बुद्धिमान रानी | Budhhiman Rani | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories

बुद्धिमान रानी | Budhhiman Rani | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories


कहानियां हमारी जीवन में एक दर्पण का कार्य करती है। यह हमेशा किसी पाठक के लिए आनंदित माहौल पैदा करने के साथ-साथ, उसे कुछ नया भी सिखाती हैं। अगर आप Hindi Stories, Moral Stories या Bedtime Stories पढ़ने के शौकीन हैं तो आज मैं आपके साथ एक नई कहानी साझा करने जा रहा हूं। इस कहानी का नाम है - बुद्धिमान रानी। यह एक Raja Rani Ki Kahani है, तो कहानी में हमारे साथ अंत तक जुड़े रहें।

बुद्धिमान रानी | Budhhiman Rani | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories

Budhhiman Rani | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories


 बुद्धिमान रानी 


एक बार की बात है। जूनागढ़ में राजा भैरव सिंह नाम का राजा रहा करता था। वो एक अच्छे राजा थे। उनका एक छोटा भाई और एक पत्नी थी जिनके साथ वो खुशी से अपना जीवन बिता रहे थे।

राजा के छोटे भाई का नाम वीर था। बचपन से ही दोनों भाई हर चीज़ में काबिल थे। दोनों में काफी प्रेम था। 

एक बार जब राजा भैरव सिंह अपने छोटे भाई वीरसिंह के साथ एक लंबी यात्रा करके अपने राज्य लौट रहे थे।

राजा," देखिये यहाँ एक नदी है, थोड़ी देर रुक जाते हैं। घोड़े भी काफी देर से चल रहे हैं, वो भी थोड़ी देर पानी पी लेंगे। "

वीरसिंह," ठीक है, हम थोड़ी देर यहाँ रुकेंगे। "

घोड़े पानी पीते हुए और वहाँ छुपे राजा के दुश्मन...
दुश्मन राजा," जाओ, सब के सब छुप जाओ। जैसे ही मैं इशारा करूँ, राजा को मार देना और हाँ... सब लोग अपने मुँह अच्छे से ढक लेना। "

सिपाही," जी सरदार, आप बेफिक्र रहें। आज भैरवसिंह नहीं बच पाएगा। "

राजा," देखो, यह कितनी अच्छी जगह है। मन एकदम शांत हो गया। "

सेनापति," हाँ महाराज, आपने सही कहा। थोड़ी देर आराम करने के बाद हम सभी यहाँ से निकल जाएंगे। "

तभी कुछ दूर सामने जंगल में छुपे दुश्मन सिपाही राजा पर तीर चलाते हैं और सेनापति भीमसिंह राजा को बचा लेते हैं।

दुश्मन राजा," अरे ! नहीं, आज फिर ये सेनापति बीच में आ गया। "

सेनापति," महाराज, लगता है... कोई है जो आपको मारना चाहता है ? "

वीरसिंह," जाओ, महाराज को किसी सुरक्षित स्थान पर ले जाओ। "

वीरसिंह," कौन है, किसने किया ये हमला ? सामने आओ वरना किसी को नहीं छोडूंगा। इन सब को घेर लो। आज यहाँ से कोई भी बचके ना जाने पाए। "

सेनापति," सैनिकों जाओ और इन सब को पकड़ लो। "

वीरसिंह," भैया को सही से किसी सुरक्षित जगह पर ले जाओ। इन्हें मैं देख लूँगा। "

राजा," अपना ध्यान रखना। "

वीरसिंह," आप जाओ भैया, इन्हें मैं देखता हूँ। "

सेनापति और राजकुमार वीर ने काफी देर तक उन सब का सामना किया। इसके बाद वो सब भाग गए। उन्हें हराने के बाद वो सब महल लौट आये।

राजा," सेनापति, आज आपने मेरी जान बचाई है। "

सेनापति," महाराज, ये आप कैसी बातें कर रहे हैं? आप हमारे महाराज है। आपके लिए हम अपनी जान तक दे सकते हैं। "

राजा," तुम्हारी वफ़ादारी पे मुझे गर्व है, सेनापति। "

राजा," और भाई वीर, तुम जैसा भाई किस्मत वालों को ही मिलता है। मैं बहुत खुश हूँ कि तुम मेरे भाई हो। "

वीरसिंह," कैसी बाते कर रहे हैं, भैया ? आप मेरे बड़े भाई हो, आपके लिए कुछ भी कर सकता हूँ मैं। 

वैसे भैया... मुझे कुछ कहना था आपसे, वो मैं कुछ समय के लिए तीर्थ पर जाना चाहता हूँ। भगवान की सेवा में अपना कुछ जीवन बिताना चाहता हूँ। "

राजा," मैं चाहता तो हूँ कि तुम्हें खुद से दूर ना जाने दूं। पर जब तुमने मन बना लिया है तो मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा। "

दोनों भाई गले मिलते हैं। इसके बाद वीर चला गया। कुछ दिनों बाद जब देश में बसंत आने की खुशी में उत्सव की तैयारी चल रही थी, तभी राजा के पास दौड़ते हुए उनके सेनापति भीम पहुंचे।

राजा," क्या हुआ सेनापति भीमसिंह ? "

सेनापति," महाराज, आपके लिए पत्र आया है। "

राजा," पत्र... किसका पत्र ? "

सेनापति," महाराज, हमारे पड़ोसी देश के राजा भूषण सिंह जी का है। "

राजा," ठीक है, इधर दो। "

राजा (पत्र पढ़ते हुए)," हे राजा ! मैं राजा भूषण सिंह... हमारे पिता राजा वीरेंद्र सिंह अब नहीं रहे और इसी का फायदा उठाते हुए हमारे दुश्मन राजा ने हम पर हमला कर दिया है। 

हमें पिताजी द्वारा हमेशा से उनके और आपके पिताजी के बीच के अच्छे संबंधों के बारे में बताया गया था। आज इस कठिन समय में उनके अच्छे संबंधों को बनाए रखने का समय है। 

मैं आशा करता हूँ कि आप हमारी मदद करेंगे और दोनों देशों के बीच चली आ रही दोस्ती को बनाए रखेंगे... राजा भूषण सिंह। "

ये पत्र पढ़ते ही राजा को अत्यंत बुरा लगा।

राजा," सेनापति भीमसिंह, आज ही सेना को बता दीजिये कि वो युद्ध के लिए तैयार हो जाए। हम कल ही राजा भूषण सिंह की मदद के लिए उनके देश जाएंगे। "

मंत्री," महाराज, आपको तुरंत निकलना चाहिए। "

राजा," मंत्री भानु आप भी चलिए, युद्ध में हमें आपकी भी जरूरत पड़ेगी। "

मंत्री," महाराज, वो...। "

राजा," क्या बात है ? "

मंत्री,"वो... मैं कह रहा था कि महाराज अगर हम सब चले जाएंगे तो राज्य की रक्षा कौन करेगा ? और महारानी भी अकेली हैं, उनको अकेला रखना ठीक नहीं रहेगा। 

मैं ऐसा करता हूँ कि कुछ सैनिकों को महारानी और राज्य की देखभाल के लिए बोल देता हूँ। 

मगर महाराज सैनिकों के भरोसे तो नहीं छोड़ सकते ना? आप अपने किसी भरोसेमंद आदमी को छोड़ दीजिये। "

राजा," समझ नहीं आ रहा किसे रोकने को कहूं। "

मंत्री," महाराज, इसमें सोचने का क्या है ? मैं हूँ ना... जब तक मैं हूँ तब तक हमारे देश का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। "

राजा," ठीक है, तुम रुक जाओ। "

सेनापति," महाराज, मैं सैनिकों को कल के लिए तैयार करता हूँ। "

राजा," ठीक है। "

महाराज और सेनापति के जाते ही मंत्री भानु का कहता है।

मंत्री," जाओ महाराज जाओ, यह आपके जीवन का आखिरी युद्ध होगा क्योंकि मैं मंत्री भानु... हार कभी ना मानूं। "

मंत्री भानु दुश्मन राजा बृजभान से मिलने के लिए जाता है और उसे बताता है।

मंत्री," एक बढ़िया खबर लाया हूँ, महाराज। राजा भैरव सिंह अपने पड़ोसी राज्य के राजा भूषण सिंह की मदद के लिए उनके देश जा रहे हैं। हमारी योजना सफल हुई, महाराज क्योंकि मैं मंत्री भानु... हार कभी ना मानूं। "

दुश्मन राजा," तुम वापस लौट जाओ। मैं ये खबर उन को देकर आता हूँ। बाकी जो भी योजना होगी वो तुम तक पहुंचा दी जाएगी। "

मंत्री," जी महाराज। "

इसके बाद राजा बृजभान एक अजनबी से मिलता है।

बृजभान," काम हो गया है, अब बस बसंत उत्सव के दिन का इंतज़ार है। "

अजनबी," हाँ, उस दिन जब सब अपने काम पर लगे होंगे, हम राज्य में हमला कर देंगे और फिर पूरा राज्य हमारा होगा। "

जूनागढ़ राज्य में... 
दूसरी तरफ सेनापति भीम ने यह संदेश अपनी सेना को दिया।

सेनापति," हमारी सेना के महान योद्धाओ, राजा का आदेश है कि हम कल ही हमारे मित्र देश की मदद के लिए उनके देश जाएंगे। 

उनके देश पर हमला हुआ है इसलिए उन्होंने हमारे राजा से मदद मांगी है। हम सभी का ये कर्तव्य बनता है कि हम अपने राजा की आज्ञा का पालन करें। क्या आप सब तैयार है ? "

सेना," हाँ, हम तैयार हैं। हां, हम तैयार हैं। "

सेना का ऐसा उत्साह देखकर सेनापति बहुत प्रसन्न हुए। राजा ने सेनापति के साथ मिलकर जल्द ही सारी तैयारियां कर ली।

सेनापति," महाराज, आप विश्राम कीजिये। मैं कल के युद्ध की तैयारी करवाता हूँ। "

राजा," ठीक है भीमसिंह, मुझे तुम पर पूर्ण विश्वास है। "

राजा कमरे में जाता है। उसके बाद राजा रानी से बात करता है।

राजा," महारानी, आज हमें हमारे पड़ोसी राज्य के राजा भूषण सिंह का पत्र मिला। उनके देश में युद्ध का माहौल बना हुआ है। 

हमारे पिताजी के अच्छे संबंध होने की वजह से उन्होंने हमसे मदद मांगी है। और एक पुत्र होने के कारण अपने पिता के हर संबंधों का सम्मान करना मेरा दायित्व है। 

आज बहुत सारी तैयारी करनी थी जिसकी वजह से आपको ये सब बताने का वक्त ही ना मिल सका। "

महारानी," कोई बात नहीं महाराज, आप अपने कर्तव्य का पालन करें। "

राजा," आप इस राज्य का ध्यान रखना। "

महारानी," महाराज, आप चिंता ना करे। मैं आपकी गैरमौजूदगी में इस राज्य का ध्यान रखूंगी। आप पूरी लगन के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करें। मैं हर तरह से आपके साथ हूँ। "

राजा," और हाँ... इस बार का बसंत उत्सव हमारे लौटकर आने के बाद मनाया जाएगा ताकि बसंत उत्सव की खुशी दोगुनी हो जाए। "

महारानी," जैसी आपकी इच्छा महाराज, युद्ध की जीत की खुशी उत्सव की खुशी को दोगुनी कर देगी। "

सुबह होते ही राजा अपनी सेना के साथ अपनी मंजिल पर चल पड़े। बसंत के आने में करीब एक माह का समय था। रानी को अपनी कुलदेवी की पूजा में उन्हें एक साड़ी अर्पित करनी थी, जो कि रानी हर बार अपने हाथों से ही बनाती थी। 

इस बार साड़ी बनाते हुए रानी प्रजा को बताना भूल गई कि बसंत का उत्सव राजा के आने के बाद मनाना है। रानी को जैसे ही स्मरण हुआ, उन्होंने तुरंत संदेशवाहकों से बुलावा दे भेजा।

महारानी," राज्य में सबको बता दो कि इस बार बसंत उत्सव महाराज के आने के बाद मनाया जायेगा। "

कुछ दिनों बाद जब महारानी अकेली बैठी थी तभी उनसे उनका गुप्तचर मिलने आया।

गुप्तचर," महारानी, हमें यह संदेश मिला है कि आज से ठीक वसंत उत्सव के दिन हमारे देश में दुश्मनों का हमला होने वाला।
है। "

महारानी," क्या..? हमला इस समय... अभी तो महाराज भी यहाँ नहीं है। मैं उन्हें कैसे सूचित करूँ कि हमारा देश खतरे में है ? जाइए और महाराज को यह सूचित करिये कि देश को उनकी आवश्यकता है। "

गुप्तचर," जी महारानी, हमें ये भी पता चला है कि महल में कोई है जो दुश्मन की मदद कर रहा है। "

महारानी," क्या..? हमारे महल में जासूस, कौन है वो, गुप्तचर ? "

गुप्तचर," महारानी, ये तो मुझे नहीं पता। पर मैं कोशिश करूँगा कि मुझे जल्द ही उस जासूस के बारे में पता चल जाये। "

महारानी," अच्छा ठीक है, तुम जाओ। "

रानी पूरी रात भर यही सोचती रही कि कैसे उस जासूस का पता लगाया जाए ? तभी रानी को एक युक्ति सूझी। उन्होंने अपने भाई को एक पत्र लिखा। 

पत्र में...
भैया, हमारे देश में दुश्मन हमला करने वाले हैं। मुझे आपकी जरूरत है। महाराज भी युद्ध में गए हैं। इसी का फायदा दुश्मनों ने उठाया है। 

आप बसंत उत्सव के दिन सुबह होने से पहले अपनी सेना को लेकर हमारी सरहद की दिशा में फैल जाना ताकि जैसे ही दुश्मन वापस जाने की कोशिश करे वैसे ही आप उसे पकड़ लें और आप मेरे भतीजे अरविंद को मेरी मदद के लिए भेज दीजिए। 


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हमारे महल में कोई गुप्तचर है जो हमारे लिए बहुत बड़ा खतरा है। मुझे उसकी मदद की जरूरत पड़ेगी। लेकिन अरविंद से कहना कि वो महात्मा की तरह बनकर आये और अपने साथ कुछ लोगों को उसकी तरह पंडितों के कपड़े पहनाकर लाये। 

मैं सबको कह दूंगी कि आप मेरे मायके के सिद्ध पंडित है। इस बार देवी की पूजा के लिए मैंने आपको बुलाया है तो बस उसे कहना कि वो जल्दी पहुँच जाये।

रानी के बोलने पर अरविंद महापंडित बनके बहुत जल्द वहाँ पहुँच गए। उनके आने के बाद सब जगह उनकी जय जयकार होने लग गयी। ये बात जब भानु को पता चली तो उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने महारानी से पूछा।

मंत्री," अब यह महात्मा लोग महल में क्या करने आये हैं, महारानी ? आपने इन्हें क्यों बुलाया है ? "

महारानी," आप तो जानते है, महाराज युद्ध में गए है और मुझे उनकी चिंता है ? उनकी सलामती के लिए मैंने इनको बुलाया है। ये जिनसे भी खु़श होते हैं, उनकी मन की इच्छा पूरी कर देते हैं। "

मंत्री," क्या महारानी सच में, ये इच्छा पूर्ण कर देते हैं ? "

मंत्री (मन में)," इसलिए मेरा नाम है भानु... हार कभी ना मानूं। "

महारानी," हाँ, तुम्हें क्या लगता है, मैं ऐसे किसी से अपनी कुलदेवी की पूजा करवा दूंगी ? "

मंत्री (मन में)," क्यों ना महापंडित को खुश कर दूँ। क्या पता वो मेरी इच्छा पूरी कर दें ? "

सबके जाने के बाद मंत्री महापंडित के पास पहुंचता है।

मंत्री," महापंडित जी, मैं मंत्री भानु प्रसाद यहाँ का राज्यमंत्री हूँ। आपको किसी भी चीज़ की जरूरत हो तो आप मुझे बताना, मैं आपका पूरा ख्याल रखूँगा। वैसे महारानी बता रही थी कि आप किसी की कोई भी इच्छा पूरी कर सकते हो। "

अरविंद," कोई शक..? वत्स, महात्मा लोग हैं हम। "

मंत्री," नहीं नहीं महापंडित जी, मैं तो बस है पूछ रहा था आपसे।
महापंडित जी, मेरी भी एक है इच्छा हैं वो काफी समय से पूरी नहीं हो रही है। 

इस बार वो बस पूरी ही होने वाली है। बस आप आशीर्वाद दे दीजिए कि वो बिना किसी परेशानी के पूरी हो जाये। "

महापंडित," अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारी इच्छा पूरी हो जाए तो तुम्हें आज रात से लेकर तब तक तालाब में एक एक करके पत्थर डालने होंगे जब तक कि तुम्हारे पास कोई सुन्दर उड़ता हुआ घोड़ा ना जाए। 

तुम्हारी इच्छा पूरी हो जाएगी। पर तुम्हें ध्यान रखना होगा कि तुम्हें ये करते हुए कोई देख ना ले। अगर तुमने ज़रा सी चालाकी करी तो तुम्हारी इच्छा कभी पूरी नहीं होगी। "

मंत्री," नहीं नहीं, मैं करूँगा ना। आप बस बताइए कि इच्छा तो पूरी हो जाएगी, ना ? "

महापंडित," हाँ हाँ, हो जायेगी। और हाँ... एक बात का ध्यान रखना, बस तब तक किसी से बात मत करना। "

मंत्री भानु आधी रात में किसी से मिलने जाते हैं।

अजनबी," काम हो गया ? "

मंत्री," जी, काम हो गया है। यहाँ सब पूजा की तैयारियों में लगे हुए हैं। इन सबको क्या पता, ये इनकी आंखरी पूजा है ? "

अजनबी," ध्यान से काम करना, अगर गड़बड़ी हुई अपनी जान से हाथ धो बैठोगे। "

मंत्री," आप चिंता मत करिए। किसी को शक नहीं होगा। वो सब तो राजा की सलामती के लिए पूजा में लगे हुए हैं। "

अजनबी," मुझे हर छोटी चीज़ की खबर समय पर मिल जानी चाहिए। "

मंत्री," जी, वो मैं कह रहा था कि मैं आने वाले दिनों में आपसे मिल नहीं पाऊंगा। महारानी ने मुझे बाकी सब चीजों में उलझाया है तो आपसे मिलने का समय नहीं मिल पा रहा। 

जैसे तैसे आज मिल पाया हूँ। अगर आज के बाद ऐसे निकला तो किसी को शक ना हो जाये ? "

अजनबी," हां, तुम सही कह रहे हो। ठीक है, तुम नज़र रखना बस। "

मंत्री (मन में)," अब मैं महापंडित जी के बताए नुस्खे को आराम से कर पाऊंगा। इसलिए मेरा नाम है भानु... हार कभी ना मानूं। "

उसके बाद अजनबी दुश्मन राजा से मिलने घोड़े पर बैठके निकलता है।

अजनबी," बृजभान, सब कुछ योजना के मुताबिक ही होना चाहिए। छोटी सी भूल हम सबको मरवा सकती है। इसलिए ध्यान रखना इस बात का। "

बृजभान," आप बेफिक्र हो जाईये, सब कहे अनुसार ही होगा। "

अजनबी," हमें सुबह होते ही राज्य में हमला करना होगा; क्योंकि मुझे पता है की राजा कभी भी वापस आ सकता है। 

इसलिए सभी जगह अपने सैनिक तैनात कर दो और याद रहे... छोटी सी गलती भी ना हो पाए। "

उसके जाने के बाद महापंडित ने अपने सैनिकों को आधी रात में महारानी को उनसे मिलने को कहा। आधीरात को रानी अरविंद से मिलने आई।

महारानी," सुनो अरविंद, तुम पूजा में पंडित की जगह बैठोगे और सारी प्रजा को बसंत उत्सव की सुबह होने से पहले आधी रात के समय हाथ में मशाल लेकर तुम्हारे पीछे पीछे आने को कहना और तुम मौका पाते ही सरहद की दिशा में 'माता रानी की जय... माता रानी की जय' का नारा लगाते हुए जाना शुरू कर देना। "

अरविंद," जी बुआ, आप परेशान ना हो, सब योजना के मुताबिक होगा। "

दोनों अपने अपने कमरे में लौट गए। सुबह बसंत उत्सव से पहले पूजा हुई।

अरविंद," सुनिए... आप सब बसंत उत्सव की सुबह होने से पहले आधी रात के समय हाथ में मशाल लेकर जहाँ जहाँ मैं जाऊ, वहाँ वहाँ चलते रहना और 'माता रानी की जय' का नारा लगाते रहना। माता हम सब पर कृपा बनाए रखेंगी। "

बसंत उत्सव के दिन सुबह होने से पहले सभी लोगों को लेकर महापंडित सरहद की दिशा में जाने लगे। वहाँ जैसे ही दुश्मनों ने रौशनी को अपनी ओर आते हुए देखा, वे सब डर गए।

बृजभान," लगता है... राजा को हमारी साजिश के बारे में पता चल गया है ? हमें तुरंत वापस जाना होगा। "

जैसे ही वे कुछ दूरी तक पहुँच पाए वैसे ही उन्हें राजा मालसार और राजा भैरव सिंह, दोनों की सेनाओं ने दुश्मनों को घेर लिया।

राजा," बताओ... तुमने ये सब क्यों किया ? मेरी गैरहाजिरी में ये वाला कृत्य है तुम्हें शोभा देता है ? "

बृजभान," तुम्हारे पिता ने हमारे पिता को हमेशा युद्ध में पराजित किया और उन्हें उन्हीं के देश में अपमानित कर दिया। 

इसी का बदला लेने के लिए मैंने तुम्हारे मित्र देश पर पहले हमला किया और वहाँ तुम्हें भिजवाकर तुम्हारे देश पर हमला करने के लिए चला आया। लेकिन मेरी चाल उल्टी पड़ गयी। "

राजा," मुझे बताओ, इस समय तुम्हारा साथ किसने दिया ? बिना किसी गद्दार के यह संभव नहीं। "

बृजभान," तुम्हारे भाई और मंत्री भानु ने। "

राजा," क्या, वीर ने तुम्हारी मदद की ? वो ऐसा नहीं कर सकता। "

बृजभान," ये सच है। कुछ महीनों पहले जब तुम्हारे ऊपर हमला हुआ। उसके बाद जब वीर तीर्थ पर निकल गए थे। असल में वो पता करने निकले कि वो हमला किसने किया है ? 

जब उन्हें पता चला कि इन सबके पीछे मेरा हाथ है तो वो मेरे पास आये। मैं डर गया था। मुझे लगा, मैं मारा जाऊंगा। 

पर राजकुमार वीर ने मुझको आपको मारने का आदेश दिया और उनकी बात न मानता तो वो मुझे मरवा देते। इसलिए मैं मान गया। "

राजा," वीर और भानु जहाँ भी हैं, उन्हें तुरंत पकड़ लो। उनका फैसला हम राजदरबार में करेंगे। और तुम बृजभान... अगर तुमने आज के बाद हमारे देश पर आंख उठाकर भी देखा तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा। सोचो कैसा लगेगा, अगर मैं तुम्हें कारागार में कैद कर दूँ ? "

बृजभान," मुझे क्षमा कर दें,महाराज। मैं आपका अपराधी हूँ। "

राजा," मैं जानता हूँ कि कैसा लगता है जब एक देश अपने राजा के बिना मुश्किलों का सामना करता है ? 

इसलिए जाओ, अपने देश वापस लौट जाओ और आगे से कभी भी इस तरह के ख्याल अपने दिमाग में मत लाना। 

क्योंकि अगली बार मैं दया नहीं दिखाऊंगा। जाओ, अपने देश की रक्षा करो और एक अच्छे राजा बनो। "

बृजभान," धन्यवाद महाराज ! आप सच में दयालु और महान है। आपका ये अहसान मैं कभी नहीं भूलूंगा। "

उसके पश्चात राजा महल में लौटे।

राजा," जाओ, भानु को मेरे सामने लाओ। "

सेनापति," पकड़ो इस भानु को। "

मंत्री," अरे ! रुक जाओ, कहाँ ले जा रहे हो ? अरे रे ! कहाँ ले जा रहे हो ? "

मंत्री," सेनापति, तुम कब लौटे ? अरे रे ! रुको। "

सेनापति," लीजिये महाराज, हम भानु को ले आये और ये है राजकुमार वीर। "

मंत्री," महाराज, देखिए ना... ये सेनापति मुझे किस तरह से पकड़कर ले आए हैं ? "

राजा," क्या हुआ मंत्री भानु ? आपको उड़ने वाला घोड़ा दिखा कि नहीं ? "

मंत्री," आपको कैसे पता है इस बारे में ? "

राजा," भला मुझे कैसे पता नहीं चलेगा ? आखिर महापंडित है हम। "

मंत्री," क्या..? "

राजा," इस भानु को ले जाओ और इसे बंद कर दो कारागार में।
और वीर तुम... तुम्हें तो मैंने अपना सब कुछ माना था। 

तुमने जब जाने की बात की तो मैं कई दिनों तक दुखी था; क्योंकि बचपन से ही तुम से ज्यादा अपना मेरा कोई नहीं था। तुम ये सब कैसे कर सकते हो ? "

वीर," बचपन से ही हम दोनों हर चीज़ में बराबर थे। चाहे वो बुद्धि हो या शक्ति तो फिर क्यों महाराज तुम्हें बनाया गया क्योंकि तुम बड़े हो इसलिए ? 

एक बार भी मैं कितना काबिल हूं, ये जानने की किसी ने कोशिश तक नहीं की। एक ही परिवार में इतना भेदभाव कैसे ? 

क्या राज़गद्दी बड़े छोटे के भेद से मिलती है ? अगर आज ये सब ना होता तो तुम मेरी जगह होते और मैं तुम्हारी जगह। "

राजा," वीर... मेरे भाई, एक बार प्यार से कहा होता तो मैं सारा राजपाट त्याग संन्यास ले लेता। लेकिन राजद्रोह कदापि मंजूर नहीं। "

राजा," जाओ, इसे कारागार में डाल दो। मैं इसका चेहरा तक नहीं देखना चाहता। आज इस धोखे ने मेरा बहुत दिल दुखाया है। "

राजा," लेकिन महारानी, मैं आपसे बहुत खुश हूँ। आज आपकी वजह से मेरी प्रजा सुरक्षित है और मेरा अस्तित्व बना हुआ है। मैं आप का जितना शुक्रियादा करूँ उतना कम है। "

महारानी," ये कैसी बातें कर रहे हैं ? ये सब आपकी ही नहीं मेरी भी प्रजा है। इन सब की सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है। मैंने कहा था ना कि मैं आपके साथ सदैव खड़ी रहूंगी। "

राजा," राजा मलसार, आपने इन दिनों हमारी जो भी मदद की, हम आपके बहुत आभारी हैं। "

राजा मलसार," अरे महाराज ! कैसी बातें कर रहे हैं ? हम एक परिवार हैं। जब हमें आपकी जरूरत पड़ी तो मदद कर देना। "

सब हंसने लगे।

राजा," बिलकुल... हम हमेशा आपकी मदद के लिए तैयार रहेंगे। "

राजा," एक बात बताइए महारानी, आपको कैसे पता चला कि मंत्री ही जासूस है ? "

महारानी," महाराज, जब अरविंद महापंडित बनके महल आया था तब मैंने देखा कि मंत्री भानु कुछ ज्यादा ही उतावले थे महापंडित को मिलने के लिए। 

बाद में जब मंत्री भानु महापंडित से मिलने गए तो अरविंद को भी भानु पर शक हुआ। इसलिए हमने भानु के पीछे जासूस लगा दिए और भानू को इच्छा पूरी करने वाली विधि में लगा दिया ताकि वो हमारी योजना को ना समझ पाए। "

राजा," वाह महारानी वाह ! अति उत्तम। "

महारानी," पर महाराज, राजा भूषण सिंह के यहाँ कैसी परिस्थितियां है ? "


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राजा," महारानी, हमने और राजा भूषण सिंह ने मिलकर दुश्मनों को देश से निकाल भगाया। सेना अधिक थी इसलिए ये काम जल्दी ही हो गया। मुझे जैसे ही गुप्तचर ने यहाँ के बारे में बताया, मैं वैसे ही वहाँ से चला आया। "

महारानी," महाराज, मुझे तो इस बात की खुशी है कि आप सही सलामत लौट आये। ये तो बड़ी खुशी की बात है। हमें इस बार के उत्सव में उन्हें भी बुलाना चाहिए। "

राजा ने राजा भूषण सिंह को उत्सव में सम्मिलित होने का न्यौता भिजवाया। सभी के आने के बाद बसंत उत्सव देश में बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। 


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