जादुई खाना | Jadui Khana | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories
कहानियां हमारी जीवन में एक दर्पण का कार्य करती है। यह हमेशा किसी पाठक के लिए आनंदित माहौल पैदा करने के साथ-साथ, उसे कुछ नया भी सिखाती हैं। अगर आप Hindi Stories, Moral Stories या Bedtime Stories पढ़ने के शौकीन हैं तो आज मैं आपके साथ एक नई कहानी साझा करने जा रहा हूं। इस कहानी का नाम है - जादुई खाना। यह एक Magical Story है, तो कहानी में हमारे साथ अंत तक जुड़े रहें।

Jadui Khana | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Stories | Bedtime Stories
जादुई खाना
धौलपुर गांव में चंदन नाम का एक किसान रहता था। चंदन बहुत ही सीधा और ईमानदार था। उसकी पत्नी और एक बूढ़ी बीमार मां थी।
चंदन के पास एक छोटा सा जमीन का टुकड़ा था जिस पर वह खेती करता था। लेकिन पिछले कई सालों से चंदन की कोई भी फसल अच्छी नहीं हो रही थी।
चंदन की पत्नी," अजी सुनिए... अब तो घर में थोड़ा सा ही अनाज बचा है। मां जी की तबीयत भी ठीक नहीं रहती।
उन्हें तो मैं भूखा भी नहीं रख सकती। जी आपने कुछ सोचा है, आगे क्या करेंगे आप ? "
चंदन," मैं जानता हूं सुंदरी, पर तुम ही बताओ मैं क्या करूं ? रोज मैं बहुत मेहनत करता हूं लेकिन न जाने मेरी फसल हर बार खराब हो जाती है।
कुछ महीने पहले सरसों बोई थी लेकिन देखो वह भी अच्छी नहीं हो पाई जिसकी वजह से कोई गांव वाला मेरी बोई हुई कोई भी फसल खरीदता ही नहीं। "
चंदन की पत्नी," मैं जानती हूं जी, इसीलिए आप परेशान रहते हैं। लेकिन अब तो रसोई घर में भी थोड़ा ही अनाज बचा है। मां जी को तो हम भूखा नहीं रख सकते हैं ना जी।
आगे हम क्या करेंगे ? खैर...जाने दीजिए, मैं आपको अच्छे से जानती हूं। आप कुछ ना कुछ कर ही लेंगे जी। "
चंदन अपना सिर हिलाकर 'हां' मैं जवाब देता है।
अगली सुबह...
चंदन अपने खेत की ओर जा रहा होता है कि तभी उसे एक आवाज आती है जो कि चंदन का ही पड़ोसी होता है।
उसका नाम जग्गी होता है जो एक लालची और दूसरों से जलने वाला व्यक्ति होता है।
जग्गी," अरे चंदन भैया ! कहां जा रहे हो ? लगता है अपने खेत की तरफ फसलों को देखने जा रहे हो ? अरे भाई ! अब रहने भी दो।
आखिर कब तक अपनी फसलों की आस में रहोगे ? अरे कई सालों से तो कुछ नहीं हो पा रहा तुमसे, अब आगे तुमसे क्या ही होगा हां ? "
चंदन," अरे जग्गी भैया ! मैं तो पूरी मेहनत करता हूं और आगे भी करता रहूंगा। मुझे पूरा यकीन है कि आज नहीं तो कल मेरी मेहनत जरूर रंग लाएगी। "
जग्गी," आखिर बेवकूफ को कोई कितना समझाए ? हां ठीक है भाई, मैं भी देखता हूं कि वह दिन कितना जल्दी आएगा ? "
उसकी यह बात सुनकर चंदन थोड़ा दुखी हो जाता है। इसके बाद चंदन अपने खेत पर पहुंचता है और अपने फावड़े से थोड़ी सी जमीन खोदना शुरू कर देता है। वहां वह कुछ बीज प्याज की फसल के बो देता है।
चंदन," मैंने प्याज के नये बीज बो दिए हैं। भगवान करे, इस बार मेरी फसल अच्छी हो जाए। "
इसके बाद चंदन घर आता है।
मां," चंदन, अरे ! आ गया बेटा ? काफी देर लगा दी बेटा तूने आने में। "
चंदन," मां वो मैंने आज खेत में प्याज की नई फसल बोई है इसलिए घर आने में देर हो गई। तुम बताओ, तुम्हारे पैरों का दर्द कैसा है मां ? "
मां," बेटा दर्द तो ऐसा ही है। कल गांव के वैद्य जी के पास गई थी। उनके पास एक औषधि है। लेकिन मेरे पास तो पैसे ही नहीं थे इसलिए उनसे लेने की हिम्मत नहीं हुई। "
चंदन," अरे ! मां तुम चिंता मत करो। मैं कल वैद्य जी से तुम्हारे लिए ओषधि ले आऊंगा। "
मां," अच्छा चल ठीक है, तू कह रहा है तो ले ही आएगा। "
इसके बाद चंदन अपने कमरे में जाता है।
चंदन," मेरे पास तो एक रुपया भी नहीं है। आखिर मां के लिए औषधि कहां से लाऊंगा ? "
अगली सुबह चंदन वैद्य जी के पास जाता है जो काफी बूढ़े थे।
चंदन को देखते ही...
वैद्य," बेटा, कैसे आना हुआ ? सब ठीक तो है ना ? "
चंदन," बाबा, मैं क्या बताऊंगा आपको ? कल मां कह रही थी कि आपने पैर दर्द की औषधि बनाई है।
मां के पैरों का दर्द बढ़ता ही जा रहा है लेकिन मेरे पास पैसे नहीं है। इस बार भी मेरी फसल अच्छी नहीं हुई है। बाबा, मैं क्या करूं ? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। "
वैद्य," अरे बेटा ! तुम तो जानते ही हो, मैं बहुत बूढ़ा हो चुका हूं। जंगलों के पेड़ पौधों से जो भी औषधि बनाता हूं उसी से अपना गुजारा करता हूं।
लेकिन बेटा तुम्हारी मजबूरी को देखते हुए मैं तुम्हें तुम्हारी मां के पैरों के दर्द को दूर करने की औषधि देता हूं। लेकिन तुम्हें इसके बदले में मुझे 4 दिन तक भोजन कराना होगा। "
चंदन यह सुनकर सोच में पड़ जाता है।
चंदन," ठीक है बाबा, मैं 4 दिन तक रोज तुम्हारे लिए भोजन लेकर आया करूंगा।
इसके बाद बाबा उसे एक कांच की शीशी देता है जिसे लेकर चंदन अपने घर आता है। घर पर उसकी मां और बीवी होती है।
चंदन," मां, यह लो मैं तुम्हारी दवा वैद्य से लेकर आया हूं। अब इस दवा को खाकर आपके पैरों का दर्द गायब हो जाएगा। "
मां," अरे ! पता था मुझे बेटा। अब तू यह औषधि ले आया है ना, अब मैं बहुत जल्दी ठीक हो जाऊंगी। तेरे जैसा बेटा पाकर मैं तो धन्य हो गई बेटा। "
चंदन," यह तो मेरा कर्तव्य था। "
तभी उसकी पत्नी चंदन के पास आती है।
चंदन की पत्नी," सुनिए जी... सच-सच बताइए आपके पास मां जी की दवा के लिए पैसे कहां से आए ? क्या किसी से आपने उधारी ली है ? "
चंदन," नहीं नहीं भाग्यवान, मैंने किसी से उधारी नहीं ली। वैद्य जी ने पैसे नहीं लिए हैं। लेकिन वो ये.... "
चंदन की पत्नी," ये वो क्या कर रहे हैं ? बताइए ना... वैद्य जी को देने के लिए पैसे कहां से आए आपके पास ? "
चंदन," सुंदरी, वैद्य जी ने कहा है कि औषधि के बदले में उन्हें 4 दिन का भोजन कराएं। "
चंदन की पत्नी," क्या कहा आपने, 4 दिन का भोजन ? यह क्या किया आपने ? आपको पता है ना... रसोई घर में सिर्फ सीमित भोजन ही बचा है ?
ऐसे में अगर हम 4 दिन तक रोज-रोज वैद्य जी को भोजन देते रहेंगे तो मैं आपको और मां जी को क्या खिलाऊंगी जी ? "
चंदन," भाग्यवान, में जानता हूं। मेरे पास दूसरा कोई और रास्ता नहीं है। मां के लिए वैद्य जी से वो औषधि लेनी बहुत जरूरी थी इसलिए मैंने उनकी बात मान ली। "
इस समय दोनों बहुत दुखी हो जाते हैं।
चंदन की पत्नी चंदन और उसकी मां को भोजन देती है। चंदन की मां भोजन खाने लगती है। लेकिन चंदन सिर्फ देख रहा था।
चंदन की मां," क्या हुआ बेटा ? तू भोजन क्यों नहीं खा रहा है ? "
चंदन," खा लूंगा, अभी मुझे भूख नहीं है। तुम खा लो। "
इसके बाद चंदन की मां अपने कमरे में चली जाती है और चंदन अपना भोजन लेकर बाबा के पास जाता है।
चंदन," बाबा, मैं आपके लिए भोजन लेकर आया हूं खा लीजिए। जो भी मेरे घर में रुखा सुखा था, मैं आपके लिए ले आया। "
वैद्य," अरे ! आ गए बेटा तुम ? मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था, बहुत जोरों की भूख लगी है बेटा। "
बाबा उसका भोजन खा लेता है। इसके बाद चंदन रोज ऐसे ही करता।
चौथे दिन...
चंदन की पत्नी," सुनिए जी, आज तो रसोई घर में सारा अनाज खत्म हो गया है। मुझे तो बहुत चिंता हो रही है जी। आज क्या बनाऊंगी ? "
चंदन यह सुनकर बहुत दुखी हो जाता है।
चंदन (मन ही मन)," आज कैसे बाबा को भोजन दूंगा। "
वह अपने खेत में जाता है और देखता है कि उसकी बोई प्याज की फसलों में से एक प्याज खिल आई है जो देखने में बहुत सुंदर लग रही है। चंदन उसे तोड़कर अपने घर ले आता है।
चंदन की पत्नी," ये क्या है जी ? एक प्याज से क्या होगा भला ? "
चंदन रसोई घर में जाता है और एक आटे के डिब्बे को खोलता है जिसमें बहुत ही कम आटा था।
चंदन," तुम इस आटे की रोटी बना दो। "
चंदन की पत्नी," यह क्या बोल रहे हैं जी ? इस आटे की तो केवल एक और बहुत ही छोटी रोटी बन पाएगी। इससे तो किसी का पेट भी नहीं भरेगा। "
चंदन," तुम बनाओ तो सही। तुम इस आटे की छोटी ही सही लेकिन रोटी बना दो। "
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इसके बाद उसकी पत्नी थोड़े से आटे की एक छोटी सी रोटी बना देती है। उसे लेकर चंदन वैद्य के पास जाता है।
चंदन," यह लो बाबा, मैं आपके लिए खान लेकर आया हूं। लेकिन आपसे माफी चाहता हूं आज मेरे घर पर आटा नहीं था।
बस जो थोड़ा सा आटा बचा था उसी से मेरी पत्नी ने आपके लिए रोटी बना दी है और साथ में मैं अपनी प्याज की फसल में से सबसे पहले जो प्याज खिल आई थी, वह ले आया हूं। "
बाबा चंदन की यह बात सुनकर बहुत खुश हो जाते हैं।
वैद्य," कोई बात नहीं बेटा, मैं आज यही खा लूंगा।
प्याज और रोटी खा लेने के बाद...
वैद्य," बेटा तुम बहुत अच्छे इंसान हो। तुम्हारी रोटी और प्याज खाकर मुझे बहुत आनंद आया। तुम्हारी ईमानदारी और निष्ठा को देखते हुए मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूं। "
तभी वैद्य बाबा अपने पिटारे में से एक सफेद रंग की पोटली निकालते हैं और चंदन को दे देते हैं।
वैद्य," यह लो बेटा औषधि, यह मैंने बहुत मेहनत से बनाई है। यह चमत्कारी औषधि है। इसे तुम जिस भी चीज में डालोगे उसका स्वाद 10 गुना बढ़ जाएगा।
जैसे तुमने मुझे भोजन खिलाया है वैसे ही तुम भूखे इंसानों को भोजन कराओ। तुम एक ढाबा खोलो। तुम जो भी खाने की चीज बनाओगे उसमें इस औषधि का इस्तेमाल करना।
यह तुम्हारी कमाई का साधन भी बनेगा। जो भी तुम्हारा भोजन एक बार खा लेगा, वह बार बार आएगा... हा हा हा। "
इसके बाद बाबा जोर-जोर से हंसने लगते हैं। बाबा की बात सुनकर चंदन भी खुश हो जाता है।
बाबा से पोटली लेकर चंदन अपने घर जाता है।
चंदन की पत्नी," अरे ! आ गए आप ? ये आपके हाथ में क्या है जी ? "
चंदन अपनी पत्नी को सारी बात बताता है।
चंदन की पत्नी," यह क्या कह रहे हैं आप ? क्या सच में यह चमत्कारी पोटली है ? लेकिन हमारे पास तो इतने पैसे भी नहीं है। कहां से लाएंगे हम अनाज ? "
चंदन," हां भाग्यवान, यही तो अब मैं सोच रहा हूं कि भोजन बनाने के लिए अनाज की तो आवश्यकता होगी ही। लेकिन अब कुछ समझ में नहीं आ रहा। "
तभी चंदन के घर एक औरत आती है जो चंदन की पत्नी (सुंदरी) की पड़ोसन होती है।
मीना," अरे सुंदरी भाभी ! कहां हैं आप ? "
सुंदरी," अरे ! मीना भाभी आप..? बताइए कैसे आना हुआ ? "
मीना," अरे भाभी ! मैं आपके लिए कच्चे चावल और दाल लेकर आई हूं। इस बार हमारे खेतों में बहुत अच्छी फसल हुई है।
अब चंदन भाई का तो पूरे गांव में पता ही है। इनकी फसल तो कहां अच्छी हुई होगी ? तो सोचा थोड़ा बहुत आपके घर ही दे देती हूं। "
सुंदरी," बहुत-बहुत धन्यवाद भाभी जी आपका, आपने हमारे बारे में इतना सोचा। "
मीना," अरे ! नहीं नहीं भाभी जी, आप इतनी अच्छी हैं तो मैं ले आई आपके पास। अच्छा भाभी, अब मैं चलती हूं। "
इसके बाद मीना अपने घर चली जाती है।
सुंदरी," यह देखिए जी... कितने सारे चावल और दाल हैं ? अब हम इन्हें ही बनाएंगे। "
इसके बाद चंदन और सुंदरी दोनों साथ में दाल और चावल बनाने लगते हैं।
दाल चावल बन जाने के बाद...
चंदन," चलो सुंदरी, अब इसमें बाबा की दी हुई चमत्कारी औषधि मिलाते हैं। "
सुंदरी," हां, आप ही डालिए। "
चंदन दाल चावल में औषधि डालता है। दोनों दाल चावल लेकर अपने घर के बाहर एक एक लकड़ी की पटरी पर खड़े हो जाते हैं। तभी चंदन के पास गांव का एक युवक आता है।
युवक," अरे ! चंदन भैया, अब ये कौन- सा नया धंधा खोल लिया है ? दाल चावल का ढाबा... पर मुझे लगता नहीं है कि यह चलेगा भाई। "
चंदन," अरे भाई ! एक बार खाकर तो देखिए। हम दोनों मियां बीवी ने बहुत मेहनत से बनाए हैं। उसके बाद बताइएगा। "
युवक," अच्छा अच्छा ठीक है, खा लेता हूं तुम्हारे हाथ के बने हुए दाल चावल। लेकिन पहले यह तो बताओ कि कैसे दिए हैं ? "
चंदन," बस ₹10 की प्लेट है भाई। "
युवक," हां ठीक है भाई, लगा दो। "
इसके बाद चंदन की पत्नी उसे एक प्लेट दाल चावल देती है। युवक दाल चावल खाता है।
युवक," अरे भाई ! इसमें तो बहुत स्वाद है। ऐसे दाल चावल तो मैंने कभी नहीं खाए। जरा एक प्लेट और लगा दो। "
चंदन और उसकी पत्नी बहुत खुश हो जाते हैं। यह सब जग्गी छुपकर देख रहा था। यह सब देखकर जग्गी को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा।
जग्गी," अच्छा... तो इस चंदन ने नया रास्ता खोज निकाला है। अब पूरे गांव में इसकी वाह-वाह होने लगेगी। नहीं नहीं, मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। मुझे कुछ करना होगा। "
वह चंदन के ढाबे के पास गया।
जग्गी," अरे चंदन भाई ! कैसे हो ? आज बड़े जोरों की भूख लगी है, जरा एक प्लेट दाल चावल तो लगा देना। "
चंदन," अरे भाई ! अब तो दाल चावल खत्म हो गए। "
जग्गी," अरे भैया ! माफ करना दाल चावल तो खत्म हो गए, कल आना। "
जग्गी," यह भी कोई बात हुई चंदन भाई, इतने मन से आया था तुम्हारे ढाबे पर। खैर... अब जाने दो, अच्छा चलता हूं। "
चंदन," अच्छा रुको भाई, मैं अभी तुम्हारे लिए दाल चावल बना देता हूं। "
जग्गी," हां हां ठीक है भाई, बना दो। "
तभी चंदन को थोड़ी दया आ गई। चंदन जग्गी के लिए दाल चावल बनाने लगा और देखते ही देखते चंदन अपनी सफेद पोटली में से उस औषधि को निकालता है और बाबा द्वारा दी हुई औषधि को दाल चावल में डाल देता है। यह सब जग्गी बहुत ध्यान से देख रहा था।
जग्गी (मन में)," अच्छा... तो यह राज है इसके इतने स्वादिष्ट दाल चावल का। इसकी वजह से ही इसके दाल चावल गांव भर में इतना स्वादिष्ट होते हैं। "
तभी चंदन जग्गी को अपने बनाए दाल चावल देता है।
चंदन," यह लो भाई, खाओ मेरे दाल चावल। "
दाल चावल खाकर...
जग्गी," भाई, मजा आ गया खाकर। तुम्हारे दाल चावल काफी स्वादिष्ट हैं। अच्छा भाई, अब मैं चलता हूं। "
थोड़ी देर बाद जग्गी फिर से वापस चंदन के ढाबे पर आता है और देखता है ढाबे पर कोई नहीं है। वह चुपके से सफेद पोटली उठा लेता है और अपने घर आ जाता है।
जग्गी," अब ये हुई ना कुछ बात। अब मैं देखता हूं कि उस चंदन के दाल चावल कैसे बिकते हैं ? अब मैं अपना ढाबा खोलूंगा और खूब सारे पैसे कमा लूंगा। "
उधर चंदन को जब अपने ढाबे पर चमत्कारी पोटली दिखाई नहीं देती तो वह और उसकी पत्नी बहुत दुखी हो जाते हैं।
चंदन की पत्नी," अब हम क्या करेंगे जी ? यहां से पोटली कौन ले जा सकते हैं ? "
चंदन," मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा। अब क्या होगा ? "
चंदन वापस उसी बाबा के पास जाता है।
चंदन," बाबा, वो पोटली जो आपने मुझे दी थी, वह किसी ने चोरी कर ली। अब क्या होगा बाबा ? अब कैसे मेरे हाथ के बने दाल चावल लोगों को पसंद आएंगे ? "
वैद्य," बेटा, तुम चिंता मत करो। जिसने भी वह पोटली चुराई होगी, उस पर उस औषधि का उल्टा असर होगा। लेकिन बेटा तुम उदास क्यों होते हो ?
तुम जो बहुत मेहनत और लगन से दाल चावल बनाते थे तभी सभी गांव वाले तुम्हारे बने दाल चावल इतना पसंद करते थे। हां... मेरी दी हुई औषधि स्वाद को थोड़ा बड़ा जरूर देती है लेकिन तुम्हारी सच्ची निष्ठा और लगन के आगे उसका इतना महत्व भी नहीं।
तुम जाओ और फिर से अपने ढाबे पर जाकर उसी प्रेम और निष्ठा भाव से दाल चावल बनाओ। तुम देखना गांव वालों को तुम्हारे बने यह दाल चावल भी बहुत पसंद आएंगे। "
चंदन," ठीक है बाबा, मैं चलता हूं। इसके बाद चंदन अपनी पत्नी के साथ फिर से दाल चावल बनाना शुरू कर देता है।
उधर जग्गी भी अपना ढाबा खोलता है। वह खूब सारे दाल चावल बनाता है और उसमें वही औषधि मिलाता है। गांव का एक व्यक्ति जग्गी की दुकान पर आता है।
आदमी," अरे भाई ! जरा एक प्लेट दाल चावल तो लगा दो। "
जग्गी," हां भाई, अभी लगा देता हूं। "
जैसे ही वह आदमी जग्गी के हाथ के बने दाल चावल खाने लगता है, उल्टियां करने लगता है।
आदमी," अरे ! यह क्या बकवास दाल चावल बनाए हैं ? जब बनाना ही नहीं आता तो क्यों बेचते हो ? "
जग्गी," अरे ! क्या हुआ भाई ? क्या दाल चावल पसंद नहीं आए ? "
आदमी," पसंद आने की तो बात दूर है, इतने खराब दाल चावल तो मैंने अपनी जिंदगी में कभी नहीं खाए। तुम ही खाओ अपने दाल चावल। "
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इसके बाद गुस्से में वह आदमी वहां से चला जाता है।
जग्गी," आखिर ऐसे कैसे बने हैं ? मैं ही खा कर देखता हूं। अरे ! इतने कड़वे बने हैं ये तो। इनसे तो मुझे भी उल्टी हो जाएगी।
छी छी छी... हे भगवान ! अब कौन मेरे बने इतने दाल चावल खाएगा ? इतने सारे दाल चावल खरीदने के लिए तो मैंने अपनी सारी जमा पूंजी लगा दी। यह क्या कर दिया मैंने ? "
और जग्गी बहुत तेज तेज रोने लगता है। चंदन और उसकी पत्नी बहुत मेहनत से बिना औषधि के दाल चावल बनाते हैं। सभी गांव वालों को वो बहुत पसंद आते हैं और उनके ढाबे पर फिर से लोगों की भीड़ लगना शुरू हो जाती है।
बिना औषधि के चंदन का ढाबा पहले की तरह चलने लगता है और चंदन हंसी खुशी अपनी मां और पत्नी के साथ रहने लगता है।
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