द राजा की बुद्धि के द्वार खोल देता है। उसे यह आभास हुआ।

राजा," मेरे ना होने से मेरी पत्नी और मेरे राज्य के हालात और भी ज्यादा बिगड़ते जायेंगे। नहीं नहीं... मैं आत्महत्या नहीं कर सकता। "


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इस तरह मानिकचंद ने आत्महत्या का इरादा बदल दिया। सिर पटकने की वजह से खून बहुत निकल रहा था और वह खून उसी खंडहर के पास रखें एक फूलदान पर जा गिरता है। 

जैसे ही खून उस फूलदान में गिरता है, फूलदान में से एक जिन्न निकलकर बाहर आता है।

जिन्न," मानव के खून की प्यास आज जाकर बुझ पाई है। हा हा हा हा... मैं आजाद हो गया। "

राजा," कौन हो तुम ? "

जिन्न," मैं इस खंडहर का जिन्न हूं। इसी फूलदान में रहता हूं। एक अघोरी ने मुझे 70 साल पहले इसी फूलदान में कैद कर दिया था। "

राजा," फिर तुम बाहर कैसे आ गए ? "

जिन्न," अघोरी ने कहा था कि मेरे मरने के बाद किसी भी इंसानी खून के स्पर्श से मुझे मुक्ति मिल जाएगी। लग रहा है वह अघोरी मर गया। "

जिन्न की यह बात सुनते ही मानिकचंद को उस रात की बात याद आती है जब एक अघोरी ने उससे मदद मांगी थी और उसने मदद करने से मना कर दिया था। उसके अगले ही दिन उस अघोरी की मृत्यु हो गई थी।

राजा जिन्न से पूछता है। 

राजा," तो अब क्या इरादा है तुम्हारा..? "

जिन्न," मैं तुम्हारे शरीर पर कब्जा करके इस दुनिया में राज करूंगा। "

राजा," वो कैसे..? " 

जिन्न," जिस शरीर के खून से मुझे मुक्ति मिलेगी उस शरीर को धारण कर लेने से मेरी शक्ति 7 गुना बढ़ जाएगी। मैं तुम्हें खत्म करके तुम्हारा शरीर हासिल कर लूंगा, हा हा हा...। "

राजा," मुझे छोड़ दो। अभी कुछ देर पहले तक मुझे मौत का बिल्कुल भी डर नहीं था। पर अब मुझे अपने परिवार और राज्य की चिंता हो रही है। "

जिन्न," कैसी चिंता ? बोलो, मैं तुम्हारे शरीर के बदले कुछ भी करने को तैयार हूं। "

राजा," यह एक बहुत बड़ा निर्णय है जिसे मैं तुरंत नहीं ले सकता। मुझे मेरे परिवार से इस बारे में चर्चा करनी होगी। "

जिन्न," ठीक है, यह इत्र लो। मैं तुम्हें 1 महीने का वक्त देता हूं। यह इत्र 1 महीने तक खत्म नहीं होगा। 

इस इत्र की खुशबू जहां तक चलेगी, तुम्हारा राज पाठ तुम्हें वहां तक मिलता रहेगा। उस क्षेत्र में मौजूद लोग तुम्हें फिर से राजा मानने लगेंगे। "

राजा," ठीक है, मैं तैयार हूं। "

जिन्न," याद रहे... ठीक 1 महीने बाद तुम अपने आप अपनी स्थिति में बेहोश हो जाओगे और तुम्हारे शरीर पर मेरा कब्जा हो जाएगा। फिर मैं इस दुनिया का सबसे ताकतवर इंसान बन जाऊंगा, हा हा हा...। "

राजा जिन्न का दिया हुआ इत्र अपने शरीर पर लगाता है और अपने महल की तरफ बढ़ने लगता है। जहां-जहां से राजा गुजरता गया, वहां वहां पर उसे अद्भुत बदलाव देखने को मिले।

उसके महलों में करदाताओं का आना फिर से चालू हो गया। रियासतों की दीवारें फिर से चमकने लगी। 

जिन्न के दिए हुए इत्र की खुशबू ने राजा मानिकचंद की राजाशाही को फिर से लौटा दिया। एक दिन राजशाही के वापस मिलने के बारे में राजा की पत्नी ने राजा से जिक्र किया। 

रानी," इतना बदलाव कैसे हो रहा है ? "

राजा," ये शोहरत मेरे जीते जी बस कुछ ही दिनों की मोहताज है। "

राजा ने पूरी बात अपनी पत्नी को बताई। यह सब सुन रानी जोर जोर से रोने लगी। 

रानी (रोते हुए)," उस जिन्न से कहिए कि अपना सारा राजपाट वापस ले जाए, मैं आपको कहीं नहीं जाने दूंगी। "

राजा," अब कुछ नहीं हो सकता। 1 महीने के बाद मेरी मृत्यु निश्चित है। मैं बस 1 महीने का जीवन इसलिए बचाकर जी रहा हूं ताकि अपने परिवार को इस काबिल कर जाऊं कि वापस तुम्हें इस दहलीज को पारकर काम करने के बारे में सोचना भी ना पड़े। "

रानी," मैं कहीं नहीं जाऊंगी और ना ही आपको जाने दूंगी। "

राजा," खुद पर काबू लाओ। कल एक महीना पूरा हो जाएगा और मैं कल हमेशा तुम लोगों को छोड़कर चला जाऊंगा। "

वह रात और आने वाला दिन पूरी तरह डर में बीतने लगा। राजा महीने के आखरी दिन उस जिन्न के वापस आने का इंतजार करने लगा। सुबह से लेकर शाम बीत गई पर जिन्न नहीं आया।

राजा के मन में जीवन के प्रति चेष्टा और चाहत बढ़ने लगी। राजा को लगा कि जिन्न शायद भूल गया कि उसे आज मेरा शरीर लेने वापस आना है। फिर अचानक ही राजा के मन में विचार आया।

राजा (मन में)," यह गलत है जिन्न ने अपने किए हुए वादे अनुसार मेरा राजपाट मुझे लौटा दिया। मेरा परिवार मेरे ना होने के बावजूद सुख में जीवन जी सकता है। 

मुझे भी मेरा कर्तव्य निभाना होगा। मैं इतना लोभी नहीं हो सकता। मुझे राजधर्म निभाना होगा। "

यह सब सोचकर राजा वापस उस खंडहर वाले मंदिर में पहुंचकर उस जिन्न को खोजने लगा। 

राजा (आवाज लगाते हुए)," कहां हो जिन्न ? देखो, मैं वापस आ गया हूं। तुम मेरा शरीर ले सकते हो। "

तभी अचानक से जिन्न प्रकट हुआ। 

जिन्न," तुम आ गए मानिकचंद..? "

राजा," हां, तुम्हारे इस इत्र की खुशबू ने मेरा राजपाट मुझे वापस कर दिया। इसके लिए शुक्रिया ! अब मेरे अपने कहे अनुसार मैं अपना शरीर तुम्हें वापस देने आया हूं। "

जिन्न," तुम तो सच में एक ईमानदार राजा निकले। हा हा हा... अपनी जुबान का ईमानदार होना ही एक राजा का पहला कर्तव्य होता है। "

राजा," मैं अपनी ईमानदारी पर अडिग हूं। "

जिन्न," हा हा हा...। "

राजा," क्यों इतना हंस रहे हो तुम..? "

जिन्न," एक बार सिर घुमाकर अपने आसपास देखो। "

राजा अपने चारों तरफ देखता है तो वह खंडहर एक खूबसूरत मंदिर बन चुका था।

राजा," यह खंडहर एक आलीशान मंदिर कैसे बन गया ? "

जिन्न," तुम्हारे इत्र को लगाकर इस मंदिर में आ जाने से इस मंदिर का भी कायाकल्प हो गया और यह भी एक तीर्थ स्थान बन गया। "

राजा," तो..? इससे मेरी मृत्यु का क्या संबंध ? तुम अपना कार्य करो। ले जाओ मेरा शरीर। "

जिन्न," जब तक मैं इस खंडहर में था तब तक इस खंडहर का एक जिन्न हुआ करता था। मेरी मति भी राक्षसों वाली थी। अब मैं इस समय तीर्थ मंदिर में मौजूद हूं। मैं तुम्हारा शरीर और प्राण नहीं ले सकता। "

राजा," इस खंडहर के मंदिर बन जाने से तुममें क्या परिवर्तन आ गया भला ? "

जिन्न," यह खंडहर ही मेरा घर था; क्योंकि कई सालों से मैं इसी खंडहर में कैद था। तुमने मुझे इस खंडहर से जब आजाद कराया तब भी मैं 1 जिन्न ही था; क्योंकि यह स्थान तब भी एक खंडहर ही था। 

लेकिन अब इस खंडहर के तीर्थ बनने से मेरी राक्षसी प्रवृत्तियों का नाश हो गया है। जाओ, तुम आज से आजाद हो। तुम्हारी मृत्यु तुम्हारे समय के अनुसार ही आएगी। "

राजा," ठीक है, मैं इस तीर्थ में यज्ञ करवाऊंगा और इस परोपकार की कथा सबको सुनाऊंगा। "


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राजा मानिकचंद को वापस जीवित देखकर उसके परिवार में खुशियां वापस आ गई। कुछ ही दिनों में उस खंडहर वाले मंदिर में यज्ञ हुआ और परोपकार की कथा सुनाई गई। 

धीरे-धीरे वो मंदिर 'चंदनपुर के तीर्थ' के नाम से मशहूर हो गया। साथ ही राजा मानिकचंद और चंदनपुर गांव के जिन्न की कहानी परोपकार की कथाओं में प्रचलित हो गई। 

राजा मानिकचंद अब सभी के दुखों को सुनता और सभी की मदद करता था।


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