जादुई चक्की | Jadui Chakki | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories

जादुई चक्की | Jadui Chakki | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories


कहानियां हमारी जीवन में एक दर्पण का कार्य करती है। यह हमेशा किसी पाठक के लिए आनंदित माहौल पैदा करने के साथ-साथ, उसे कुछ नया भी सिखाती हैं। अगर आप Hindi Stories, Moral Stories या Bedtime Stories पढ़ने के शौकीन हैं तो आज मैं आपके साथ एक नई कहानी साझा करने जा रहा हूं। इस कहानी का नाम है - जादुई चक्की। यह एक Jadui Kahani है, तो कहानी में हमारे साथ अंत तक जुड़े रहें।

जादुई चक्की | Jadui Chakki | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories

Jadui Chakki| Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories


 जादुई चक्की 


उदयपुर गांव में एक बहुत ही लालची व्यक्ति बाबूलाल रहा करता है। वो बहुत ही ज्यादा लालची था। उसे बस किसी भी तरह धन चाहिए था। एक दिन गांव के कुछ लोग आपस में बात कर रहे होते हैं

पहला आदमी," सुना है... अपने गांव में चमत्कारी बाबा आये हुए सुना है, वो बहुत बड़े ज्ञानी हैं। उनसे जो भी मांगो वो अवश्य ही दे देते है, हाँ। "

दूसरा आदमी," क्या बोल रहे हो भाई ? क्या सच में हमारे गांव में चमत्कारी बाबा आये हुए है ? अगर ऐसा है तो मैं अवश्य ही उनके पास जाऊंगा, हाँ। "

पहला आदमी,"हाँ हाँ भाई, सुना तो ऐसा ही है। चलो कल सुबह चलकर देखेंगे। मुझे तो काफी कुछ मांगना है चमत्कारी बाबा से, हाँ। "

उन दोनों की ये बातें बाबूलाल सुन रहा होता है।

बाबूलाल," क्या सचमुच चमत्कारी बाबा हमारे गांव में आये हैं ? अगर ऐसा है तो मैं जरूर जाऊंगा और वो भी इन लोगों से पहले। मेरी तो वैसे भी बहुत सारी इच्छाएं हैं, हाँ। "

थोड़ी देर बाद वो गांव के जंगल में उस चमत्कारी बाबा के पास जाता है। चमत्कारी बाबा एक पेड़ के नीचे बैठे ओउम का उच्चारण कर रहे थे।

बाबा," ओऊम... ओउम। "

तभी बाबूलाल उनके पास जाता है।

बाबा," प्रणाम बाबा ! मैं इस गांव का निवासी हूँ। मैंने बहुत सुना है आपके बारे में। मैं भी आपसे कुछ मांगने आया हूँ। अब मुझे यकीन है कि आप अपनी शक्ति से मेरी इच्छा अवश्य पूरी करेंगे। "

बाबा," हरि ओउम... क्यों नहीं बेटा ? हमने सौ वर्षों के तप के बाद जो शक्तियां पायी है, हम उनकी सहायता से तुम्हारी सहायता अवश्य करेंगे। बताओ, तुम्हें क्या चाहिए ? "

बाबूलाल," बाबा, मैं तो बस आपकी सेवा भाव से आया हूँ। "

बाबूलाल (मन में)," लगता है ये बेहतर काम करेगा, हाँ। "

बाबूलाल,"आप मेरे घर चलें। मैं आप की आवभगत करना चाहता हूँ। इसके अलावा मेरे मन में कोई लालसा नहीं है। आशा करता हूँ, आप मना नहीं करेंगे। "

बाबा," आज के इस वक्त में तुम्हारे जैसा इंसान जो बिना किसी लोभ मुझे आमंत्रित कर रहा हो, मैं अवश्य चलूँगा। "

जिसके बाद चमत्कारी बाबा बाबूलाल के साथ उसके घर जाते हैं।

बाबूलाल," अरे भाग्यवान ! देखो हमारे घर चमत्कारी बाबा आये हैं। तुम जल्दी से इनके भोजन की व्यवस्था करो। "

जानकी," क्या सच में..? मैंने बाबा के बारे में गांव वालों से बहुत सुना है, हाँ। आप सभी की इच्छा पूरी करते हैं, बाबा ? "

जानकी," हम तो धन्य हो गयी, जी। मैं अभी बाबा के लिए भोजन लेकर आती हूँ, हाँ। "

जिसके बाद चमत्कारी बाबा के सामने भोजन की थालियां सज जाती है और बाबा पेट भरकर भोजन करते हैं।

बाबा," अरे वाह ! वाह बेटा... इतना स्वादिष्ट भोजन खाकर तो मेरी आत्मा ही संतुष्ट हो गयी। वाह ! मैं बहुत खुश हूँ। अब बोल बच्चा। "

बाबूलाल (मन में)," अरे बाबा ! जल्दी से कुछ मांगने को कहो ना, मेरी सांसे सूख रही है। इतना तो हम किसी को नहीं खिलाते जितना तू एक बार में ठूंस गया। "

बाबूलाल," अरे बाबा ! ये तो हमारा सौभाग्य है कि आप हमारे अतिथि बनकर पधारे हैं। "

बाबा," वत्स ! मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूँ। "

बाबूलाल," अरे ! बाबा की जय हो, जय हो बाबा की। आप इतनी श्रद्धा से बोल रहे हो तो हमें बहुत सारा धन चाहिए, बाबा। 

बहुत सारा... इतना कि मुझे जीवन में धन की कभी कोई कमी ही महसूस ना हो, हाँ। "

बाबा," बेटा, तुम्हारी इच्छा अवश्य ही पूरी होगी। "

तभी बाबा उसे चार मिट्टी के दिये देते हैं।

बाबा," बेटा, ये चार मिट्टी के दिये है जो तुम्हें धन की ओर ले जाएंगे। जब भी तुम्हें धन की आवश्यकता हो तो पहला दिया जला लेना। 

दिए के जलते ही तुम्हें एक दिशा दिखाई देगी जिसपर चलकर तुम्हें धन की प्राप्ति होगी। अगर तुम्हें दोबारा धन की आवश्यकता होगी तो दूसरा मिट्टी का दिया जला लेना जिसपर चलकर तुम्हें फिर से धन की प्राप्ति होगी। 

अगर फिर भी तुम्हें धन की कमी महसूस हो तो मिट्टी का तीसरा दिया जला लेना जहाँ से तुम्हें अपार धन मिल जाएगा। 

लेकिन भूलकर भी चौथा दिया ना तो चलाना है और ना उस दिशा की ओर जाना है। अगर तुमने ऐसा किया तो तुम अपना सर्वनाश कर बैठोगे। "

बाबूलाल," ठीक हैं बाबा, मैं चौथा दिया नहीं जाऊंगा, हाँ। "

बाबा," अच्छा ठीक है बेटा, अब मैं चलता हूँ। "

इसके बाद वो बाबा वहाँ से चला जाता है।

बाबूलाल," ये देखो भाग्यवान, अब मैं धन की तलाश में जा रहा हूँ और खूब सारा धन लेकर ही लौटूंगा, हाँ। 

फिर देखना हम इस गांव में सबसे अमीर हो जाएंगे। इतना धन होगा कि जीवन भर आराम से जीवन बिताएंगे, हाँ। "

जानकी," नहीं नहीं, मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है, जी। आप मत जाईये। हमारे पास जितना है उतना ही काफी है, जी। आखिर इतने धन का हम क्या करेंगे ? "

बाबूलाल," अरे भाग्यवान ! तुम मूर्ख हो, मूर्ख... आखिर धन से बढ़कर भी कोई और वस्तु है क्या इस संसार में ? अरे ! तुम चुप करो, मैं जा रहा हूँ और अब तो धनवान होकर ही वापस लौटूंगा। "

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बाबूलाल ( गाना गाते हुए)," दुख भरे दिन गए रे भैया, अब तो सुख आयो रे। जय हो बाबा की, जय हो। "

बाबूलाल," कितना दिमाग है मुझमें ? कैसे चिकनी चुपड़ी बातें करके बाबा से धनवान होने की युक्ति पाली मैंने। वाह रे बाबूलाल ! बड़ा बुद्धिमान है रे तू। "

बाबूलाल वहाँ से एक जंगल की ओर चला जाता है और बाबा का दिया हुआ पहला दिया जला देता है। पहला दिया जलाते ही उसे एक रास्ता दिखाई देता है।

बाबूलाल," अरे वाह ! ये रहा वो रास्ता जो बाबा ने बताया था। "

वो उस रास्ते पर चलने लगता है। थोड़ी दूरी पर चलते ही उसे एक बूढ़ी अम्मा दिखाई पड़ती है जो बहुत ही ज्यादा रो रही होती है।

बाबूलाल," अरे ! क्या बात है अम्मा, रो क्यों रही हो और मेरा धन कहाँ है ? इस बढ़िया से बात करके देखता हूँ। "

बाबूलाल," अरे अम्मा ! इस जंगल में तुम अकेली... और रो क्यों रही हो ? "

बुढ़िया," अरे बेटा ! मेरी उम्र पूरी हो चुकी है। अब मैं मरने वाली हूँ। लेकिन मेरा इस दुनिया में कोई भी नहीं है इसलिए मैं रो रही हूँ। 

आखिर मरने के बाद कौन मुझे अग्नि देगा, बेटा ? मेरे पास मेरा जोड़ा हुआ कुछ धन है लेकिन मैं उसे ही अपना धन दूंगी जो मेरे मरने के बाद मुझे अग्नि देगा। "

बाबूलाल ये सुनते ही लालच में आ जाता है।

बाबूलाल," क्या सच में तुम्हारा कोई नहीं है अम्मा ? अच्छा कोई नहीं... मैं तुम्हें तुम्हारे मरने के बाद अवश्य ही अग्नि दूंगा, हाँ हाँ। तुम मुझे ही अपना धन दे देना। "

बुढ़िया," ठीक है। यहाँ से कुछ ही दूरी पर मेरी एक झोपड़ी है। उसमें एक पोटली में मेरा धन रखा हुआ है। मेरे मरने के बाद तुम वो धन ले लेना और मेरे शरीर को मुख अग्नि देना। "

ऐसा बोलते ही बूढ़ी अम्मा के प्राण निकल जाते हैं। तभी बाबूलाल पास के जंगल में जाकर कुछ लकड़ियां लेकर आता है और उस बूढ़ी अम्मा को अग्नि देता है। 

जिसके बाद वो उसकी झोपड़ी में जाता है और उसे वहां धन से भरी पोटली मिलती है। उसे देखते ही बाबूलाल खुश हो जाता है।

बाबूलाल," अरे वाह वाह ! इसमें तो सच में धन है। लेकिन ये क्या..? ये तो बहुत ही कम है। इसमें भला मेरा क्या होगा ? 

खैर अब इसे भी रख ही लेता हूँ, हाँ। धन कितना भी क्यों ना हो, छोड़ना अच्छा नहीं है, हाँ ? "

जिसके बाद वो वहाँ से थोड़ा आगे बढ़ता है।

बाबूलाल," इतने कम धन से मेरा क्या होगा ? अरे ! हाँ, मुझे दूसरा दिया जलाना चाहिए। "

अब बाबूलाल दूसरा दिया जलता है। दूसरे दिये के जलते ही उसे फिर से रास्ता दिखता है। बाबूलाल उस रास्ते की ओर चलने लगता है। 

आगे बढ़ते ही उसे एक जगह दिखती है जो बहुत ही सुंदर होती है। वहाँ पर बहुत सी रौशनी होती है। जमीन के एक टुकड़े के ऊपर बहुत सारी तितलियां उड़ती दिखाई देती है।

बाबूलाल," अरे ! लगता है... ये तितलियां मुझे संदेश दे रही है। इस जमीन के नीचे ही धन है, हाँ। "

तभी वो जमीन खोदने लगता है और जमीन के अंदर से अचानक से रोशनी निकलती है। वो देखता है की एक बहुत ही सुंदर चमकता हुआ हार वहाँ है। ये देखकर तो बाबूलाल की आंखें चार हो जाती है।

बाबूलाल," अरे वाह ! इतना सुन्दर सोने का हार। हाय हाय ! ये तो सच में बहुत सुंदर है। इसे मैं अपनी पत्नी को दूंगा, हाँ। 

गांव में इतना सुन्दर हार तो किसी की भी पत्नी के पास नहीं होगा। अरे वाह वाह... लेकिन भला इस एक हार से मेरा क्या होगा ? नहीं नहीं, मुझे तो अपार धन चाहिए, हाँ। "

बाबूलाल फिर से आगे बढ़ता है और तीसरा दिया जलाता है। तीसरा दिया जलते ही उसे फिर से रास्ता दिखता है और वो उस रास्ते पर चलने लगता है। 

तभी वो देखता है कि चारों तरफ कुछ भी नहीं है, सिवाय एक विशाल पेड़ के। वो उस पेड़ के पास जाता है।

बाबूलाल," अरे ! ना जाने कहाँ होगा अपार धन ? मुझे तो कुछ दिखाई नहीं दे रहा है और अब तो मैं थक गया हूँ। "

जिसके बाद वो उस विशाल पेड़ के नीचे बैठ जाता है। थोड़ी देर बाद उसके ऊपर एक पत्ता गिरता है। जैसे ही वो ऊपर देखता है, उसे एक घड़ा जो बहुत चमक रहा होता है, पेड़ की टहनी पर लटका दिखाई देता है। बाबूलाल यह देखकर हैरान हो जाता है।

बाबूलाल," ये मिट्टी का घड़ा इतना चमक क्यों रहा है ? "

तभी वो पेड़ के ऊपर चढ़ जाता है और वो घड़ा उस टहनी से उतार लेता है। जैसे ही वह घड़े को देखता है, उसकी आंखें खुली रह जाती है। उस घड़े में खूब सारे सोने चांदी के सिक्के होते है।

बाबूलाल," अरे वाह वाह ! इतना सारा सोना चांदी। ये तो बहुत सारा धन है, हाँ। अब लगता है कि मेरे हाथ कुछ धन आया है, हाँ लेकिन ये नहीं, ये भी मेरे लिए अपार धन नहीं है। 

लगता है चमत्कारी बाबा ने मुझे चौथा रास्ता इसलिए नहीं बताया क्योंकि वो खुद ही उस अपार धन को प्राप्त करना चाहता होगा। 

लेकिन नहीं, मैं ऐसा नहीं होने दूंगा, हाँ। वो अपार धन तो मेरा ही होगा, हाँ। मैं चौथे दिये को जलाकर उस चौथे रास्ते पर अवश्य ही जाऊंगा, हाँ। "

तभी वो चौथा दिया जलाता है और चौथे रास्ते की तरफ चलने लगता है। थोड़ी दूर चलते ही वो देखता है कि वो एक बहुत ही सुन्दर महल के पास पहुँच गया है जो बहुत ही आलीशान है।

बाबूलाल," अरे वाह ! इतना सुन्दर महल। ये कितना सुंदर है ? लगता है अपार धन मुझे यही मिलेगा ? "

बाबूलाल इस महल के अंदर जाता है। वो देखता है कि एक बहुत ही बूढ़ा व्यक्ति चक्की चला रहा होता है और उसके आस पास अपार धन पड़ा है। इतना धन देखकर वो खुश हो जाता है।

बाबूलाल," वाह वाह वाह... इतना धन, इतना धन तो मेरे लिए अपार होगा। लगता है ये मेरे लिए है, हाँ हाँ। "

बूढ़ा व्यक्ति," आओ आओ बेटा, मैं जानता हूँ तुम यहाँ इस अपार धन की तलाश में आए हो। ये सारा धन तुम्हारा ही है। लेकिन तुम्हें और धन भी मिल सकता है। क्या तुम और धन चाहते हो ? "

बाबूलाल," क्या कहा और धन ? क्या सच में मुझे इससे भी अधिक धन मिल सकता है ? मुझे तो बहुत सारा अपार धन चाहिए, हाँ हाँ। मैं इस संसार में सबसे अधिक धनी होना चाहता हूँ, हाँ हाँ। "

बूढ़ा व्यक्ति," अच्छा तो ठीक है। अगर तुम और भी ज्यादा धन पाना चाहते हो तो उसमें तुम्हारी मदद ये चक्की ही करेगी, हाँ। ये जादुई चक्की है। तुम जितना इसे चलाओगे उतना ही धन तुम्हारे पास आता जायेगा। "

ये सुनकर बाबूलाल खुश हो जाता है और चक्की जो वो बूढ़ा आदमी चला रहा होता है, उसे चलाने लगता है। 

ऐसे देखते ही देखते वहाँ अपार धन का ढेर लग जाता है और बाबूलाल चक्की चलाते चलाते थक जाता है। 

थोड़ी देर बाद...
बाबूलाल," अब बस... अब और नहीं। अब और ये चक्की नहीं चला सकता मैं, मुझे इतना ही धन पर्याप्त है। "

लेकिन जैसे ही वह चक्की को छोड़ना चाहता है, चक्की उसे नहीं छोड़ने देती। वो चाहकर भी अपने हाथों को चक्की से हटा नहीं पा रहा था।

बाबूलाल," अरे ! ये क्या हो रहा है मेरे साथ ? आखिर मेरे हाथ क्यों इस जादुई चक्की को नहीं छोड़ पा रहे है ? "

बूढ़ा व्यक्ति," बेटा, ये सब तुम्हारे ही अपार धन के लालच की देन है। मैंने भी तुम्हारी ही तरह उस चमत्कारी बाबा का चौथा दिया जलाया था और यहाँ और अधिक धन के लालच में आ गया था। 

बाबा के मना करने के बाद भी जो यहाँ आता है वो यहाँ से नहीं जा पाता है। वो सदैव के लिए इसी अपार धन के बीच रह जाता है। "

बाबुलाल ये सुनकर हैरान हो जाता है।


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बाबूलाल," ये आप क्या बोल रहे है ? नहीं नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। "

बूढ़ा व्यक्ति," ये सच है बेटा, अब तुम यहाँ से तभी जा सकते हो जब कोई तुम्हारी तरह ही लालची इंसान अपार धन पाने के लालच में यहाँ इस महल में आ जाए और अगर कोई नहीं आया तो तुम्हे यही इस चक्की को चलाते रहना होगा। "

ये सुनकर बाबूलाल ज़ोर ज़ोर से रोने लगता है।

बाबूलाल (रोते हुए)," हाय हाय ! ये मैंने क्या कर दिया ? अपार धन पाने की चाह में अपना सर्वनाश कर बैठा। मुझे अधिक लालच नहीं करना चाहिए था, हाय हाय। "


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